राजस्थान/उमा सक्सेना/– राजस्थान भाजपा की राजनीति इस समय ठहरे हुए पानी जैसी दिख रही है, लेकिन भीतर ही भीतर गहरी हलचल भी महसूस की जा रही है। यह हलचल किसी और के लिए नहीं, बल्कि राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए मानी जा रही है। हाल ही में उनकी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से हुई मुलाकात ने राजनीतिक चर्चाओं को हवा दे दी है। माना जा रहा है कि यह मुलाकात उनके लंबे ‘सियासी वनवास’ के अंत की शुरुआत हो सकती है।
भागवत-राजे मुलाकात से बढ़ी अटकलें
जोधपुर प्रवास के दौरान वसुंधरा राजे और मोहन भागवत के बीच करीब 20 मिनट की बातचीत हुई। इस वन-टू-वन मीटिंग के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। खास बात यह है कि राजे ने कुछ दिन पहले धौलपुर में एक धार्मिक मंच से यह कहा था कि “जीवन में हर किसी का वनवास होता है, लेकिन वह स्थायी नहीं होता।” इस बयान को उनकी सियासी वापसी से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके अलावा बीते महीने संसद में उनकी पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी इसी कड़ी का हिस्सा मानी जा रही है।

भाजपा नेतृत्व और संघ की भूमिका
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर इन दिनों कई नाम चर्चा में हैं। ऐसे में पार्टी को एक सशक्त महिला नेतृत्व की भी तलाश है। महिला आरक्षण विधेयक लाने के बाद भाजपा नेतृत्व महिलाओं की बड़ी भूमिका पर जोर दे रहा है। हालांकि, मोहन भागवत पहले ही साफ कर चुके हैं कि आरएसएस भाजपा के संगठनात्मक फैसलों में दखल नहीं देता। उनका कहना था कि संघ केवल सलाह दे सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय भाजपा का ही होता है। बावजूद इसके, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ऐसे अहम पदों पर संघ की सहमति बेहद जरूरी होती है।

वसुंधरा पर भरोसा क्यों?
पार्टी के भीतर एक बड़ा वर्ग लगातार चाहता रहा है कि वसुंधरा राजे को फिर से नेतृत्व की जिम्मेदारी दी जाए। उनका मजबूत जनाधार, संघ से सुधरते रिश्ते और महिला नेतृत्व की जरूरत उन्हें इस दौड़ में महत्वपूर्ण दावेदार बनाते हैं। उनके समर्थक विधायक और सांसद भी लंबे समय से उनकी सक्रिय भूमिका की उम्मीद लगाए बैठे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनीष गोधा का कहना है कि भागवत से मुलाकात निश्चित रूप से अहम है, लेकिन जब तक नतीजे सामने नहीं आते, तब तक इसे केवल कयास ही माना जा सकता है।
धैर्य और संयम से आगे बढ़ीं वसुंधरा
वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन का मानना है कि भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व शैली ने राज्यों में लीडरशिप का समीकरण बदल दिया है। ऐसे में वसुंधरा राजे को उपेक्षा का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी नाराजगी जाहिर नहीं की। उलट, उन्होंने धैर्य और संयम का परिचय दिया। त्रिभुवन कहते हैं कि “वसुंधरा राजे ने विषपान करके भी खुद को गरिमा और शालीनता के साथ प्रस्तुत किया है।” यही उनकी सबसे बड़ी ताकत मानी जा रही है।

निर्णायक संकेत की ओर इशारा?
मोदी सरकार के महिला आरक्षण विधेयक के बाद भाजपा को मजबूत महिला नेतृत्व की जरूरत होगी। इस संदर्भ में वसुंधरा राजे पार्टी के लिए बड़ा एसेट मानी जा रही हैं। ऐसे में मोहन भागवत से उनकी मुलाकात को सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि एक संभावित निर्णायक संकेत माना जा रहा है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि क्या वसुंधरा का राजनीतिक वनवास सचमुच खत्म होने वाला है।


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