कोरोना के सतह पर जिंदा रहने को लेकर चौंकाने वाले तथ्य आये सामने

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कोरोना के सतह पर जिंदा रहने को लेकर चौंकाने वाले तथ्य आये सामने

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर यह बात तो जगजाहिर है कि यह संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। कोरोना मरीज के खांसने, छींकने या बात करने के दौरान नाक या मुंह से निकले ड्रॉपलेट्स के जरिए संक्रमण फैलने की ज्यादा संभावना रहती है। इसके अलावा ये ड्रॉपलेट्स प्लास्टिक, मेटल या अन्य किसी सतह पर पड़े हों तो उन सतहों से भी संक्रमण फैलने की संभावना रहती है। कोरोना वायरस किसी सतह पर कितनी देर जिंदा रह सकता है, इसको लेकर पहले भी कई अध्ययन हो चुके हैं, लेकिन ब्रिटेन में लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी की ओर से हुए एक नए अध्ययन में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। इसमें कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने को लेकर भी अध्ययन किया गया है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन के ग्रेट ओरमंड स्ट्रीट अस्पताल के बेड की रेलिंग पर संक्रमण छोड़ा और जब 10 घंटे बाद पूरे अस्पताल का गहराई से अवलोकन और अध्ययन किया गया तो पाया कि पूरे वार्ड के कोने-कोने तक संक्रमण फैल चुका है। जर्नल ऑफ हॉस्पिटल इंफेक्शन में प्रकाशित शोध के मुताबिक, कोरोना वायरस किसी सतह पर पांच दिनों तक जिंदा रह सकता है और 10 घंटे के भीतर बड़े क्षेत्र में अपना प्रसार कर सकता है। लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी की इस नई स्टडी के अनुसार, पांचवे दिन के बाद संक्रमण में कमी देखी गई।
शोधकर्ताओं ने प्रयोग के दौरान एक कोरोना मरीज की सांस से लिए वायरस के साथ कृत्रिम तौर पर पौधों को संक्रमित करने वाले एक वायरस का इस्तेमाल किया, जो मनुष्य को संक्रमित नहीं कर सकता था। इसके बाद दोनों वायरस को पानी की एक बूंद में मिलाकर बेड की रेलिंग पर छोड़ दिया। बाद में अस्पताल में लिए गए 50 फीसदी नमूनों में वायरस मिला। शोधकर्ताओं ने पांच दिनों में वार्ड के 44 स्थानों से सैकड़ों नमूने लिए। 10 घंटे बाद ही लिए गए नमूनों से खुलासा हुआ कि बेड रेलिंग, दरवाजों के हैंडल, कुर्सियों, वेटिंग रूम से लेकर किताबों और बच्चों के खिलौनों तक वायरस फैल चुका है। तीन दिन बाद जब फिर नमूने लिए गए तो पता चला कि वायरस का संक्रमण 41 फीसदी से बढ़कर 59 फीसदी क्षेत्र तक फैल चुका था। अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों, मरीजों और आगंतुकों के जरिये यह वायरस अस्पताल में फैलता चला गया। इस शोध अध्ययन के तीसरे दिन तक 86 फीसदी नमूनों में वायरस का संक्रमण मिला। हालांकि पांच दिन के बाद संक्रमण में कमी देखी गई।
इस अध्ययन की अग्रणी शोधकर्ता डॉ. लीना सिरिक के मुताबिक, अध्ययन स्पष्ट करता है कि कैसे किसी सतह से भी वायरस का संक्रमण कितनी तेजी से फैल सकता है। स्पष्ट है कि केवल संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या सांस से खतरा नहीं है, बल्कि एक वायरस संक्रमित सतह छूने के बाद आंख, नाक और मुंह को छूने से खतरा हो सकता है। उन्होंने चेताया कि साफ-सफाई में जरा सी लापरवाही बहुत भारी पड़ सकती है।

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