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  • खिलाड़ियों को करोड़ों

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    -जवानों की जान की कीमत मात्र 35 लाख- रणवीर सिंह -सरकार ने सीआरपीएफ के जवानों की शहादत राशि 21 व 25 लाख से बढ़ाकर 35 लाख की, कानफेडेरेशन ने मांगे एक करोड़

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/भावना शर्मा/- अभी हाल ही में सीआरपीएफ द्वारा ड्यूटी पर शहीद होने वाले जवानों के परिजनों को जोखिम निधि से मिलने वाली आर्थिक मदद को केंद्र सरकार ने 21 व 25 लाख रूपये से बढ़ाकर 35 लाख रूपया करने की नीति पर कॉनफैडरेसन आफ़ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वैलफेयर एसोसिएशन ने सवाल उठाते हुए कहा कि खिलाड़ियों को मेडल लाने पर करोड़ो रूपये लेकिन वहीं एक जवान की कीमत सिर्फ 35 लाख रूपये लगाई हैं गया है। एसोसिएशन के महासचिव रणवीर सिंह ने सरकार से जवानों की शहादत के लिए एक करोड़ रूपये करने की मांग की है।
                    रणबीर सिंह के अनुसार जब एक खिलाड़ी देश के लिए मैडल जीतकर लाता है तो सरकारें उसके सम्मान में 4 ,6 से 8 करोड़ रुपए राशि व अन्य उपहारों से लाद देते हैं लेकिन जब एक जवान देश के लिए जान कुर्बान करता है तो उस शहीद परिवार को इस तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती। हालांकि कि शहादत को तराजू में नहीं तौला जा सकता ओर नाही इसका कोई मोल होता। गृहमंत्रालय से जोखिम निधि से मिलने वाली आर्थिक सहायता को बढ़ा कर 1 करोड़ रुपए किए जाने की मांग करते हैं ताकि शहीद परिवारों का जीवन यापन करने में उपरोक्त राशि मददगार साबित हो सके। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन वीर बांकुरों की जिंहोने राष्ट्र के लिए सर्वस्व बलिदान कर दिया।
                   रणबीर सिंह आगे कहते हैं कि ऐसे क्या कारण है कि जब भी कोई नया आदेश जारी होता है तो सबसे पहले केंद्रीय अर्धसैनिक बलों पर आजमाया जाता है चाहे वो माननीय प्रधानमंत्री जी का लोकल पर वोकल का संदेश हो जोकि सैंट्रल पुलिस कैंटीन पर थौंपा गया या आयुष्मान कार्ड जारी करने की बात हो जबकि आयुष्मान योजना के अंतर्गत आने वाले अच्छे पैनल अस्पताल ही नामांकित ही नहीं या फिर 100 दिनों की छुट्टी का परिवारों के साथ रहने वाला माननीय गृह मंत्री जी फार्मूला। पिछले कई सालों से सुरक्षा बलों के जवानों में ड्यूटी की अधिकता, अत्यधिक तनाव व कई कई महीनों घर व परिवारों से दूर रहने के कारण  मानसिक रूप से बिमारियों के चलते अक्सर आत्महत्याएं व आपसी शूटआउट के मामलों में वृद्धि हुई है।
                   आफिसर वर्गों में लम्बे समय प्रमोशन से वंचित रखने से आईपीएस लॉबी के खिलाफ अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है। एक ही रैंक में ड्यूटी का निर्वहन करते 15 से 20 साल लग जाते हैं और यही हाल सुपरवाइजरी स्टाफ व अन्य कर्मियों का है। सुप्रीम अदालत में केस जीतने के बावजूद  ऑर्गेनाइज्ड सर्विस का  संवैधानिक दर्जा ना दिया जाना काफी चिंता का विषय है साथ ही निचले कमेरे वर्ग फालोवर्स रैंक व ट्रेडमैन में कैडर रिव्यू ना हो पाना । पहले जवान पहले 7-8 सालों में बटालियनों से दुसरी जगहों पर बदली के तौर पर जाते थे ओर अब जवान तीन-चार साल के लिए बटालियन में पोस्टिंग जाता है ओर जब तक जवान एक दुसरे को समझने की कोशिश करते हैं तब तक जवान की बदली हो जाती है यह भी एक शूटआउट या आत्महत्या का मुख्य कारण है।सुविधाओं की कमी एवं पुरानी पैंशन के ना मिलने के कारण अर्धसैनिक बलों में उच्च अधिकारियों से लेकर निम्न कर्मचारियों में निराशा का माहौल है। पैंशन बहाली, कैडर रिव्यू, ऑर्गेनाइज्ड सर्विस, राशन मनी व अन्य सुविधाओं के लिए जवान एवं आफिसर कोर्ट कचहरियों के चक्कर काट रहे हैं ओर गृह मंत्रालय सोया हुआ है।
                      पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों व रिटायर्ड परिवारों वास्ते गृह मंत्रालय के अधीन बने कल्याण एवं पुनर्वास एवं बोर्ड एक सफेद हाथी साबित हो रहा है। अभी हाल ही में गृहमंत्रालय द्वारा पैरामिलिट्री फोर्स को सिविलियन फोर्स करार देना निंदनीय विषय जिसका हम पैरामिलिट्री परिवार घोर विरोध करते हैं। याद दिलाना चाहेंगे कि मोरारजी भाई के शासनकाल 1979 का वो ऐतिहासिक लम्हा जब असुविधाओं के चलते सीआरपीएफ व सीआईएसएफ में असंतोष भड़का था। इसलिए जरूरी है कि समय रहते संभले सरकार।
                    रिटायर्ड एडिशनल डीजी एचआर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अर्धसैनिक बलों के प्रति किए जा रहे सौतेले व्यवहार व जायज मांगों को लेकर बापू की समाधि राजघाट पर 14 फरवरी 2022 को शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करेंगे। महामहिम राष्ट्रपति जी से रणबीर सिंह के नेतृत्व में मुलाकात कर अर्धसैनिक बलों के मसलें संज्ञान में लाएं गए लेकिन लगता है कि सरकार को अर्धसैनिक बलों की जायज़ मांगों से कोई लेना देना नहीं है। उम्मीद कि माननीय प्रधानमंत्री जी पुर्व अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मंडल को बातचीत के लिए बुलाएंगे।
                    अर्धसैनिक कल्याण बोर्ड, अर्धसैनिक झण्डा दिवस कोष, अर्धसैनिक स्कूलों की स्थापना में किसी बड़े बजट नहीं बल्कि सरकार की इच्छा शक्ति की कमी साफ झलकती है। हम उन अर्धसैनिक बलों के जवानों के भलाई संबंधित मुद्दों की बात कर रहे हैं जो देश की आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यवस्था व 15 हजार किलोमीटर सीमा रेखाओं की चाक चौबंद चौकीदारी कर रहे हैं। जो नक्सल बहुल इलाकों व दहशतगर्दी से आए दिन मुकाबला कर रहे हैं। सरकार भूल रही है कि यही अर्धसैनिक बलों के जवान हैं जो देश में होने वाले चुनावों में निष्पक्ष भुमिका निभाते हैं। चाहे बाढ़-भुकंप हो या आगजनी या फिर दंगे फसाद सुरक्षा बलों द्वारा त्वरित व निर्णायक भूमिका का समूचा देश ऋणी है।

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