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    दुनिया में मची रूस व चीन की कोरोना वैक्सीन मंगवाने की होड़

    -चीनी वैक्सीन साइनोफार्म को 50 करोड़, साइनोवैक को 45 करोड़ व रूस की स्पूतनिक वी 26 करोड़ के आर्डर मिले

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- अमेरिका व यूरोप से मायूस विश्व के अधिकतर देश अब कोरोना वैक्सीन के लिए चीन व रूस पर निर्भर होते जा रहे हैं। विश्व में रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को करीब 60 देशों ने अपने यहां मान्यता दे दी है। वहीं चीनी वैक्सीन साइनोफार्म को 50 करोड़, साइनोवैक को 45 करोड़ के आर्डर मिल चुके हैं। जिसके बाद से इन वैक्सीन को पाने के लिए दुनिया में होड़ सी मच गई है।
                  यहां बता दें कि नये घटनाक्रम में रूस में विकसित कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक वी का अब बड़े पैमाने पर उत्पादन चीन में हो रहा है। इसलिए अब बहुत से देशों में जब स्पूतनिक वी की डोज पहुंचेंगी, तो उस पर मेड इन चाइना लिखा होगा। पिछले एक महीने में चीनी कंपनियों ने स्पूतनिक वी के 26 करोड़ डोज के उत्पादन का करार रूस से किया है। गौरतलब है कि स्पूतनिक वी के इस्तेमाल की मंजूरी 60 से ज्यादा देशों में दे चुकी है। समझा जाता है कि रूस में इतने बड़े पैमाने पर उत्पादन का अभाव है।
                     यहां यह बताना भी जरूरी है कि अमेरिका व पश्चिमी देशों के मदद के लिए आगे ना आने के कारण रूसी और चीनी वैक्सीन की मांग अब लगभग पूरी दुनिया से आ रही है। गौरतलब है कि पश्चिमी देशों पर वैक्सीन की जमाखोरी के आरोप लगे हैं। ब्रिटेन की ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक ताजा शोध के मुताबिक कनाडा, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन डोज इकट्ठे कर लिए हैं कि वे अपनी पूरी आबादी का तीन बार टीकाकरण कर सकते हैं। अमेरिका ने भी एस्ट्रा जेनिका वैक्सीन का बड़ा भंडार बना रखा है। जबकि दूसरी तरफ ज्यादातर देशों के पास अपनी आबादी के टीकाकरण के लिए भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
                   पश्चिमी देशों के इस रुख के कारण चीन और रूस को वैक्सीन के जरिए विकासशील देशों की सद्भावना हासिल करने का मौका मिला है। मास्को स्थित ऑस्ट्रेलियाई दूतावास में चीन-रूस संबंधों के विशेषज्ञ बोबो लो ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से कहा कि रूस और चीन दोनों ने इसे अपने लिए अवसर के रूप में लिया है। उन्होंने कहा- ‘दुनिया को यह दिखाना उनके लिए फायदेमंद है कि पश्चिम ने स्वार्थी रुख अपनाया है।’
                   पश्चिमी देशों का आरोप है कि रूस और चीन ने मिल कर पश्चिमी देशों में बनी वैक्सीन की साख को खत्म करने के लिए दुष्प्रचार अभियान चलाया है। उन्होंने फाइजर और एस्ट्रा जेनिका की वैक्सीन को खास निशाना बनाया। बोबो लो ने कहा कि रूस और चीन दोनों का हित अमेरिकी नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था की साख खत्म करने में है। उधर चीन खुद को विकासशील देशों के नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।            
                  रूस कोरोना वैक्सीन बनाने वाला दुनिया का पहला देश बना था। तब पश्चिमी देशों ने इस वैक्सीन की साख पर सवाल उठाए थे। ऐसे सवाल तब तक उठाए जाते रहे, जब तक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट ने इसके 91.6 फीसदी तक प्रभावी होने की पुष्टि नहीं कर दी। अब स्पूतनिक वी की लाखों डोज दुनिया भर में भेजे जा रहे हैं। उसके साथ ही चीन में बने साइनोवैक और साइनोफार्म वैक्सीनों का भी बड़े पैमाने पर निर्यात हो रहा है। साइनोफार्म वैक्सीन के इस्तेमाल को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मंजूरी दे दी है।
                   ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक लैटिन अमेरिकी देशों ने रूसी और चीनी वैक्सीनों की बड़े पैमाने पर खरीदारी की है। ये इलाका अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में रहा है। इसलिए यहां रूसी और चीनी वैक्सीन आने से पश्चिमी रणनीतिकार परेशान हैं। उधर दक्षिण-पूर्व एशिया में अमेरिका के परंपरागत सहयोगी देश इंडोनेशिया ने भी वैक्सीन के लिए चीन का रुख किया है। वह साइनोवैक की साढ़े 12 करोड़ डोज की खरीदारी कर चुका है। साइनोवैक का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार टर्की है। उसने इसके दस करोड़ डोज मंगवाई हैं।
                    रूस के सॉवरेन वेल्थ फंड आरडीआईएफ के मुताबिक स्पुतनिक वी के ढाई अरब डोज के ऑर्डर इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी को मिल चुके हैं। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक साइनोफार्म के 50 करोड़ डोज के लिए ऑर्डर हासिल हो चुके हैं। साइनोवैक के 45 करोड़ डोज के लिए ऑर्डर मिले हैं। ये कंपनी दस देशों को अपनी तकनीक देने के लिए तैयार हो गई है, जहां इस वैक्सीन का उत्पादन होगा।
                   वेबसाइट थिंक ग्लोबल हेल्थ के मुताबिक चीन ने 65 देशों को वैक्सीन अनुदान के रूप में दिए हैं। उनमें 63 वे हैं, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा हैं। अब चीन में स्पुतनिक वी का उत्पादन भी शुरू हो गया है। 19 अप्रैल तक चीन की कई प्राइवेट कंपनियां स्पुतनिक वी की 26 करोड़ डोज के उत्पादन का करार रूस के आरडीआईएफ के साथ कर चुकी थीं। इसे वैक्सीन के क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग की मिसाल के रूप में पेश किया जा रहा है।

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