नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर पर सेना के साथ मिलकर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) ने चीन को धूल चटाई है। एसएफएफ को दुश्मन इलाके में तेजी से वार करने में माहिर माना जाता है।
विकास रेजिमेंट के नाम से भी जानी जाने वाली एसएफएफ सेना नहीं बल्कि खुफिया एजेंसी रॉ (कैबिनेट सचिवालय) के तहत काम करती है। इसके अधिकारी सेना के होते हैं और जवान खास वजहों से तिब्बत के शरणार्थियों में से चुने जाते हैं। इस रेजिमेंट का गठन 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद हुआ था। 1971 की जंग में चटगांव की पहाड़ियों को ऑपरेशन ईगल के तहत सुरक्षित करने में, 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार और 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय में एसएफएफ की अहम भूमिका थी। इस फोर्स को अक्सर इस्टैब्लिशमेंट 22 भी कहा जाता है।
शुरुआत में पांच हजार थे जवान, सीआईए ने भी दी थी ट्रेनिंग
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स 1962 की जंग के बाद बनाई गई थी। दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आखिरकार यूनिट के गठन के आदेश दिया और तिब्बती लड़ाकों को बहुतायत से इसमें शामिल किया गया। शुरू में इसमें 5,000 जवान थे जिनकी ट्रेनिंग के लिए देहरादून के चकराता में नया ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया। शुरुआत में पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्ला युद्ध के गुर सीखे। इनकी ट्रेनिंग में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का भी अहम रोल था।
More Stories
दिल्ली शराब घोटाले में नई चार्जशीट: अरविंद केजरीवाल पर मुख्य साजिशकर्ता का आरोप, तिहाड़ जेल में जमानत के लिए लंबा इंतजार
अमित शाह का जोरदार हमला: कांग्रेस और एनसी पर भ्रष्टाचार और आतंकवाद का आरोप, जम्मू-कश्मीर के विकास का दावा
The Deadly Deluge of Despair in KIRARI
केंद्र ने दिल्ली में एलजी की बढ़ाई शक्तियांः केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका
विश्व साक्षरता दिवस पर विशेष संपादकीयः नजफगढ़ में साक्षरता की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
नजफगढ़ में हादसाः तुड़े की ट्रॉली के नीचे दबकर एमसीडी कर्मी की मौत