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    गाय के गोबर और छाछ से तैयार होने वाला ये लिक्विड है जमीन और फसल के लिए अमृत, जानें इसके फायदें

    मानसी शर्मा /-   अगर आप भी अपने खेत में रासायनिक खाद और कीटनाशक का उपयोग करते हैं और कुछ समय में आपकी भूमि की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है, तो आज हम आपको ऐसी जैविक खाद और तरल के बारे में बताने जा रहे हैं. जिससे आपकी भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी। सिरोही जिले के ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा शुरू की गई यौगिक खेती की पहल से यहां की भूमि के हिसाब से ना हो पाने वाली फसलें भी तैयार की जा रही है. इसमें बिना किसी खतरनाक रसायन के तैयार की जा रही खाद अहम भूमिका निभा रही है। खाद और प्राकृतिक रूप से अपनाई गई तकनीकों के साथ फसल को सकारात्मक वाइब्रेशन भी दी जा रही है. इससे यहां काफी अच्छी उपज हो रही है. माउंट आबू की तलहटी में तपोवन और आरोग्य वन में कई बीघा इलाके में आधुनिक खेती हो रही है. इसमें ड्रैगन फ्रुट, दुबई के खजूर, ता‌इवानी पपीते के अलावा कई प्रकार की सब्जियां और फल की खेती हो रही है.

    2 हजार लीटर प्रति एकड इस्तेमाल करने से होगा फायदा

    बीके चंद्रेश भाई ने बताया कि आरोग्य वन में हो रही खेती शत-प्रतिशत जैविक तरीके से होती है. यहां पर गौकृपाअमृत कल्चर तैयार कर रहे हैं। जमीन की उर्वरा शक्ति और इम्यून सिस्टम को डेवलप करने के लिए अच्छे बैक्टेरिया का उपयोग किया जाता है। इसे अगर 2 हजार लीटर प्रति एकड के हिसाब से इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ घन जीवामृत, जिसे गोबर खाद से तैयार किया जाता है। इससे जमी की उर्वरा शक्ति अच्छी हो जाती है. इससे कीट नियंत्रण करने में भी मदद मिलती है। कोई भी किसान इसें पहले छोटे रूप में सीखे। इसके बाद उपयोग करें. जब तक इसका अच्छा ज्ञान नहीं होगा, तब तक सफलता नहीं मिलेगी। प्राकृतिक खेती सुंदर विषय है, जिसे हर किसान को समझना चाहिए. कोई भी किसान यहां आकर इसका प्रशिक्षण निशुल्क लें सकता है.

    ऐसे तैयार होता है ये लिक्विड

    बीके ललन भाई ने बताया कि तपोवन में तीस पैंतीस गाय के गोबर से दवाई तैयार की जाती है. जैविक विधि से तरल तैयार की जाती है. इससे मिट्टी सॉफ्ट हो जाती है. इससे जमीन के नीचे चले गए केंचुए ऊपर आने लगते हैं. केंचुए भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत जरूरी है. घन जीवामृत बनाते हैं। नीम खल, सरसो का खली को पानी में रखकर तरल तैयार करते हैं। 1 लीटर में 200 लीटर पानी डालकर इसमें दो किलो गोबर, देशी गाय का छाछ डालकर उसे 7 दिन तक रखा जाता है। 7 दिन के बाद ये तैयार हो जाता है। धरती को पौष्टिकता इससे मिलती है. हर पौधे में 1-1 लीटर के हिसाब से तरल दिया जाता है. इस तरल को ड्रिप में डालकर ही दिया जाता है. इससे यहां काफी सफलता मिली है. देशभर से आने वाले किसान भी यहां प्रशिक्षण लेकर जा रहे हैं।

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