बांग्लादेश/नई दिल्ली/अनीशा चौहान/- साल 1971 में अस्तित्व में आया बांग्लादेश अब आंदोलनों और तख्तापलट की कई कहानियों का गवाह बन चुका है। हाल के वर्षों में, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को एक बड़े आंदोलन के सामने झुकना पड़ा और अंततः देश छोड़कर भागना पड़ा। जुलाई में शुरू हुआ आरक्षण विरोधी आंदोलन ने बांग्लादेश को हिला कर रख दिया। इस आंदोलन की शुरुआत मात्र तीन छात्रों ने की थी, जो ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे।
तीन छात्रों की भूमिका
ढाका विश्वविद्यालय के छात्र नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर मजूमदार ने इस आरक्षण विरोधी आंदोलन की नींव रखी। इन छात्रों ने “स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट” का नेतृत्व किया और सरकार से नई कोटा प्रणाली में बदलाव की मांग की। जब सरकार ने इसे मानने से इनकार किया, तो आंदोलन उग्र हो गया। जुलाई 19 को इन तीनों छात्रों को अगवा कर लिया गया और मारपीट की गई, लेकिन बाद में इन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद, इन छात्रों ने आंदोलन की कमान संभाली और शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
हिंसा और मौतों का सिलसिला
आरक्षण विरोधी आंदोलन धीरे-धीरे सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया। जब सरकार ने नए कोटा सिस्टम को वापस लेने से मना कर दिया, तो छात्र सड़कों पर उतर आए। इस दौरान हिंसा और संघर्ष ने विकराल रूप ले लिया। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच खूनी संघर्ष में लगभग 300 लोगों की जान चली गई। शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। कई सरकार समर्थकों की हत्या की गई और कई नेताओं के घर जलाए गए हैं।
भविष्य की दिशा
बांग्लादेश में अब अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा, जिसमें विभिन्न पेशों के लोगों को शामिल किया जाएगा। शेख हसीना अभी भी भारत में ही हैं और उन्हें इंग्लैंड या फिनलैंड जाने की संभावना जताई जा रही है।
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