राजस्थान/उमा सक्सेना/- राजस्थान की धरती के गौरव, महावीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को जोधपुर के निकट सालवा गांव में हुआ। उनके पिता आसकरण, जोधपुर राजा पवन सिंह के प्रमुख सरदारों में से थे, जिन्होंने दुर्गादास को बचपन से ही शस्त्र और शास्त्र में गहन प्रशिक्षण दिया। दुर्गादास की बचपन की घटनाएँ उनके भविष्य के अदम्य साहस और नेतृत्व का संकेत देती थीं। एक बार उन्होंने राज्य के ऊंटों के रखवाले के खिलाफ तलवार से कार्यवाही की, क्योंकि वह किले की शान के खिलाफ अपशब्द कह रहा था। इस घटना से राजा जसवंत सिंह के मन में उनकी वीरता और स्वामिभक्ति की गहरी छाप पड़ गई।
राजनीतिक उठापटक और युद्धों में योगदान
दुर्गादास के समय राज्य में राजनीतिक षड़यंत्र और युद्ध सामान्य बात थी। मुगल सल्तनत भी क्षेत्रीय सत्ता के लिए लगातार साजिशें कर रही थी। इसी बीच औरंगजेब ने दारा शिकोह पर हमला किया। राजा जसवंत सिंह और दुर्गादास ने दारा के साथ लड़ाई में वीरता दिखाई। सामगढ़ की लड़ाई के बाद दुर्गादास, जसवंत सिंह के दाहिने हाथ बनकर उनकी सैन्य यात्राओं में काबुल से कंधार तक उनका साथ देते रहे।
स्वराज्य और मातृभूमि की रक्षा
वीर दुर्गादास ने अपने जीवन में भारतीय परंपरागत आदर्शों और मातृभूमि के प्रति निष्ठा को सर्वोपरि रखा। उन्होंने अपने राजा की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए औरंगजेब की धमकियों और अनुरोधों को ठुकराया। उनका एकमात्र लक्ष्य अपने राज्य और मातृभूमि की स्वतंत्रता हासिल करना था। कई वर्षों की कुर्बानी और जद्दोजहद के बाद 12 मार्च 1770 को जोधपुर किले पर स्वराज स्थापित हुआ और राजा अजीत की ताजपोशी के साथ दुर्गादास का मिशन सफल हुआ।
वीर दुर्गादास की विरासत
आज वीर दुर्गादास राठौड़ का नाम साहस, स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा के प्रतीक के रूप में स्मरण किया जाता है। उनके अदम्य साहस और रणनीतिक दृष्टि ने उन्हें राजस्थान और भारत के इतिहास में अमर बना दिया। उनकी पुण्यतिथि 22 नवंबर हर वर्ष उनके अद्वितीय साहस और देशभक्ति की याद दिलाती है।


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