देश-विदेश/- पिछले काफी समय से ताइवान को लेकर चीन व अमेरिका में तनाव की स्थिति बनी हुई है। इस तनाव ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की चिंता बढ़ा दी है। आसियान ग्रुप का मानना है कि यही चीन व अमेरिका में ताइवान को लेकर टकराव बना तो आसियान क्षेत्र की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी और कुछ छोटे देशों को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
ताइवान को लेकर टकराव पिछले महीने के आरंभ में अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद से बढ़ता चला गया है। विश्लेषकों के मुताबिक दक्षिण-पूर्व एशिया में एक खेमा अभी भी ऐसा है, जिसकी राय में इस टकराव के असर को काबू में रखना संभव है। इंडोनेशिया के वित्त मंत्रालय में राजकोषीय नीति एजेंसी के प्रमुख फेबरियो काकारिबू ने कहा है कि ताइवान संकट का वित्तीय ‘सीमित’ प्रभाव ही होगा।
लेकिन कई कुछ दूसरे नेताओं ने युद्ध के गंभीर परिणामों की चेतावनी दी है। मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने आरोप लगाया है कि अमेरिका ताइवान मामले में युद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है। सिंगापुर के विदेश मंत्री विवान बालाकृष्णन ने कहा है- ‘यह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक क्षण है।’ उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन के संबंधों के पूरी तरह टूट जाने का मतलब होगा ऊंची महंगाई और सप्लाई चेन में नई रुकावटें। इससे दुनिया और बाधित और खतरनाक जगह बन जाएगी।
पेलोसी की यात्रा के बाद दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के विदेश मंत्रियों की एक बैठक कंबोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह में हुई थी। उसमें सभी पक्षों से संयम दिखाने और भड़काऊ कदमों से बचने की अपील की गई थी। विश्लेषकों के मुताबिक आसियान की यह चिंता वाजिब है। अगर ताइवान को लेकर युद्ध हुआ, तो इसका दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए विनाशकारी असर होगा। इस इलाके से होने वाला लगभग सारा आयात और निर्यात ताइवान जलमडरूमध्य के रास्ते होता है। युद्ध की स्थिति में ये मार्ग बंद हो जाएगा। इसके अलावा ताइवान आसियान देशों को हर साल लगभग 70 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है। इस पर भी युद्ध का प्रभाव होगा।
वैसे आसियान को सबसे ज्यादा चिंता इस बात से है कि युद्ध होने पर पश्चिमी देश निश्चित रूप से चीन पर सख्त प्रतिबंध लगा देंगे। अधिक संभावना है कि तब चीन को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के सिस्टम स्विफ्ट से बाहर कर दिया जाए। उससे आसियान क्षेत्र की सारी अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाएगी। चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है।
समझा जाता है कि अमेरिका और चीन में युद्ध हुआ तो वह निश्चित रूप से कई देशों तक फैल जाएगा। दक्षिण कोरिया, जापान और फिलीपींस जैसे देशों में अमेरिकी सैनिक अड्डे हैं। अमेरिका निश्चित रूप से उन अड्डों का इस्तेमाल करेगा। उस सूरत में इन देशों को चीन अपना दुश्मन घोषित कर देगा। विश्लेषकों के मुताबिक मलेशिया और वियतनाम भी दक्षिण चीन सागर के इतने करीब हैं कि युद्ध के असर से वे खुद को नहीं बचा पाएंगे।
एक राय यह है कि अगर अमेरिका ताइवान पर कब्जा करने से चीन को नहीं रोक पाया, तो इस क्षेत्र के तमाम देशों का उसकी क्षमता में भरोसा चूक जाएगा। उसका बहुत ही दूरगामी असर इस क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था पर होगा। दक्षिण-पूर्व एशिया के देश उतनी बड़ी उथल-पुथल को झेल पाने के लिए अभी तैयार नहीं हैं।
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