नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/टोक्यो/शिव कुमार यादव/- इंडोनेशिया को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में शामिल होने की महंगी कीमत चुकानी पड़ रही है। उसे जावा प्रांत में बन रही हाई स्पीड रेलवे परियोजना के लिए रियायतों की अवधि 80 वर्ष और बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। खबरों के मुताबिक अगर इंडोनेशिया सरकार ने ऐसा फैसला नहीं किया, तो यह रेल परियोजना के 22वीं सदी के आरंभ तक चीन के प्रभाव में बने रहने की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसका निर्माण करेटा केपैट इंडोनेशिया चाइना नाम की कंपनी कर रही है, जिसमें 40 फीसदी हिस्सा चीनी कंपनियों का है।
साल 2015 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने इस परियोजना का ठेका चीनी प्रभुत्व वाली कंपनी को देने का निर्णय लिया था। तब तय हुआ था कि रेल लाइन बिछाने का काम 2018 तक पूरा हो जाएगा और 2019 से हाई स्पीड ट्रेन दौड़ने लगेगी। लेकिन निर्माण कार्य अभी तक चल ही रहे हैं। कई जगहों पर तो काम बिल्कुल शुरुआती दौर में है।
वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक निर्माण कार्यों में देरी के कारण परियोजना की लागत लगभग 40 फीसदी बढ़ चुकी है। इस कारण इंडोनेशिया सरकार को लगभग 47 करोड़ डॉलर का भुगतान अपने खजाने से करना पड़ा है। इसको लेकर अब देश में कई हलकों से सवाल उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रपति विडोडो ने एक जापानी कंपनी के प्रस्ताव को ठुकराते हुए चीनी कंपनी को तरजीह दी थी। अब उनके इस फैसले पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में बीआरआई का एलान किया था। समझा जाता है कि इस परियोजना के पीछे चीन का मकसद अपने देश में बने उत्पादों को दुनिया भर में पहुंचाने का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना और दुनिया में चीन का प्रभाव बढ़ाना है। अब तक 150 से ज्यादा देश इस परियोजना में शामिल हो चुके हैं। लेकिन अब कई देशों में परियोजना में खड़ी हुई दिक्कतों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। 2020 और 2021 में कम से कम 40 बीआरआई समझौतों में ऋण शर्तों को लेकर दोबारा बातचीत शुरू हुई थी।
अमेरिकी थिंक टैंक रोडियम ग्रुप के मुताबिक उसके पहले के दो वर्षों से तुलना करें, तो शर्तों पर फिर से बातचीत में यह 70 फीसदी की बढ़ोतरी थी। चीन समर्थकों का कहना है कि इसके पीछे मुख्य कारण कोरोना महामारी के कारण पड़ा व्यवधान रहा है।
विश्व बैंक, अमेरिका के हार्वर्ड केनेडी स्कूल, एडडेटा और किएल इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकॉनमी के एक साझा अध्ययन के मुताबिक 2008 से 2021 तक चीन 22 देशों को कर्ज बेलआउट देने पर 240 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है। इस रकम में हाल के वर्षों में अधिक वृद्धि दर्ज हुई है। अनुमान है कि इसकी वजह बीआरआई से संबंधित ऋण चुकाने में बढ़ रही दिक्कतें हैं।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऐसी दिक्कतें बढ़ने के साथ चीन और बीआरआई के लाभार्थी देशों के बीच टकराव बढ़ेगा। इंडोनेशिया अब उन देशों में शामिल हो गया है, जहां इस परियोजन को लेकर गंभीर बहस खड़ी हो गई है। श्रीलंका में ऐसा पहले ही हो चुका है।
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