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    कमाऊ पूत’ को छोड़ बैसाखी का सहारा ढूंढ रही सरकार

    -विशेषज्ञों ने बताया इसे रणनीतिक चूक -नवरत्नों को निजी हाथों में सोंपने को बेताब भाजपा सरकार की नीति पर उठने लगे सवाल

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- ओएनजीसी को निजी हाथों में सौंपने के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। कंपनी के कर्मचारी अब सरकार की नीयत व नीति पर सवाल उठाने लगे है। कर्मचारियें का आरोप है कि केंद्र सरकार देश से कमाऊ पूत’का सहारा छीन कर बैसाखियों का सहारा ढूंढ रही है। जबकि ओएनजीसी इस समय की सबसे कमाऊ सरकारी कंपनी है। फिर भी केंद्र की भाजपा सरकार इसे ऐसी कंपनी को बेचना चाहती है जो पहले से घाटे में चल रही है। कंपनी के कर्मचारी इस पूरी घटना को एक निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने की साजिश के तौर पर देख रहे हैं। वहीं नीति विशेषज्ञों की माने तो यह कार्यवाही देश के लिए एक रणनीतिक चूक साबित हो सकती है।.
                        ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) ने इस वर्ष की दूसरी तिमाही में किसी भी अन्य भारतीय कंपनी की तुलना में सर्वाधिक 18,347 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया है। इस तरह यह कंपनी देश की सबसे कमाऊ कंपनी कही जा सकती है। लेकिन इसके बाद भी सरकार ने इसके विनिवेश का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने 28 अक्तूबर को एक पत्र के जरिए ओएनजीसी को मुंबई हाई और बेसिन क्षेत्र के कुल उत्पादन में 60 फीसदी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को देने को कहा था। इससे कंपनी के कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। वे सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की अपील कर रहे हैं।
                       केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी को लिखे पत्र में ओएनजीसी के 17,000 कर्मचारियों के एक संगठन ने कहा है कि कंपनी बेहद अच्छी आर्थिक स्थिति में है, उसे निजी क्षेत्र के हाथों में नहीं सौंपा जाना चाहिए। इससे कंपनी के कर्मचारियों के साथ-साथ देश के रणनीतिक महत्व के ऊर्जा हितों को गंभीर चोट पहुंच सकती है। संगठन के नेता और मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव रहे अमर नाथ ने इसे सरकार की बड़ी गलती बताया है।    
                      कर्मचारियों का आरोप है कि इसे एक निजी कंपनी को बेचने की कोशिश की जा रही है। पहले ओएनजीसी को गुजरात की एक घाटे वाली कंपनी को खरीदने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद उसे अपने से जोड़कर लाभ की स्थिति में दिखाने की कोशिश की गई और अब इसे ऊर्जा क्षेत्र की एक निजी कंपनी को बेचने की तैयारी की जा रही है। कर्मचारी इस पूरी घटना को एक निजी कंपनी को लाभ पहंचाने की साजिश के तौर पर देख रहे हैं।
                    केंद्र सरकार ने ओएनजीसी के जिस मुंबई हाई और बेसिन क्षेत्र को निजी हाथों में बेचने की तैयारी की है, अकेले वहां से कंपनी का लगभग 63 फीसदी और पूरे देश के लगभग 40 फीसदी तेल-गैस का उत्पादन किया जाता है। इस प्रकार केवल इस क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने का अर्थ देश के तेल-गैस उत्पादन क्षेत्र की आधी क्षमता को निजी क्षेत्र को सौंप देना है। आर्थिक विशेषज्ञ इसे देश के ऊर्जा हितों की दृष्टि से इसे एक गलत निर्णय बता रहे हैं।
                     ओएनजीसी ने अपनी वित्तीय स्थिति के बारे में बीएसई को जानकारी दी है कि इस वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर) में कंपनी ने 22682.48 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था, जो पिछले वर्ष की समान अवधि (लेकिन कोरोना काल) में 3254.35 करोड़ रुपये रहा था। जुलाई-सितंबर की तिमाही में कंपनी ने 18,347.73 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया। इसके पिछले वर्ष में इसी अवधि के दौरान कंपनी ने 2757.77 करोड़ रुपये का लाभ कमाया था। कंपनी ने पिछले वित्तवर्ष के दौरान 11246.44 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था।
                   वहीं, आर्थिक मामलों के जानकार भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि यह एक बड़ा विवादित प्रश्न है कि सरकार को तेल-गैस सहित किसी भी वस्तु के व्यापार में होना चाहिए, या नहीं। उन्होंने कहा कि जब देश आजाद हुआ था, देश का निजी क्षेत्र अपेक्षाकृत कमजोर था। वह बड़े क्षेत्रों में पैसा लगाने की स्थिति में नहीं था क्योंकि ये क्षेत्र बहुत बड़ी पूंजी की मांग करते हैं जिसे उपलब्ध कराने में बड़े से बड़ा उद्योगपति सक्षम नहीं था। इसीलिए सरकार ने तत्काल आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अनेक क्षेत्रों में निवेश किया। कहीं अकेले, कहीं निगमों के जरिए और कहीं सहकारी माध्यम से उद्योगों को बढ़ाया गया। यह उस समय की आवश्यकता थी। लेकिन अब हमारे देश का निजी क्षेत्र बेहद मजबूत स्थिति में हैं और दुनिया में बड़ी से बड़ी कंपनियां स्थापित कर रहे हैं, उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं, विदेशी कंपनियों को खरीद रहे हैं और विदेशी स्टॉक मार्केट में निवेश कर रहे हैं। इसलिए अब सरकार के इन क्षेत्रों में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार का कार्य प्रशासनिक, न्यायिक और सुरक्षा से जुडी जिम्मेदारी निभाने का है, उससे व्यापार करने की अपेक्षा नहीं की जाती।
                      उन्होंने कहा कि पिछली सरकारें निगमों को तब बेचती थी, जब वे घाटे में चल रही होती हैं। इससे उनका बाजार मूल्य कम हो जाता है और सरकार को अपेक्षाकृत बेहद कम राशि मिलती है, जबकि यदि उन्हें लाभ में रहने की स्थिति में बेचा जाए तो उससे सरकार को बेहतर आय हो सकती है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में इन कंपनियों का विनिवेश कर आर्थिक संसाधन जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, सरकार इन कंपनियों को बेच रही है। यह नीतिगत निर्णय है।

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