• DENTOTO
  • होलिका दहन की कहानी, सदियों से क्यों जलती आ रही है होलिका और प्रह्लाद की प्रतीमा?

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    June 2025
    M T W T F S S
     1
    2345678
    9101112131415
    16171819202122
    23242526272829
    30  
    June 21, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    होलिका दहन की कहानी, सदियों से क्यों जलती आ रही है होलिका और प्रह्लाद की प्रतीमा?

    नई दिल्ली/सिमरन मोरया/ हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारत वासियों के लिए होली का त्यौहार बाकी कई त्योहारों से प्रमुख है। होली के त्यौहार को सभी बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं इस दिन लोग अपने घरों में नाच गाना करते हैं ढोल बजाते हैं। होली के दिन मां अपने परिवार और बच्चों के लिए निम्न प्रकार के पकवान बनाती है।

    हिंदुओं के लिए होली का पर्व बेहद ही प्रिय और रंगों से भरा होता है। इस दिन लोग सभी को होली के पर्व की शुभकामनाएं देते हैं और उनके अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जो लोगों में हो रहे मन-मुटाव को खत्म कर देता है और उनके जीवन में खुशियाली भर देता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली से एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है।

    होलिका दहन की कहानी

    राजा हिरण्यकश्यप के घर में एक कोमल से लड़के ने जन्म लिया उसका नाम था प्रहलाद। हिरण्यकश्यप बहुत ही घमंडी और अकडू स्वभाव के थे। वह खुद से बढ़कर किसी को भी नहीं मानते थे। वे भगवान में विश्वास नहीं करते थे परंतु उनका पुत्र प्रहलाद भगवान का बहुत बड़ा भक्त और विष्णु भगवान में आस्था रखता था। प्रहलाद की भगवान में भक्ति और आस्था हिरण कश्यप को अच्छी नहीं लगती थी उन्होंने प्रहलाद को बहुत बार समझाया कि वह विष्णु भगवान के पूजा करनी छोड़ दे लेकिन प्रहलाद ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि उनके तो रोम-रोम में विष्णु नाम बसा है।

    अपने पिता के इतना मना करने पर प्रहलाद नहीं माने तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को सबक सिखाने का सोचा। उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को भगवान शिव से वरदान के रूप में एक चादर मिली थी जो होलिका को अग्नि मैं जलते नहीं देती। इसी वरदान का फायदा उठाने के लिए राजा हिरण्यकश्यप और उनकी बहन होलिका ने सोचा वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाएगी जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाएगा। परंतु भगवान विष्णु की कृपा से वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलाद बच गया। तब से होलिका पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox