नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- 1959 में माओ त्से तुंग से शुरू हुआ चीन का अंतरिक्ष सफर अब शी जिनपिंग तक आ पंहुचा है। 2045 तक अंतरिक्ष का बेताज बादशाह बनने के लिए चीन ने अब पूरी ताकत झोंक दी है। प्रोजेक्ट 581 से शुरुआत करने वाले चीन का पहला मकसद 1959 तक सैटेलाइट लॉन्च करना था। 24 अप्रैल 1970 को चीन ने अपना पहला सेटेलाइट डॉग फ्रॉम होम सफलतापूर्वक लांच किया। 2003 में चीन ने पहली बार अंतरिक्ष में इंसान को भेजने में सफलता पाई थी और ऐसा करने वाला वह तीसरा देश बन गया था। लेकिन अब चीन अंतरिक्ष का बेताज बादशाह बनने तक ही सीमित नही है इसके साथ वह अंतरिक्ष में मौजूद अकूत बहुमुल्य खजाने पर भी नजर गड़ा चुका है। इसके लिए उसने खुद का स्पेस स्टेशन और सीक्रेट स्पेसक्राफ्ट भी तैयार कर लिये है। हालांकि स्पेस को लेकर यूएनओ ने नियम तय किये है लेकिन अमेरिका, रूस व चीन ने इस पर साईन नही किये हैं।

चीन की स्पेस में उपलब्धियां पर नजर डाले तो 2020 में चांग ई-5 मिशन, चांद की मिट्टी के नमूने इकट्ठा करके धरती पर लौटा। चांद की सतह पर उतरने के बाद इस मिशन ने चांद की रंगीन तस्वीरें भी भेजी थी। 24 अप्रैल 2020 मंगल की संभावनाओं की तलाश में चीन ने नियानवेन-एक प्रोग्राम लांच किया। 7 महीने की लंबी यात्रा के बाद तियानवेन-एक मंगल ग्रह में दाखिल हुआ और 2021 में सॉफ्ट लैंडिंग की। 2011 में चीन ने स्पेस स्टेशन कार्यक्रमों की शुरुआत की उसका पहला छोटा स्पेस स्टेशन 2016 में बंद पड़ गया। इसके बाद चीन ने तय किया कि वह 2022 तक अंतरिक्ष में मानव रहित स्पेस स्टेशन लांच करेगा। 2020 में प्रकाशित होने वाले साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने एक खबर में चीन के एक सीक्रेट स्पेसक्राफ्ट के ट्रायल के बारे में बताया। स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेज कर वापस धरती पर लैंड कराया जा सकता है हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। 2021 में चीन ने स्पेस स्टेशन का पहला मॉडल लांच किया था। अब चीन इसमें साइंस लैब और अन्य माड्यूल जोड़ने का काम कर रहा है।
चीन को उम्मीद है कि 2031 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की सर्विस पूरी होने के बाद तियानगोंग उसकी जगह लेगा। फिलहाल चीन को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से बाहर रखा गया है। अंतरिक्ष में चीन का फ्यूचर प्लान 2022 तक स्टेशन को पूरी तरह से तैयार करना है। मंगल ग्रह की धरती पर उतरने और रोबोटिक मिशन बृहस्पति ग्रह पर मानव रहित खोजी मिशन की शुरुआत, चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजना और लंबे वक्त तक रहने का इंतजाम करना है। 2035 तक ऐसे कैरियर बनाना जिनका इस्तेमाल बार-बार किया जा सके। 2040 तक ऐसे स्पेश स्टेशन बनाना जो परमाणु ऊर्जा से संचालित हो सकें।
चीन की बेताबी की वजह मंगल ग्रह की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए माना जाता है कि वहां जीवन की संभावना हो सकती है। यहां कई बहुमूल्य खनिज होने की बात कही जाती है। चंद्रमा पर रेडियो एक्टिव हिलियम गैस भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध है, इसका इस्तेमाल न्यूक्लियर फ्यूजन को शक्ति प्रदान करने में किया जा सकता है। चांद के वीरान और उजाड़ सतह के नीचे कई बहुमूल्य धातुएं मौजूद होने की संभावना जताई जाती है। इनमें सोना, प्लैटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम और लोहा शामिल है। 2019 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने कहा था कि हम इन दिनों एक्सप्रेस रेस में जी रहे हैं जैसा कि 1960 के दशक में हुआ था। चीन ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चंद्रमा के सुदूरवर्ती इलाके में अपना अंतरिक्ष यान उतारा है और इस पर कब्जा करने की योजना का खुलासा किया है।
इसके साथ ही बता दें कि बता दें कि 1972 के बाद से चांद पर कोई इंसान नहीं गया है लेकिन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 2025 तक अंतरिक्ष यात्रियों को फिर से चांद तक पहुंचाने की कोशिश में है। नासा इस साल अपना आर्टेमिस प्रोग्राम शुरू करेगा जिसमें चांद पर पहली बार महिला अंतरिक्ष यात्री और वहां पर लंबे वक्त तक मौजूदगी बनाए रखने के लिए जरूरी उपकरण और सामान भेजेगा। इसके अलावा भारत, जापान, रूस और दक्षिण कोरिया भी इस साल अपने-अपने लूनर मिशन लांच करने वाले हैं। इनके अलावा कई और देश और कंपनियां भी इस साल धरती की कक्षा में अपने सैटेलाइट छोड़ने वाली हैं। नासा और यूरोपियन एजेंसी चांद के आसपास सैटेलाइट नेटवर्क भी तैयार करने पर काम कर रही है जिसे चांद पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्री आसानी से धरती से संपर्क बनाए रख सकें। रूसिये स्पेस एजेंसी के अनुसार रूस इसी साल जुलाई में लूना 25 लैंडर मिशन चांद पर उतारने जा रहा है। यह पूरी तरह से देश में बना होगा। 45 साल में यह चांद पर उसका पहला मिशन होगा।

अंतरिक्ष के नियम 1967 में हुए संयुक्त राष्ट्र के आर्टिकल पर समझौते के मुताबिक अंतरिक्ष के किसी विषय पर कोई भी देश दावा नहीं कर सकता। 1979 में हुआ संयुक्त राष्ट्र का चंद्रमा समझौता कहता है कि अंतरिक्ष का कमर्शियल इस्तेमाल नहीं होना चाहिए हालांकि अमेरिका, चीन और रूस ने इस पर साइन नहीं किए है। वहीं अमेरिका अपने कोटे में सरकार को बढ़ावा दे रहा है जिसके तहत अलग-अलग देश चंद्रमा के रिसोर्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं। रूस और चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं क्योंकि उनका तर्क है कि अमेरिका के पास अंतरिक्ष के नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है यानी सीधे शब्दों में कहें तो संयुक्त राष्ट्र ने अंतरिक्ष के लिए कुछ नियम जरूर बनाए हैं लेकिन सुपर पावर मनमर्जी कर रही है। वह जानती है कि अंतरिक्ष में जो सबसे पहले और पुख्ता तौर पर पहुंचेगा वही उसका कंट्रोल होगा।


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