बरौदा उपचुनाव बना सरकार व विपक्ष के बीच प्रतिष्ठा का सवाल

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

July 2024
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
July 27, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

बरौदा उपचुनाव बना सरकार व विपक्ष के बीच प्रतिष्ठा का सवाल

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/बरौदा/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- बरौदा उपचुनाव अब सरकार व विपक्ष के बीच प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है हालांकि इस उपचुनाव में हार-जीत का किसी दल व विधानसभा पर कोई खास असर नही पड़ेगा लेकिन फिर भी जिस तरह से इस उप चुनाव में सरकार व विपक्ष बरौदा में अपना डेरा जमाये हुए है उससे यही लगता है कि अब राजनीति का खेल शुरू हो चुका है। जिसमें अब नेता व राजनीतिक दल साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति का खुलकर प्रयोग करेंगे।
चुनाव की घोषणा ही नहीं नामांकन की तारीख भी आ चुकी हैं लेकिन अभी तक किसी ने भी नामांकन नहीं भरा है। इस उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है लेकिन अभी तक दोनो ही दलों ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नही की है। हालांकि दोना ही दल उम्मीदवार चयन को लेकर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे है। क्योंकि इस सीट को राजनेताओं ने जातिगत रूप देने में कोई कसर नही छोड़ी है जिसकारण अब मुख्य मुकाबला जाट व अन्य जातियों का बन गया है। जिसे देखते हुए सरकार भी अब सकते में दिखाई दे रही है। अब यह आने वाला समय ही बतायेगा की जनता किसके साथ जाती है। हालांकि विधानसभा में जनता जातिवाद को पूरी तरह से नकार रही है और क्षेत्र से उस उम्मीदवार का चयन करेगी जो काबिल व जनता के प्रति सम्र्पित होगा। लोगांे ने अपना स्पष्ट संदेश नेताओं तक पंहुचा भी दिया है।
अगर दलवार उम्मीदवारों की बात करें तो सबसे पहले सत्तारूढ दल भाजपा की स्थिति स्पष्ट करते हैं। बता दें रविवार को भाजपा हाईकमान की मीटिंग हुई थी और सूत्रों के अनुसार 25 उम्मीदवारों के नाम हाईकमान को भेजे गए हैं। अब उन 25 में से किसका चुनाव होगा यह हाईकमान तय करेगा लेकिन सूत्र यह भी बताते हैं कि उम्मीदवार तो पहले ही तय है। यह सब तो पार्टी कार्यकर्ताओं को दिखाने की कवायद भर है। हालांकि खुद भाजपा में भी अनेक बातें चल रही हैं। सभी पुराने उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को ही चुनाव में उतारने की बात कर रहे थे लेकिन फिर यह तय हुआ कि जाट उम्मीदवार आएगा। पहले संजय भाटिया थे, फिर जेपी दलाल प्रभारी हो गए। ओमप्रकाश धनखड़ के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर माहौल बदलता सा नजर आया। भाजपा में ही चर्चाएं चलने लगीं कि अब मुख्यमंत्री की चलेगी या प्रदेश अध्यक्ष की। उन सब बातों को भूलकर यदि आज की ओर देखें तो आज की मीटिंग की अध्यक्षता मुख्यमंत्री ने की।
वहीं पिछले दो दिनों से जो जजपा के बारे में बातें नहीं हो रही थी, अब बार-बार नेताओं के ब्यान आ रहे हैं कि जजपा और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ेंगे और चुनाव चिन्ह भाजपा का होगा। उन बातों से कयास लगाए जाने लगे कि भाजपा के यह 25 तो निरर्थक मेहनत कर रहे हैं। उम्मीदवार तो जजपा का होगा और आज की मीटिंग में मुख्यमंत्री के साथ के सी बांगड को बैठे हुए देख इन चर्चाओं को बल मिल रहा है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि भाजपा की ओर से क ेसी बांगड बरौदा उपचुनाव के प्रत्याशी होंगे।
कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस की ओर से 18 उम्मीदवारों की लिस्ट हाईकमान को भेजी जा चुकी है। जिसमें से हाईकमान ने एक पर मुहर लगानी है। अब प्रश्न यह है कि जब इस चुनाव को केवल और केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा से जोडकर देखा जा रहा है। विपक्षी दल भी कह रहे हैं कि यह भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सम्मान की लड़ाई है और दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से भी इतने समय से दोनों बापू-बेटे के अलावा और कोई वरिष्ठ नेता सक्रिय नजर आया नहीं है। अतः ऐसे में यह मानना उचित है कि टिकट भूपेंद्र सिंह हुड्डा के संकेत से ही मिलेगी। अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा का संकेत तो एक का ही होगा, क्योंकि सीट तो एक ही है। बाकी 17 उम्मीदवारों का क्या होगा। यह भी कहा जा रहा है कि बरौदा से कुछ समाचार ऐसे भी मिल रहे हैं कि हुड्डा साहब ने भी कई उम्मीदवारों को टिकट का आश्वासन दे रखा है।
अब प्रश्न उठता है कि जिसे टिकट मिलेगी, उसके अतिरिक्त 17 में से कितने व्यक्ति कांग्रेस के उम्मीदवार को जिताने में जुटेंगे और कितने निष्क्रिय हो जाएंगे तथा कितने कहीं दूसरी ओर सहारा ढूंढेंगे। यह तो हुई कांग्रेस की बात लेकिन सूत्रों से एक जानकारी और भी मिल रही है कि यदि भाजपा की ओर से केसी बांगड को टिकट दी गई तो भाजपा के टिकटार्थियों में से कोई भूपेंद्र सिंह हुड्डा का उम्मीदवार हो सकता है। ऐसी अवस्था में देखना यह होगा कि हुड्डा समर्थक भाजपा से आए नए उम्मीदवार को कितना समर्थन देंगे। इन दोनों की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात यह तो दिखाई दे रहा है कि दोनों पार्टियों के वरिष्ठ कार्यकर्ता कहीं न कहीं अपना पाला बदल सकते हैं या अपना झंडा अलग भी उठा सकते हैं और यही वह खेल है, जिसकी हम बात कर रहे हैं।
इन दो पार्टियों के अलावा जो माहौल क्षेत्र में बना हुआ है उसमें अन्य दलों की भूमिका को भी नही नकारां जा सकता। इनेलो के अभय चैटाला तो डंके की चोट कह रहे हैं कि वह उम्मीदवार तब घोषित करेंगे, जब दोनों पार्टियां उम्मीदवार घोषित कर देंगी। उनका सीधा सा अर्थ है कि दोनों पार्टियों में से जिस अधिक जनाधार वाले नेता को टिकट नहीं मिली होगी, वह उसे टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाएंगे, जिससे वह अपनी भी जीत की संभावनाएं तलाश सकें।
इसके अतिरिक्त बलराज कुंडू भी इस घमासान में कूद चुके है और वह घोषणा कर रहे हैं कि वह अपना पंचायती उम्मीदवार उतारेंगे। अन्य नकारे हुए नेता भी जैसे अशोक तंवर, राजकुमार सैनी आदि सभी यदि पंचायती उम्मीदवार के साथ हो गए और वह उम्मीदवार भी कोई ऐसा हो जो इन दोनों बड़ी पार्टियों से टिकट न मिलने से हताश हो या जिसने निर्दलीय अपना झंडा गाड़ दिया हो, उसे यह सब सहयोग कर दें तो वह भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
यहां देखा जाये तो बरौदा उपचुनाव अब काफी दिलचस्प होता जा रहा है। इसमें यह नही कहा जा सकता कि बाजी कौन मारेगा। हालांकि भाजपा व कांग्रेस अपनी-अपनी जीत का दावा अभी से कर रही है लेकिन इस सीट पर कोई निर्दलिय भी अपना परचम लहरा सकता है। अभी दलो में सेंध लगनी है और बगावत होनी है और ऐसे कुछ निर्दलिय उम्मीदवार भी है जिनकी क्षेत्र में काफी लोकप्रियता है। उन्हे कौन-कौन समर्थन करता है यह समय बतायेगा।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox