गत सप्ताह बहुत धूमधाम से हमने पुरम पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की रामनवमी मनाई। अब इस सप्ताह राम जी के परम भक्त पवनकुमार हनुमान जी की जयंती मनाएँगे। इसी उपल्क्ष्य में 23 अप्रैल मंगलबार को इस्कॉन द्वारका में हनुमान जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर प्रातः 8 बजे से अमल कृष्ण प्रभु द्वारा राम भक्त हनुमान की दिव्य कथाओं का पाठ किया जाएगा। कहते हैं कि कथाओं के माध्यम से भी भगवान के दर्शन किया जा सकता है। इसलिए अधिक से अधिक संख्या में भक्तगण इस कथा प्रवचन का लाभ लेंगे। दोपहर व शाम को विशेष आरती की भी व्यवस्था रहेगी। श्रीश्री रुक्मिणी द्वारकाधीश के कृपा पात्र हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए आप विशेष आरती भी करा सकते हैं।
इस अवसर पर मंदिर की बेकरी शॉप पर हनुमान जी का स्पेशल केक भी उपलब्ध होगा। दोपहर व शाम के समय दोनों समय पर आगंतुकों के लिए प्रसादम की व्यवस्था रहेगी। पूरा दिनभर खिचड़ी प्रसाद एवं हनुमानजी की प्रिय बूँदी प्रसाद भी वितरित किया जाएगा। इस दिन को यादगार बनाने के लिए हनुमानजी के सुंदर सेल्फी पॉइट्स के साथ आप सेल्फी ले सकते हैं। तो आप सब लोग हनुमान जयंती के इस उत्सव में भाग लें और भगवान का बूँदी प्रसाद ग्रहण कर उनकी कृपा प्राप्त करें।
जब श्रीराम के दर्शन कराने के लिए हनुमान जी ‘तोता’ बने
हनुमान जयंती के दिन हम याद करते हैं कि किस तरह भगवान राम की प्रसन्नता के लिए उनके भक्त पवनसुत हनुमान ने वनवास के कष्टमय दिनों में उनका साथ दिया। चाहे वह लक्ष्मण की मूर्च्छा अवस्था में संजीवनी बूटी लाने का कार्य हो या रघुनाथजी का दूत बनकर लंका में सीताजी को रामजी की कुशलक्षेम पहुँचाना हो और उनका हाल प्राप्त करना हो। लंकापति रावण की विध्वंस करने में हनुमान ने जिस सहनशीलता व चातुर्य का परिचय दिया, उसने रास्ते की कई कठिनाइयों को सुमग किया। भक्त हनुमान से पल-पल पर रामजी का साथ देकर यह साबित कर दिया कि राम के बिना हनुमान का कोई अस्तित्व नहीं है। और यही वजह है कि अपने विश्वासपात्र भक्त हनुमान के लिए रामजी को भी उनके ह्रदय में सदा-सदा के लिए अपना निवास स्थान बनाना पड़ा। तभी तो भगवान कहते हैं कि मैं तो अपने भक्तों के ह्रदय में रहता हूँ। इसीलिए हमें भक्त हनुमान जी के दर्शन अवश्य करने चाहिए और उनकी जयंती के उत्सव में शामिल होकर उनकी कृपा प्राप्त करनी चाहिए। ऐसी ही कृपा उन्होंने तुलसीदास जी पर भी की जब उन्होंने प्रभु राम के दर्शन कराए। दर्शन की अभिलाषा से हनुमान जी के कहने पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर बढ़ चले। चित्रकूट पहुँचकर रामघाट पर उन्होंने अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले थे। मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े दी सुंदर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिए जा रहे हैं। तुलसीदास जी उन्हें देखकर मुग्ध हो गए, परंतु उन्हें पहचान न सके। फिर जब हनुमान जी ने उन्हें बताया तो वे पश्चात्ताप करने लगे। हनुमान जी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे। फिर अगले दिन मौनी अमावस्या के दिन बालक के रूप में श्रीराम ने कहा कि बाबा हमें चंदन दे दो। हनुमान जी ने सोचा कि कहीं तुलसीदास जी इस बार भी धोखा ना खा जाएँ, इसलिए उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा—
चित्रकूट के घाट पर भइ संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुबीर।।
तुलसीदास जी उस अद्भुत छवि को निहार कर अपनी सुधबुध भूल गए। भगवान अपने हाथ से चंदन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अंतर्धान हो गए।
समाप्त
वंदना गुप्ता
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