नई दिल्ली/- विश्व के कुख्यात मोस्ट वॉनटेड आतंकवादी अल जवाहिरी को जिस ड्रोन से अमेरिका ने काबुल में मार गिराया था अब भारत चीन को उसकी हर चालाकी का जवाब देने के लिए अमेरिका से एमक्यू-9बी ड्रोन को खरीदने की तैयारी कर रहा है। इसे तैयार करने वाली कंपनी जनरल एटॉमिक्स ग्लोबल कॉर्पोरेशन के मुख्य कार्यकारी डॉक्टर विवेक लाल ने कहा है कि खरीदारी को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है।
आईये जानते है आखिर इस एमक्यू-9बी ड्रोन में ऐसी क्या खासियत है जो भारत की पहली पसंद बन गया?
एलएसी बॉर्डर पर चीन की हर चालाकी की निगरानी करेगा एमक्यू-9बी
भारत थल, जल और वायु तीनों सेना के बेड़े में एमक्यू-9बी ड्रोन को तैनात करना चाहता है। इसके लिए करीब 23.96 हजार करोड़, यानी 3 बिलियन डॉलर की लागत से ड्रोन को खरीदने की बातचीत हो रही है। भारत फिलहाल 30 एमक्यू-9बी ड्रोन खरीदना चाहता है। इस ड्रोन को बनाने वाली कंपनी जनरल एटॉमिक्स, इसके मल्टीटैलेंटेड होने का दावा करती है। कंपनी का कहना है कि जासूसी, सर्विलांस, इन्फॉर्मेशन कलेक्शन के अलावा एयर सपोर्ट बंद करने, राहत-बचाव अभियान और हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है। भारत दो मुख्य कारणों से इस ड्रोन को खरीदना चाहता है जिसमे एलएसी से लगे एरिया में चीन को भनक हुए बिना उसकी निगरानी करने के लिए और ‘साउथ चाइना सी’ में चीनी सैनिकों की घुसपैठ को रोकने के लिए।
2001 में पहली बार एमक्यू-9 रीपर ने भरी थी उड़ान
अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक एयरोनॉटिकल के मुताबिक 2001 में एमक्यू-9ए ड्रोन ने पहली बार उड़ान भरी थी। इस ड्रोन का अपडेटेड वर्जन ही एमक्यू-9बी है। 2000 के बाद अमेरिकी सेना को चालक रहित एक ऐसे एयरक्राफ्ट की जरूरत हुई, जिसे रिमोट से कंट्रोल किया जा सके। इसी के फलस्वरूप एमक्यू 9ए बना था। यह लगातार 27 घंटे तक उड़ान भर सकता था। इसके बाद इसी ड्रोन का अपडेटेड वर्जन एमक्यू-नबी स्काई गार्जियन और एमक्यू-9बी सी गार्जियन बना। मई 2021 तक अमेरिका के पास 300 से ज्यादा ऐसे ड्रोन थे।
एक दर्जन से ज्यादा देश एमक्यू-9 ड्रोन इस्तेमाल करते हैं
फ्रांस, बेल्जियम, डोमिनिकन गणराज्य, भारत, जर्मनी, ग्रीस, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, यूके, यूएई, ताइवान, जपान, मोरक्को जैसे दुनिया के 13 से ज्यादा देश इसका इस्तेमाल करते हैं।
अमेरिका ने सोमालिया, यमन और लीबिया में ऐसे ही रीपर ड्रोन का इस्तेमाल किया
अमेरिका ने ‘वॉर ऑन टेरर’ के दौरान प्रिडेटर और रीपर ड्रोन अफगानिस्तान के साथ ही पाकिस्तान के उत्तरी कबाइली इलाकों में भी तैनात किए थे। अमेरिका के ही ड्रोन इराक, सोमालिया, यमन, लीबिया और सीरिया में भी तैनात हैं। रीपर ड्रोन ही था, जिससे यूएस ने अलकायदा के ओसामा बिन लादेन की निगरानी की थी। जिसके बाद नेवी सील्स ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में लादेन को मार गिराया था।
भारत को जरूरत 400 ड्रोन की है, सेना के पास 180 ड्रोन ही हैं
मिलिट्री इंफॉर्मेशन ग्रुप जेन्स के मुताबिक भारत के पास 90 इजराइली ड्रोन हैं, जिनमें से 75 का ऑपरेशन एयरफोर्स के पास और 10 का इंडियन नेवी के पास है। यही नहीं, भारतीय सेना के पास इस वक्त 180 ड्रोन का बेड़ा है, जबकि 400 से ज्यादा ड्रोन की जरूरत है। इंडियन नेवी बिना हथियारों वाले 2 सी गार्जियन ड्रोन्स का लीज पर इस्तेमाल कर रही है। यह अमेरिकी ड्रोन प्रिडेटर का ही वैरिएंट है।
भारतीय सेना के बेड़े में जल्द शामिल होंगी 6 घरेलू ड्रोन
हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल इस समय कम्बाइंड एयर टीमिंग सिस्टम (कैट्स) ड्रोन बना रहा है। इस ड्रोन को तेजस और जगुआर जैसे फाइटर प्लेन से भी ऑपरेट करने की तैयारी हो रही है। ये ड्रोन रडार को चकमा देने में सक्षम होगा।
एचएएल ने दावा किया है कि 2-3 सालों में भारतीय सेना के बेड़े में कैट्स ड्रोन के 4 वैरिएंट शामिल हो जाएगा। जिनके नाम इस तरह से हैं..
1. कैट्स वॉरियर
2. कैट्स हंटर
3. कैट्स इन्फिनिटी
4. कैट्स अल्फा
रूस्तम 2 और घातकः इन घरेलू ड्रोन को भारतीय सेना के बेड़े में शामिल करने के लिए भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं। 2025 से पहले सेना इन ड्रोन का इस्तेमाल करने लगेगी ऐसी संभावना है।
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