नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- कॉरिडोर बने तो बने, लेकिन कुज गलियों को खत्म करने की कीमत पर नही। वृंदावन की कुंज गलियां ही कान्हा जी की असली पहचान व धरोहर है, हमे इसे सहेजना चाहिए ना कि इसे मिटाना यह हमारा सनातन इतिहास है। वृंदावन की गलियों में अब कॉरिडोर को लेकर लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा साफ नजर आ रहा है। महिलाऐं, पुरूष व बच्चे अब कुंज गलियों में थाली पीट कर कॉरिडोर के खिलाफ अपना विरोध जता रहे है। कुंज गलियों में रहने वाली कान्हा की अनगिनत भक्तों का तो यहां तक कहना है कि हमे कहीं नही जाना, हमे तो यहीं माटी में मिलना है। सरकार हमारी लाशों के ऊपर से कॉरिडोर बना सकती है इससे पहले नही।
वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के आसपास ऐसी 22 कुंज गलियां हैं। इन गलियों में करीब 350 घर हैं, उनमें 2000 से 2200 लोग रहते हैं। अब इन बृजवासियों के घरों के गेट पर अलग-अलग नंबर लिख दिए गए हैं। इसे लिखने वाले मथुरा नगर निगम के कर्मचारी हैं। लेकिन इसके बारे में यहां के निवासी अभी तक बेखबर हैं कि आखिर ये माजरा क्या है? सबका अंदाजा यही है कि उनका घर बांके बिहारी कॉरिडोर में आ रहा है और उन्हें विस्थापित किया जाएगा।
वृंदावन में बांके बिहारी जी के मंदिर के आस-पास सरकार कॉरिडोर बनाने जा रही है। सरकार का कहना है कि बांके बिहारी कॉरिडोर से श्रद्धालुओं को मंदिर तक पंहुचने में आसानी होगी और जाम व भगदड़ जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। लेकिन वृंदावन की 500 साल पुरानी कुंज गलियों पर संकट है हर तरफ राधे-राधे…, वृंदावन की कुंज गलियों में इस वक्त यही सुर सुनाई दे रहा है। भक्त कुंज गलियों से गुजर रहे हैं। वो बांके बिहारी के दर्शन कर चुके हैं या करने जा रहे हैं। वृंदावन के प्राण इन्हीं कुंज गलियों में बसता है। वृंदावन की हर गली, किसी न किसी दूसरी गली से जुड़ती है। यहां हर मोड़ और हर छोर पर बिहारी जी विराजमान हैं। लेकिन वृंदावन का दिल बांके बिहारी जी का मंदिर है। इसी मंदिर के चारों ओर 22 कुंज गलियां फैली हैं। यहीं पर 5 एकड़ जमीन में कॉरिडोर बनना है और इसके सर्वे का काम पूरा हो चुका है।
लेकिन बांके बिहारी मंदिर के पास 22 कुंज गलियां हैं। जिन्हे अब कॉरिडोर के नाम पर तोड़ दिया जायेगा। ऐसे में लोगों को दर्द आ छलक रहा है। लोग अपना दर्द कुछ यूं बयां कर रहे हे। यह दर्द है 70 साल की बुजुर्ग शकुंतला देवी का, जो बांके बिहारी मंदिर से सटी एक कुंज गली में लाठी के सहारे चलती है। शकुंतला बांके बिहारी कॉरिडोर के बारे में पूछने पर रुंधे हुए गले से बोलना शुरू करती हैं और आखिर में आंख में आंसू छलक आते हैं। उनका कहना है कि “मेरो दर्द यही है कि यहां से न जाएं तो अच्छा है। कॉरिडोर बननो है, तो जमुना किनारे बनवाओ। यहां हम मर जाएंगे बेटा, हमारो 100 साल पुरानी जगह है। हमारी उमर इतनी आय गयो है। हमारन बालक छोटन-छोटन थे, तभी उनके पिता गुजर गए। हम नहीं चाहें कि ये कॉरिडोर बनय यहां। हम बिहारीजी, यमुना मइया, राधा-वल्लभ के बीच में रहत हैं। हमें कहीं नहीं जाना, हमें तो यहीं मट्टी मिलनी है।” साथ में शकुंतला कहती है कि कॉरिडोर बनवाना है तो जमुना किनारे बनाया जाए। हमें क्यों उजाड़ा जा रहा है।
