प्यार पच्चीसा(भाग 3)

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
December 29, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

बिलासपुर/छत्तीसगढ़/- रोहन, एक उभरता हुआ कवि, अपनी गहरी भावनाओं और संवेदनशील कविताओं के लिए जाना जाता था। उसकी दुनिया शब्दों, भावनाओं और सपनों से बुनी हुई थी, लेकिन बिछड़ने के बाद भी उसका दिल दीपा के इर्द-गिर्द घूमता था। दीपा, एक आकर्षक और महत्वाकांक्षी लड़की, जिसके सपने बड़े थे और जिसका प्यार हमेशा शर्तों के साथ आता था। रोहन की कविताएँ दीपा के लिए लिखी जाती थीं, लेकिन दीपा की नज़रें रोहन की सादगी और उसकी कविताओं की गहराई से ज्यादा उसकी बढ़ती प्रसिद्धि और संभावनाओं पर थीं।

इधर दीपा का पति रमेश भी दीपा से ज़्यादा अपनी बिसनेस पर ध्यान देता है। दीपा शादी के पहले ही सरकारी सेवा से इस्तीफ़ा दे चुकी थी। एक दिन उसने बड़े अरमान से रोहन को कॉल किया । हाल चाल पूछने के बाद अपने जीवन का सच बताया और बोली मुझे माफ़ कर दो,,मैं भटक गई थी,,रमेश के साथ नहीं रह सकती । रोहन ने समझाया अब आप रमेश की पत्नी हैं,,,मुझे माफ़ करें,,बोलकर कॉल काट दिया।

रोहन को साहित्य जगत में पहचान मिलने लगी, समाचार पत्रों और टीवी चेनल पर रोहन की शोहरत बढ़ रही थी। दीपा की अपेक्षाएँ बढ़ने लगीं। वह चाहती थी कि रोहन अपनी कविताओं को और व्यावसायिक बनाए, बड़े प्रकाशकों के साथ सौदे करे, और अपनी एक ऐसी जिंदगी बनाए जो चमक-दमक से भरी हो। लेकिन रोहन का दिल कविता की आत्मा को बेचने को तैयार नहीं था। उसने दीपा से फोन कह दिया था, “मेरी कविताएँ मेरा सच हैं, दीपा। इन्हें मैं बाज़ार का माल नहीं बना सकता।”
एक शाम फिर कॉल करती है दीपा उसकी बात सुनकर रोहन अपनी डायरी खोलकर पढ़ता है, “दीपा, तुम मेरी कविता थीं, लेकिन तुमने मेरे शब्दों को कभी नहीं समझा। मेरी भावनाओं का सम्मान तो दूर ग़रीबी के कारण छोड़कर गई थी। अब मुझे माफ़ करो,रमेश जी के साथ रहो,,उनके बराबरी का धनी आदमी मैं नहीं हूं,,इतना कहकर फिर से कॉल काट दिया।

कुछ दिन बाद प्रांतीय साहित्य समारोह में रोहन को अपनी नई किताब खुला-आकाश के विमोचन के लिए राजधानी में बुलाया गया। वहाँ उसकी मुलाकात एक युवा लेखिका, माया से हुई। माया की बातों में वही संवेदनशीलता थी जो रोहन की कविताओं में झलकती थी। माया ने रोहन की कविताएँ पढ़ी थीं और कहा, “आपकी कविताएँ मेरे दिल को छूती हैं, रोहन जी। इनमें एक ऐसी छुपी उदासी है जो खुलकर बोलती है।” रोहन मुस्कुराया, लेकिन उसका मन दीपा की पुरानी यादों में खो गया।

कहानी यहाँ एक मोड़ लेती है। क्या रोहन माया के साथ एक नई शुरुआत करेगा, जो उसकी कविताओं को समझती है, या वह दीपा की यादों में डूबा रहेगा? क्या दीपा कभी लौटेगी, और अगर लौटेगी, तो क्या रोहन उसे फिर से अपनाएगा?

राजेन्द्र रंजन गायकवाड़सेवानिवृत्त केंद्रीय जेल अधीक्षक

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox