सरसों की खेती: उच्च उत्पादकता के लिए उन्नत तकनीक और सुझाव

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

October 2024
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031  
October 16, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

सरसों की खेती: उच्च उत्पादकता के लिए उन्नत तकनीक और सुझाव

नई दिल्ली/अनीशा चौहान/-  भारत में सरसों रबी मौसम की प्रमुख तिलहनी फसल है, और खासतौर पर दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में इसे विभिन्न फसल चक्रों के साथ उगाया जाता है। सरसों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कुछ मुख्य कारकों पर ध्यान देना आवश्यक है, जैसे उन्नत किस्मों का चयन, बीज एवं मृदा उपचार, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग, और पादप रोगों एवं कीटों का सही प्रबंधन।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा सुझाई गई उन्नत तकनीकों को अपनाकर किसान अपनी सरसों की पैदावार को बढ़ा सकते हैं और कम लागत में वैज्ञानिक तरीके से खेती कर सकते हैं।

1. उन्नत किस्मों का चयन:
किसान अधिकतम उत्पादन और तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं। कुछ प्रमुख किस्में हैं:

  • गिरिराज
  • आर.एच. 749, आर.एच. 725, आर.एच. 1424
  • पूसा सरसों-25, पूसा सरसों-26, पूसा सरसों-28, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-32, पूसा सरसों-33

2. खेत का चुनाव एवं तैयारी:
सरसों की फसल के लिए बलुई दोमट से दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद खेत की एक-दो जुताई करें, ताकि भूमि में नमी संरक्षित रहे और खरपतवार न पनप सकें। बुवाई से पहले खेत को दो बार जुताई करके अच्छी तरह तैयार करें।

3. बुवाई का समय एवं विधि:

  • सिंचित क्षेत्रों में सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा होता है।
  • असिंचित क्षेत्रों के लिए सितंबर का द्वितीय पखवाड़ा उपयुक्त माना जाता है। विलम्ब से बुवाई करने पर माहू और अन्य कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप होने की संभावना रहती है।

4. पोषक तत्व प्रबंधन:
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें। सिंचित क्षेत्रों में निम्नलिखित पोषक तत्वों का उपयोग करें:

  • नाइट्रोजन: 80 किग्रा प्रति हेक्टेयर
  • फास्फोरस: 50-60 किग्रा प्रति हेक्टेयर
  • पोटाश: 30-40 किग्रा प्रति हेक्टेयर

फास्फोरस का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में करें, क्योंकि यह सल्फर की उपलब्धता भी सुनिश्चित करता है। यदि सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग न हो, तो सल्फर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर सल्फर का प्रयोग करें।

डी.ए.पी. के प्रयोग के साथ 300 किग्रा जिप्सम प्रति हेक्टेयर का उपयोग फसल के लिए लाभदायक होता है। साथ ही, प्रति हेक्टेयर 60 कुन्तल सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करने से भी अच्छी उपज मिलती है।

5. बीज एवं मृदा उपचार:

  • बीज को जैव फफूंदीनाशी ट्राईकोडर्मा विरिडी (5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करके बुवाई करें।
  • मृदा उपचार के लिए फसल की बुवाई से पहले जैव फफूंदीनाशी ट्राईकोडर्मा विरिडी (5 किग्रा प्रति हेक्टेयर) को 400 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर जुताई के समय खेत में डालें।

6. बीज की उपलब्धता:
किसान कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों और राज्य सरकार के कृषि विभाग से उपरोक्त उन्नत किस्मों के बीज खरीद सकते हैं।

निष्कर्ष:
उन्नत तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान कम लागत में सरसों की उच्च उत्पादकता प्राप्त कर सकते हैं। खेत की तैयारी, सही बुवाई समय, संतुलित पोषण, और कीट-रोग प्रबंधन जैसे उपायों पर ध्यान देकर सरसों की खेती को सफल और लाभदायक बनाया जा सकता है।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox