कृष्ण के संग भक्ति के रंग, द्वारका इस्कान मंदिर में जन्माष्टमी की तैयारियां शुरू

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December 25, 2025

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कृष्ण के संग भक्ति के रंग, द्वारका इस्कान मंदिर में जन्माष्टमी की तैयारियां शुरू

-मंदिर में पांच दिवसीय उत्सव की तैयारियों में सराबोर दिखे श्रद्धालु इस जन्माष्टमी पर ले जीवनभर कृष्ण से जुड़े रहने का संकल्प

द्वारका/- वृंदावन की तर्ज पर इस्कॉन द्वारका में भी भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी के उत्सव की तैयारियों जोरो से शुरू हो गई हैं। सावन की फुहारों के साथ ही आने वाले उत्सवों के लिए श्रद्धालु पूरी तरह से तैयार दिखाई दे रहे है। चेहरे पर मुस्कान और दिल में खुशी की रंगत बिखेरने वाले त्योहारों का सिलसिला शुरू हो गया है। बहनें जहाँ भाइयों के लिए राखी खरीद रही हैं, नए-नए कपड़ों की खरीदारी में व्यस्त हैं वहीं भाई अपनी बहनों के लिए उपहारों की योजना बना रहे हैं। उधर भक्ति और प्रेम के रंगों में सराबोर कृष्ण भक्त जन्माष्टमी की तैयारियों में पूरे उत्साह के साथ जुटे हुए हैं।  
              दिल्ली के इस्कॉन द्वारका में उत्सव का यह सिलसिला 13 अगस्त को शाम 4 बजे शहर में ‘हरि नाम शोभा यात्रा’ निकालकर आरंभ हो रहा है। फिर 16, 17, 18 व 19 को भक्ति पुरुषोत्तम स्वामी महाराज द्वारा प्रातः 8 बजे कथा और कीर्तन किया जाएगा। हरि नाम संकीर्तन में भक्तगण अधिक से अधिक संख्या में भाग लेंगे। फिर 19 अगस्त को वृंदावन की तर्ज पर जन्माष्टमी के दिन  भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। आधी रात को भगवान कृष्ण के जन्म के पश्चात उनका दिव्य अभिषेक, श्रृंगार, आरती और भोग का कार्यक्रम रहेगा। मिट्टी की हांडियों में माखन और मिश्री का भोग भी उन्हें अर्पित किया जाएगा। रंग-बिरंगे मोहक परिधानों में बच्चों एवं युवाओं द्वारा दामोदर लीला, अघासुर लीला, गोवर्धन लीला आदि लीलाओं का मंचन किया जाएगा।  इसके बाद भक्तों के लिए प्रसादम वितरण किया जाएगा।  
                पूर्ण उत्साह के साथ धूमधाम से भगवान का जन्मोत्सव मनाने के लिए देश-विदेश के फूलों से सजावट आरंभ हो गई है। भक्तों के स्वागत के लिए आँगन की चमक-दमक का काम भी शुरू हो गया है। चारों ओर कहीं रंगोली के रंग भरने के लिए डिजाइनिंग शुरू हो गई है, तो कहीं लहरदार परदों की छटा के लिए पंडाल सजाए जा रहे हैं। चाँद-तारों की तरह मंदिर उस दिन जगमगाता रहे, इसलिए प्रकाश-व्यवस्था के लिए भी अति आधुनिक उपकरणों को विशेष रूप से मँगाया जा रहा है। खासतौर से एलईडी और डिजिटल लाइटें जो तेज रोशनी बिखेरने में कामयाब हैं, उनका विशेष प्रबंध किया जा रहा है।
               मंदिर के प्रमुख प्रबंधकों का कहना है, “इस दिन भगवान के जन्म की खुशी में मंदिर को बाहरी प्रकाश से सजाया जाता है और लेकिन हमारा प्रयास है कि रोशनी की यह किरन भक्तों के ह््रदय तक पहुँचे। वे सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ने का प्रयास करें। आज के दिन की तरह हर दिन मंदिर में आएँ। आप सोचिए, मात्र उनके दर्शन से हम इतना लाभान्वित होते हैं और जब हम निरंतर भगवान की सेवा, अर्चना करने लग जाएँगे, तो भक्तिरस का अनुभव कर सकेंगे। इसलिए भक्तों को अपने भौतिक जीवन में से कुछ पल भगवान के लिए निकालने चाहिए। जहाँ तक भगवान के मनमोहक रूप दर्शन की बात है तो निश्चित उनकी पोशाक और रूप-श्रृंगार की तैयारियाँ भी खूब जोरों से चल रही है। इस दिन भगवान को विशेष आकर्षक पोशाक पहनाई जाएगी। तरह-तरह के आभूषणों से उन्हें सजाया जाएगा।”’
                इस दिन भगवान के महा अभिषेक की तैयारियाँ भी जोरों पर हैं। अनेक दिव्य द्रव्यों जैसे फूलों का रस, नारियल पानी, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल आदि पंच द्रव्यों को मिट्टी की हांडी में डालकर भगवान का दिव्य अभिषेक किया जाएगा। इन द्रव्यों को बनाने में उत्तम किस्म के फलों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त अंगूर, खजूर और सूखे मेवों की माला के हार भी भगवान के कंठ की शोभा बनेंगे।
                 भगवान को 2100 व्यंजनों का भोग लगाने के लिए बादाम की बरफी, श्रीखंड, घेवर,, इमरती, पेड़ा, जलेबी, कचौड़ी, अखरोट की बरफी, नारियल के लड्डू, खजूर की बरफी, लौकी का हलवा, मेवा पाग आदि पकवानों की सूची तैयार की जा रही है। मंदिर की विशाल रसोई के अतिरिक्त भी कई शुद्ध भक्त अपने हाथों से पकवान बनाकर भोग के लिए लाएँगे। पहले भगवान को अर्पित कर उसके बाद स्वयं प्रसाद पाने की यह वैष्णव परंपरा यूँ तो सदियों से चली रही है, पर जब आज भी नन्हे-मुन्नों को यह कहते सुनते हैं कि ‘मम्मी, भगवान को भोग लगा दिया’, तो मन प्रसन्न हो जाता है कि हमारी भारतीय संस्कृति के संस्कार आज भी बच्चों में पल्लवित हो रहे हैं।
               बच्चे हो या बड़े सभी कृष्ण का लगा भोग खाते हैं, कृष्ण का नाम बोलते हैं, कृष्ण भजते हैं, हरि नाम गाते हैं। नृत्य करते हैं। हर दिल में कान्हा, हर घर में कन्हैया की बंसी जब बजती है और मंदिरों में शंख नाद गूँजता है, करताल और मृदंग की थाप तो आसपास का वातावरण भी कृष्णमय हो जाता है। आओ हम सब मिलकर इस आनंदोत्सव में भाग लें और जीवन भर एक सखा तरह तरह कृष्ण के साथ जुड़े रहने का सकंल्प लें।

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