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    कृष्ण प्रेम प्राप्ति के लिए मनाएँ राधाष्टमी उत्सव, इस्कान द्वारका में राधाष्टमी की सभी तैयारियां पूरी

    -ब्रज की गोपियाँ बनकर महिलाएँ जीतेंगी पुरस्कार, कुकिंग कंपीटिशन में बेहतर ‘कुक’ की तलाश -ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित गौरमणि माता जी का ‘हरिनाम संकीर्तन’

    द्वारका/नई दिल्ली/- इस्कॉन द्वारका में बीते दिनों कृष्ण जन्माष्टमी की धूम देखने को मिली। सभी भक्तों ने उल्लास के साथ इस महोत्सव में भाग लिया और व्रत-उपवास भी रखा। अब दिल्लीवासी रविवार, 4 सितंबर को राधाष्टमी उत्सव के लिए पूरे जोश के साथ तैयार हैं। श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर में इसकी सारी तैयारियाँ पूर्ण कर ली गई हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों की गंध अपनी छटा बिखेर रही है और सारा वातावरण मानो किसी वृंदावन की महारानी और गोलोक की सुंदरी के स्वागत के लिए हो रहा है। आखिर क्यों ना हो! गोलोक स्वामिनी श्रीमती राधारानी का आविर्भाव दिवस यहाँ मनाया जाने वाला है।
                  दिल्ली में वृंदावन की याद दिलाते इस उत्सव में महिलाएँ ब्रज की गोपियों और राधारानी की सखियों की तरह गोपीवेश में सज-धज कर आएँगी। यही नहीं उनकी इस खास पोशाक को लेकर एक गोपी ड्रेस प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया है, जिसमें मंदिर में बने ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर सभी अपनी-अपनी फोटो क्लिक करके मंदिर की साइट पर भेजेंगी और विजेता को पुरस्कार भी प्रदान किया जाएगा। कहते हैं श्रीमती राधारानी हमेशा नीले रंग के वस्त्र पहनना पसंद करती हैं, क्योंकि श्यामसुंदर का रंग नीला है और वह पीले रंग के वस्त्र पहनना पसंद करते हैं क्योंकि राधारानी का रंग तपे हुए सोने की तरह यानी पीतवर्ण का है। तभी तो कहा जाता है किदृतप्तकांचन गौरांगी राधे वृंदावनेश्वरी३अब देखना यह है कि इस भौतिक दुनिया में गोपी ड्रेस का पुरस्कार किसको मिलता है।

                   श्रीमती राधारानी की सबसे प्रिय सब्जी अरबी के व्यंजनों को बनाने पर कुकिंग कंपीटिशन का आयोजन भी किया गया है। सबसे अच्छा व्यंजन बनाने वाली कुक को भी उत्सव में पुरस्कृत किया जाएगा। यही नहीं राधारानी का प्रिय मटका भी सजाकर महिलाएँ इस दिन अपने साथ लाएँगी। सबसे सुसज्जित मटके को भी इस मंच से उपहार स्वरूप पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। यह एक ऐसा उत्सव है जिसमें सबकी भागीदारी जीवन में उल्लास भर देती है। यह उत्सव हमें राधा और कृष्ण की लीलाओं से जोड़ता है। श्रीकृष्ण की लीलाओं में रस है, विरह है और प्रेम है। आज लोग यही रस अपने जीवन में भी पाना चाहते हैं, इसीलिए भगवान के हर एक उत्सव में भाग लेकर उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं।
    कहते हैं कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत तब पूर्ण माना जाता है जब राधाष्टमी का व्रत किया जाए। यह व्रत दोपहर 12 बजे तक किया जाता है, उसके बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाता है। कृष्ण की पूजा-आराधना तब पूर्ण होती है जब पहले राधारानी की भक्ति की जाएँ क्योंकि राधारानी कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति है, अंतरंगा शक्ति है। आनंद शक्ति हैं, जो कृष्ण को आनंद प्रदान करने के लिए उनकी सेवा में संसार में प्रकट होती है। कृष्ण कविराज द्वारा लिखित चैतन्य चरितामृत में वर्णन आता है किः  
    राधापूर्ण शक्ति कृष्ण पूर्णशक्तिमान
    दुइ वस्तु भेद नाहिं शास्त्र प्रमाण। (चै.च.)
    वह कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि हज़ारों लक्ष्मियों को प्रकट करने वाली, उनका केंद्र बिंदु और उद्गम स्रोत है श्रीमती राधारानी। उनकी रूप-गुणों का वर्णन करने के लिए तीनों लोकों में विराजमान देवी-देवताओं के मुखारविंद भी कम पड़ जाए। ऐसी दिव्य शक्ति श्रीमती राधारानी अनंत गुणों की खान हैं। श्रीकृष्ण उन्हीं के द्वारा पकाया हुआ भोजन ग्रहण करके संतुष्ट होते हैं। आज भी इस्कॉन के मंदिरों में जो कृष्ण के लिए भोजन बनता है, ऐसा विश्वास है कि उसे राधारानी द्वारा बनाया जा रहा है। राधाष्टमी के इस पावन अवसर पर 56 भोग भगवान को अर्पण किए जाएँगे। शाम 5 बजे से बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएँगे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जिन बच्चों ने प्रस्तुति दी थी उनको पुरस्कार वितरित किए जाएँगे। 6.30 बजे भगवान का महा अभिषेक किया जाएगा। ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकित गौरमणि माता जी एवं उनकी मंडली द्वारा हरि नाम संकीर्तन प्रस्तुत किया जाएगा। इसका लाइव प्रसारण इस्कॉन द्वारका के यूट्यूब चैनल पर आप देख सकते हैं।
                  राधाष्टमी के अवसर पर श्रीमती राधारानी से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए हम उनके जैसा रूप और गुण, जिससे वह सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण का ह््रदय जीत लेती हैं, तो प्राप्त नहीं कर सकते। कम से कम कुछ भी खाने से पहले भगवान को भोग अर्पण करके खाने की कला हमें सीखनी ही चाहिए जैसे उन्होंने सबसे पहला अन्न कृष्ण भगवान की झूठन खाकर ही ग्रहण किया था। और यह भी सत्य है कि जैसे श्रीकृष्ण अपने भक्तों के दुखों को नहीं देख सकते, ऐसे ही श्रीमती राधारानी ही अपने भक्तों के कष्ट मिटाने के लिए भगवान से निरंतर कृपा प्रदान करने की प्रार्थना करती हैं और वह अपने भक्तों का कष्ट हर लेते हैं।  

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