ट्रंप की धमकियों पर भारत का कड़ा रुख…

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
December 29, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

ट्रंप की धमकियों पर भारत का कड़ा रुख…

-पटरी से उतर सकते हैं कूटनीतिक रिश्ते, सबसे निचले स्तर पर पंहुचे दोनो देशों के रिश्ते

नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- रूस से तेल खरीदने के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बार-बार धमकियां देने और अब 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाने पर भारत ने भी कड़ा रूख अपना लिया है। यह बात पीएम मोदी के किसानों के हितों से समझौता न करने के संदेश से भी साफ है। विश्लेषकों के अनुसार, 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद दोनों देशों के संबंध सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हितों से समझौता न करने का संदेश देकर काफी हद तक साफ कर दी है। विश्लेषकों का मानना है कि टैरिफ वार कुछ दशकों में भारत-अमेरिका के कूटनीतिक रिश्तों में हुई प्रगति को पटरी से उतार सकती है।

मौजूदा स्थिति पर विश्लेषकों की राय है कि दोनों देशों के रिश्ते 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद से सबसे निचले स्तर पर हैं। विश्लेषकों और अधिकारियों का मानना है कि घरेलू राजनीतिक दबावों के कारण दोनों पक्षों पर अपने-अपने रुख पर अड़े रहने का दबाव है। ट्रंप जहां टैरिफ वार के जरिये मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के अपने नारे को बुलंद करना चाहते हैं। वहीं, पीएम मोदी साफ कर चुके हैं कि अमेरिकी धमकियों के आगे भारत घुटने नहीं टेकेगा। रूस और चीन के साथ नजदीकी बढ़ाने की भारत की कोशिश भी टैरिफ के कारण उपजे संकट से उबरने की रणनीति का हिस्सा है। विश्लेषकों का कहना है, दोनों पक्षों के कड़े रुख की वजह से सहयोग के अन्य क्षेत्रों में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। भारतीय सरकारी सूत्रों ने कहा कि ट्रंप का यह ताना कि भारत को अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान से तेल खरीदना पड़ा सकता है, भी नई दिल्ली को नागवार गुजरा है। यही वजह है कि रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम और उर्वरक खरीदने को लेकर अमेरिका पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाकर भारत ने कड़ा पलटवार किया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि नई दिल्ली को अच्छी तरह पता है कि तनातनी और बढ़ना व्यापार से इतर मामलों में नुकसानदेह साबित हो सकता है।

भारत के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण समय
विश्लेषकों का कहना है कि भारत के लिए यह समय काफी चुनौतीपूर्ण भी है। चीन के विपरीत उसके पास दुर्लभ मृदा खनिजों की आपूर्ति जैसी कोई ऐसी शक्ति नहीं है जिससे वह ट्रंप को किसी भी व्यापार समझौते की शर्तों में सुधार के लिए मजबूर कर सके। यही नहीं, तकनीकी पेशेवरों के लिए वर्क वीजा और सेवाओं के विदेशीकरण जैसे मुद्दों पर भी टकराव की स्थिति बनने के आसार हैं।

प्रतिद्वंद्वियों से मजबूत रिश्तों पर जोर देना होगा
सरकारी सूत्र ने कहा कि अमेरिका संग संबंधों को धीरे-धीरे सुधारने की जरूरत है। भारत को उन देशों के साथ बातचीत करने पर भी ध्यान देना चाहिए, जिन्हें ट्रंप के टैरिफ से नुकसान उठाना पड़ रहा है। इनमें अफ्रीकी संघ और ब्रिक्स समूह शामिल हैं। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विश्लेषक अलेक्सी जखारोव का मानना है कि रूस की ओर से रूस-भारत-चीन की तिकड़ी के संबंधों को बहाल करने की कोशिश की जा सकती है।

एकतरफा फैसला, कोई तार्किक कारण नहीं  
विदेश मंत्रालय में आर्थिक संबंधों के सचिव दम्मू रवि ने कहा कि यह फैसला एकतरफा है। इस तरह का कदम उठाए जाने का कोई तार्किक कारण नजर नहीं आता। वरिष्ठ राजनयिक ने कहा, इस दौर से हमें उबरना होगा। उन्होंने कहा, हम समाधान खोजने के बेहद करीब थे और इसमें कुछ समय के लिए विराम लग गया है। बातचीत अभी जारी है। इसलिए उम्मीद है कि पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारियों को देखते हुए समय के साथ समाधान निकल आएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय उद्योगों पर इससे बहुत ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। वाशिंगटन के कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की एश्ले टेलिस ने कहा, हम ऐसे अनावश्यक संकट की ओर बढ़ रहे हैं, जो भारत के साथ चौथाई सदी की कड़ी मेहनत से हासिल की गई उपलब्धियों को धूमिल कर देगा। विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल समेत पिछले कुछ दशकों में अमेरिकी प्रशासन ने चीन के बढ़ते दबदबे का मुकाबला करने के दीर्घकालिक प्रयासों के तहत भारत के साथ एक महत्वपूर्ण साझेदार के तौर पर संबंध विकसित किए थे।

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox