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    चहक…वह गौरैया की!आ…लौट के आ फिर!

    -लेखक साधना सोलंकी, जयपुर

    एसी रूम में दादी का मन बेचैन है। यदा कदा घबराकर कहती है… नकली हो गया जमाना…कुछ असली नहीं रहा…रोशनदान चले गए… खिड़कियां बंद हो गई… न नीम का पेड़…न आंगन…एसी की नकली हवा  रह गई..असल हवा को तरस गया मन…गौरैया भी नहीं दीखती दूर दूर तक!

    पुरानी पीढ़ी के दादा दादी, नाना नानी, ताऊ ताई …कुदरत और जीवन शैली को लेकर सबकी व्यथा कथा एकसी है। चहुं ओर कंक्रीट के जंगल.. पंछी परिंदे नदारद …उनके अस्तित्व को बने रहने को जो चाहिए था, वह बचा ही नहीं…उन्हें जाना ही था!

    क्यों चली गई गौरैया!

    आहार पर प्रहार
    वह नन्ही फुदकती घरेलू चिड़िया गौरैया, जिसे घर के रोशनदान में,आंगन के दरख्त पर, गौशाला के चौबारे में, बस्ती के आस पास  अपना घोंसला बनाना पसंद था, बेफिक्री से घर भर को अपने कलरव से चहकाए रहना भाता था… घर के बड़े बच्चों की वह चहेती मित्र थी…अब आंखों से ओझल है। बहरहाल इस पर जानकर कहते हैं, गौरैया की संख्या में कमी के मुख्य कारणों में से एक उनके आहार का खत्म हो जाना है।  गौरैया अपने नन्हों के लिए खेत खलिहानों से कीड़े चुन कर लाती है। कीड़े समाप्त कर दिए गए। अंधाधुंध कीटनाशक का प्रयोग इसका कारण माना जा रहा है। गौरैया अपने बच्चे को फसलदृसागदृसब्जी-फलों में लगनेवाले कीड़े  खिलाती है।

    कुदरती कीट नियंत्रक गौरैया
    बीज, अनाज और लार्वा को खाकर गौरैया ने प्रभावी कीट नियंत्रक एजेंट की भूमिका का निर्वाह सदियों से किया, पर हमने स्वार्थी बन उसकी यह भूमिका कीटनाशक के हवाले करदी। परिणाम कि गौरैया व अन्य परिन्दों का जीवन संकट से घिर गया। परागण पौधों के लिए  महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो गौरैया द्वारा भी की जाती है।  भोजन की खोज के दौरान पौधों के फूलों पर यह चिड़िया जाती हैं और परागकणों को स्थानांतरित करने में अप्रत्यक्ष सहायक बनती हैं।

    यों हुई शुरुआत…
    पहली बार यह दिवस 20 मार्च 2010 में मनाया गया। इसके बाद
    हर साल 20 मार्च को नेचर फॉरएवर सोसाइटी (भारत) और इको-सिस एक्शन फ़ाउंडेशन (फ्रांस) के सहयोग से विश्व गौरैया दिवस (ॅवतसक ैचंततवू क्ंल) मनाया जाता है। इसकी शुरूआत नासिक के रहने वाले मोहम्मद दिलावर ने गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति की सहायता करने के लिए ’नेचर फॉरएवर सोसायटी’ (छथ्ै) की स्थापना कर की थी।

    लोक मान्यता…
    बुजुर्ग कहते है कि जहां गौरैया घोंसला बना लेते हैं, उस घर में सदा खुशहाली रहती है। शास्त्रों के अनुसार, जिस घर में चिड़िया या गौरैया का घोंसला होता है, वहां कभी धन की कमी नहीं रहती। मान्यता है कि जिन घरों में चिड़िया अपना घोंसला बनाती है, वहां खुशियां भी चहचहाती हैं।

    गंभीरता से करने होंगे जतन
    बच्चों की पशु पक्षियों से मुलाकात, उनके प्रति दोस्ताना रुख, कुदरती तरीके से उनके लिए आहार, आवास की माकूल व्यवस्था करनी ही होगी।

    रौनक वह चिरैया की…
    आ…लौट के आ फिर!
    चहक…वह  गौरैया की!
    आ…लौट के आ फिर!

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