नई दिल्ली/उमा सक्सेना/- बंगाल सहित देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, जिसे लेकर राजनीतिक हलचल और तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। भाजपा का आरोप है कि इस पुनरीक्षण के जरिए अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल किया जा रहा है और इससे बंगाल समेत कुछ राज्यों की जनसांख्यिकी में बदलाव किया जा रहा है। पार्टी का कहना है कि इससे चुनावी गणित प्रभावित होगा और स्थानीय नागरिकों की हिस्सेदारी कम होगी।
टीएमसी का आरोप: एसआईआर भी एनआरसी जैसा
वहीं, असम से तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव ने एसआईआर की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे एक तरह का एनआरसी (National Register of Citizens) बताया। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि एसआईआर का उद्देश्य भी वही है जो एनआरसी का था। उनका कहना था कि अगर असम में एसआईआर किया जाता तो भाजपा को जनता के सामने एनआरसी की असफल प्रक्रिया का जवाब देना पड़ता। सुष्मिता देव ने याद दिलाया कि असम में 2013 से 2019 के बीच तीन करोड़ से अधिक लोगों ने अपने नागरिक दस्तावेज प्रस्तुत किए, लेकिन प्रक्रिया पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया और केंद्र की रणनीति
सुष्मिता देव ने आरोप लगाया कि भाजपा असम में एसआईआर कराने से बच रही है, ताकि एनआरसी की विफलता के कारण पैदा होने वाले राजनीतिक नुकसान से बचा जा सके। उनका कहना था कि इस तरह की प्रक्रिया केवल राज्यों में मतदाता सूची को बदलने और राजनीतिक लाभ लेने का एक तरीका बन गई है। इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस जारी है, और इसे आगामी चुनावों में रणनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रक्रिया और भविष्य की संभावनाएँ
एसआईआर का उद्देश्य मतदाता सूची में सुधार और अद्यतन करना बताया जा रहा है, लेकिन विपक्ष इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठाने का अवसर मान रहा है। राजनीतिक दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया के सही क्रियान्वयन और पारदर्शिता पर ध्यान देना आवश्यक है, ताकि किसी भी नागरिक के अधिकारों से छेड़छाड़ न हो और चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष बनी रहे।


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