कुंज गलियों में हर घर और हर दुकान के सामने आपको काले रंग का पोस्टर टंगा हुआ मिल जाएगा। जिन पर “कॉरिडोर तो बहाना है, कुंज गलियों को मिटाना है..’ जैसे अलग-अलग स्लोगन लिखे हुए हैं। गलियों के नुक्कड़ों और दुकानों पर बैठे स्थानीय रहवासी कॉरिडोर से जुड़ी खबरों पर कहीं मुखर तो कहीं कानाफूसी वाली चर्चा भी करते नजर आते हैं। स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी भी गलियों में घूमते हुए मिल जाएंगे। रोज शाम को 7 बजे के आसपास रहवासी और व्यापारी कॉरिडोर के विरोध में जुलूस निकालते हैं। यह जुलूस अलग-गलियों से निकलकर और एक किमी की दूरी तय करके बांके बिहारी मंदिर के मुख्य गेट पर खत्म होता है। हां, इसकी शक्ल रोज अलग-अलग होती है। कभी लोग मंजीरे और थाली बजाते हैं, कभी कैंडल मार्च निकालते हैं तो कभी मौन जुलूस३ लेकिन कॉरिडोर का विरोध हर शाम करते हैं।
रुक्मिणी रमण गोस्वामी राधा वल्लभ मंदिर में पुजारी हैं। कॉरिडोर की चर्चा सुनकर खुद ही बोल पड़ते हैं, कहते हैं कि यहां प्राचीनता को नष्ट किया जा रहा है। मेरा 50 साल पुराना घर है। मेरे घर में ठाकुरजी का मंदिर है। यदि घर तोड़ देंगे तो मैं ठाकुरजी को कहां ले जाऊंगा। ब्रज की गलियों में भगवान रास किया करते थे। उसे नष्ट किया जा रहा है। जबकि जरूरत है यहां की सड़कों को चौड़ा किया जाए, मंदिर का चबूतरा चौड़ा किया जाए। लेकिन, प्रशासन यहां गरीबों को तंग कर रहा है। करोड़पति की हवेली छोड़ी जा रही है, गरीब का घर उजाड़ा जा रहा है।
हरीमोहन गोस्वामी का घर यहीं की एक कुंज गली में है। नगर निगम की टीम उनके घर पर भी निशान बनाकर गई है। कॉरिडोर का जिक्र करते ही, राजेश कहने लगते हैं कि यहां कोई भी काम नियमानुसार नहीं हो रहा है। प्रशासन ने न कोई नोटिफिकेशन निकाला, न कोई जानकारी दी, सीधे आए और घरों की नंबरिंग कर दी। ये तो मौलिक अधिकारों का भी हनन है। इसके साथ ही कोई भी कानून हमारी आस्था को चोट नहीं पहुंचा सकता है। मेरा घर 4 हजार गज में है। अगर, कॉरिडोर बनता है तो क्या मुआवजा मिलेगा? हमें तो यह भी नहीं पता है।
रमन गोस्वामी तल्ख लहजे में कहते हैं कि जबसे सर्वे हुआ है, हमारी रातों की नींद हराम हो गई है। यहां की बेसिक चीजों पर किसी का ध्यान नहीं है, गलियों की साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन, कॉरिडोर बनाने से सब सही हो जाएगा। जब से कॉरिडोर बनने की बात आई है, तब से मथुरा में जमीनों के दाम भी बढ़ गए हैं। इससे स्थानीय बृजवासियों को नुकसान है। यहां लोग कुंज गलियों को भी देखने आते हैं। योगीजी ने कहा था कि प्राचीन चीजों के साथ तोड़-फोड़ नहीं करेंगे। इटली गलियों का ही देश है, क्या आज वहां गलियां तोड़ी गई? सरकार को ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिससे विकास भी हो जाए और लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ भी न हो।
लोगों ने प्रशासन व सरकार को कुछ सुझाव भी दिये-
कॉरिडोर के सवाल पर युगल घाट के एक दूकानदार पुरूषोत्तम का कहना है कि कॉरिडोर यमुना के चारों तरफ बनना चाहिए। यमुना की सफाई करके जल को शुद्ध करना चाहिए। यहां आने वाली भीड़ को सप्त देवालयों (7 मंदिरों) की ओर मोड़ना चाहिए। इससे बांके बिहारी मंदिर आने वाली भीड़ बंट जाएगी।
उन्होने कहा कि ये लोग सिर्फ बांके बिहारीजी को हाईजैक करना चाहते हैं। इससे सरकार की मानसिकता का भी पता चलता है। यहां जिसकी जरूरत है, वो नहीं हो रहा है। यहां गंदगी है, स्ट्रीट लाइट्स नहीं है। परिक्रमा मार्ग पर अतिक्रमण है। सरकार को सबसे पहले उसे सही करवाना चाहिए। लेकिन, वह हमसे कैकेयी जैसा व्यवहार कर रही है। हमारे साथ भरत जैसा व्यवहार होना चाहिए।
कॉरिडोर से पहले यमुना किनारे विलुप्त हो रहे घाट संवारे जाएं
एक साधु यमुना की तरफ लौट रहे हैं कि रास्ते में राधे-राधे कहने पर रुक जाते हैं और बोलते हैं, कॉरिडोर बनने जा रहा है, सब नष्ट हो जाएगा। वृंदावन भगवान की क्रीड़ा भूमि है, यहां यमुना किनारे तमाम घाट हैं। कई तो विलुप्त होने के कगार पर हैं। पर सरकार नहीं चेत रही है। यहां यमुना किनारे 50 से ज्यादा घाट हैं, इनके सौंदर्यीकरण का काम क्यों नहीं हो रहा है? इन घाटों में विहार घाट, नागा कुंज, चीर, युगल, मोहन, केसी, जगन्नाथ, बारह आदि हैं। अगर वृंदावन के घाट और गलियां विलुप्त हो जाएंगी, तो सनातन धर्म का चक्र भी रुक जाएगा। वृंदावन के विकास की नई रचना होनी चाहिए, न की वृंदावन को खत्म किया जाना चाहिए।
बृजवासियों के बिना वृंदावन अधूरा है, हमें उखाड़िए तो मत
राजकुमार रस्तोगी की कुंज गली में ही दुकान है, उनका कहना है कि कॉरिडोर से सब नष्ट हो जाएगा। आप इन गलियों को चौड़ा कर सकते हैं, दो-तीन फीट इसके लिए जमीन मांगेंगे, तो हम भी मना नहीं करेंगे। जितना मांगोगे, उतना देंगे। लेकिन, हमें उखाड़िए तो मत। ब्रजवासियों के बिना वृंदावन अधूरा है। जब हम अपने ठाकुर जी से अलग चले जाएंगे, तो हमारा रहने का क्या मतलब है?
सिर्फ कॉरिडोर को लेकर हल्ला मचाने से कुछ थोड़े हो जाएगा
बांके बिहारी मंदिर के ठीक सामने प्रसाद बेचने वाले बुजुर्ग राधामोहन कहते हैं कि देखिए भाई साहब यहां कॉरिडोर की जरूरत नहीं है। यहां मंदिर तक पहुंचने वाले अनेक रास्ते हैं। बस उन्हें व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है। दूसरी बात यहां कि तमाम समस्याएं और हैं, जूता उतारने की कोई व्यवस्था नहीं हैं, सड़कों पर गंदा पानी बहता है, टॉयलेट नहीं हैं, सड़कें नहीं हैं। इसलिए इन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ कॉरिडोर को लेकर हल्ला मचाने से कुछ थोड़े हो जाएगा।
बिहारीजी को कुंज बिहारी भी कहते हैं, कुंज गलियां हट जाएंगी तो क्या बचेगा?
स्वरा यहीं की कुंज गली में रहती हैं। वह अभी पढ़ाई करती हैं। कॉरिडोर को लेकर बात करने पर भावुक होते हुए कहती हैं कि देखिए बिहारीजी को हम कुंज बिहारी भी कहते हैं और कुंज तो उनके नाम में ही आ रहा है। जब कुंज गलियों को ही हटा देंगे तो लोगों के लिए क्या बचेगा, आप बृजवासियों को उनके ईष्ट देवता से ही दूर कर रहे हैं। ये बहुत ही गलत बात है।
बंदरों के डर से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, तब चिंता नहीं होती
स्नेहलता कहती हैं कि यहां लोग बंदरों के डर से चश्मा नहीं लगा सकते हैं, उन्हें इतनी दिक्कत होता है, लेकिन तब योगीजी ने कुछ नहीं किया। तब उन्होंने कहा कि आप हनुमान चालीसा पढ़िए और निकल जाइए, बंदर आपको नहीं काटेंगे। लेकिन, कितनी महिलाएं बंदरों के डर से छत पर से गिर कर मरी हैं, तब उन्हें चिंता नहीं हुई। स्कूलों कॉलेजों में बच्चे नहीं पहुंच पाते हैं, घरों में दूबके रहते हैं, तब उन्हें कोई कष्ट नहीं हुआ। लेकिन, हमें यहां से भागने के लिए वो तत्पर हो गए हैं, इतनी जल्दी-जल्दी फैसला कर रहे हैं। अब उन्हें बस कॉरिडोर ही दिख रहा है। उन्हें हमारी भी पीड़ा समझनी चाहिए, उन्हें समझना चाहिए कि हम अपने इष्ट देवता से कैसे दूर जाएं। हमें यहां से कहीं दूर नहीं जाना है।
सबसे पहले उन आश्रमों को हटाएं, जिनकी वजह से वृंदावन नष्ट हो रहा
गली में ही एक साधु मिल जाते हैं, जो स्थानीय लगते हैं, कहते हैं कि हमारी बिरादरी के ही कई साधु-संत इस कॉरिडोर का समर्थन कर हैं, उन्होंने वृंदावन को नष्ट कर बड़े-बड़े घर आश्रम बना लिए हैं। इसके अलावा यहां ये महान व्यापारी आकर बैठ गए हैं। कॉरिडोर से पहले इन बड़े आश्रमों को हटाइए, ये भीड़ अपने-आप कंट्रोल हो जाएगी। ये लोग बाबाजी हैं, संत नहीं हैं। ये व्यापारी हैं, गौ के नाम से, भंडारी के नाम से, आश्रम के नाम से, विद्यार्थी के नाम से कमा रहे हैं। कमाने की कंपनी बना ली है, इन साधुओं ने। सबसे पहले यहां से इन्हें हटाना होगा।
भगवान ने इन गलियों को स्वयं बनाया है, इसे नहीं मिटना चाहिए
एक और बाबा कहते हैं कि हमको तो कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं, अब हमारा दिल कब टूट जाए कोर्ट का आदेश सुनकर कुछ पता ही नहीं है। कब हम मर जाएं, कुछ कह नहीं सकते हैं। कुंज गलियों को बिगाड़कर ये वृंदावन का सर्वनाश कर रहे हैं। ये गलियां नहीं बिगड़नी चाहिए। ये भगवान के जमाने की गलियां हैं, भगवान ने इन्हें स्वयं बनाया है। साधु-संत जो बोल रहे हैं कि कॉरिडोर बने, वो गलत बोल रहे हैं, बृज की रक्षा साधु-ब्राह्मण नहीं करेंगे तो कौन करेगा। वृंदावन धाम है, इसे तीर्थ मत बनाइए। बस ब्रजवासियों को परेशान करना है और कुछ नहीं करना है।
सेवायतों के पास घरों के डॉक्यूमेंट्स भी नहीं हैं, कहां जाएंगे?
आखिर में मंदिर के सेवायतों के बारे में भी जान लेते हैं। यहां बांके बिहारीजी की पूजा-पाठ करने वाले सेवायतों में डर का आलम है। उन्हें लगता है कि उनके घरों को भी तोड़ा जाएगा। उन्हें पूजा-पाठ से वंचित किया जाएगा। उनमें से कई ऐसे सेवायत भी हैं, जो कुंज गलियों में ही रहते हैं, लेकिन उनके पुश्तैनी मकान के डॉक्यूमेंट्स नहीं हैं। सेवायत प्रह्लाद बल्लभ कहते हैं कि ऐसे लोग कहां जाएंगे? उन्हें तो मुआवजा भी नहीं मिलेगा, फिर उनका क्या होगा?
हरिदास जी के वंशज ही बांके बिहारी मंदिर के सेवायत, पूजा-पाठ इन्हीं के जिम्मे
बांके बिहारी कॉरिडोर में 350 से 400 मकान आ रहे हैं। वृंदावन में हरिदास जी के करीब 500 लोग वंशज हैं। यही लोग यहां मंदिर में भगवान की सुबह-शाम सेवा करते हैं। इन्हें ही सेवायत कहा जाता है। इनमें भी दो हिस्सों में सेवायत के काम बंटे हैं। सुबह की पूजा में बिहारीजी के परिवार के 100 लोग शामिल होते हैं, जिसे राजभोग कहते हैं। शाम के वक्त 400 लोग शामिल होते हैं, जिन्हें सयनभोग कहते हैं। बिहारीजी की सेवा 16 साल के किशोर के रूप में होती है। इसलिए मौसम का विशेष ध्यान रखा जाता है। उसके लिहाज से उनके वस्त्र और भोग की व्यवस्था की जाती है।
7 साल से मंदिर प्रबंधन समिति का चुनाव नहीं हुआ, जिम्मेदारी मथुरा मुंशिफ के पास
1939 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर की प्रबंधन समिति बना दी थी। जिसकी देखरेख में ही मंदिर में सेवा और पूजा चलती है। इस प्रबंधन समिति के लिए हर तीन साल में चुनाव होता है। इसमें वोटिंग हरिदासजी के वंशज के लोग ही करते हैं। सिर्फ पुरुष वोट देते हैं, पति के नहीं रहने पर विधवा महिला वोट दे सकती है। लेकिन ये चुनाव पिछले 7 साल से नहीं हो पाया है। इसलिए कमेटी भंग है। इसकी जिम्मेदारी मथुरा मुंशिफ संभालते हैं।
बांके बिहारीजी के पास 246 करोड़ जमा, सरकार इसी रकम से कॉरिडोर बनवाना चाह रही। फिलहाल बांके बिहारीजी मंदिर के लिए सरकार ट्रस्ट बनाने पर विचार कर रही है। ट्रस्ट ही मंदिर के देखरेख का काम करेगी। मंदिर के सेवायतों की मांग है कि कि यदि ट्रस्ट बनाया जाता है, तो उसमें सेवायतों को भी रखा जाए।
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