नई दिल्ली/- कश्मीर में आर्टिकल 370 पर पिछले तीन दिन से लगातार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। शुक्रवार को सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रखा। उन्होने अपनी दलील में कहा कि केंद्र सरकार के पास इस राज्य को दो टुकड़े में बांटने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और संविधान पीठ सिब्बल की इस दलील से प्रभावित नहीं दिखी और संविधान पीठ ने भी सिब्बल की दलीलों पर कई सवाल दागे हैं। याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलील के बाद केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल सरकार का पक्ष रखेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल की दलील
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के बीच एक समझौता हुआ था। उन्होंने अपने प्रांत की स्वतंत्रता के पक्ष में पाकिस्तानी घुसपैठियों के कारण होने वाली परेशानी के कारण भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे। इसके लिए अनुच्छेद 370 की व्यवस्था की गई और अब इसे निरस्त करने के लिए कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती।
सिब्बल अपने रुख पर अड़े रहे कि संविधान सभा की अनुपस्थिति में, प्रावधान ने स्थायी दर्जा हासिल कर लिया है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर का संविधान कहता है कि अनुच्छेद 370 में संशोधन या निरस्तीकरण के लिए कोई भी विधेयक विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
इस पर सीजेआई ने कहा, ’फिर आप संवैधानिक मशीनरी कैसे स्थापित करेंगे? ऐसा नहीं हो सकता है कि चूंकि कोई संविधान सभा नहीं है, इसलिए आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने या संशोधित करने के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श नहीं कर सकते।’
सिब्बल के तर्कों पर सीजेआई ने दागे सवाल
कपिल सिब्बल के इस तर्क पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर आपके तर्क को मान लिया जाए तो फिर संवैधानिक मशीनरी को स्थापित कैसे किया जाएगा? चीफ जस्टिस ने कहा कि चूंकि कोई संविधान सभा नहीं है, इसलिए आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने या संशोधित करने के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श नहीं कर सकते। ऐसा नहीं हो सकता है। इसके अलावा बेंच में मौजूद जस्टिस संजीव कौल ने भी कपिल सिब्बल के तर्क पर सवाल उठाया और कहा कि सविंधान एक जीवंत दस्तावेज है। अगर पूरा कश्मीर चाहता है, तब क्या आपका कहना है कि (अनुच्छेद 370) इसे बदलने की कोई व्यवस्था नहीं है। तब भी आप ऐसा नहीं कर सकते हैं जबकि हर कोई ऐसा चाहता है।
अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम सवाल
आर्टिकल 370 में बदलाव के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कई सवाल किए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि ’क्या भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 का स्थायित्व जम्मू-कश्मीर संविधान के प्रावधानों से मिल सकता है?’ जस्टिस एसके कौल ने सीजेआई की राय से रजामंदी जाहिर करते हुए पूछा, ’क्या जम्मू-कश्मीर का संविधान, अनुच्छेद 370 को भारत के संविधान में स्थायित्व दे सकता है?
एससी ने सिब्बल की दलील मानी तो…?
सीजेआई ने सिब्बल से पूछा, क्या संसद अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की शक्ति रखते हुए अनुच्छेद 370 को नहीं बदल सकती या निष्प्रभावी नहीं कर सकती। सीजेआई चंद्रचूड़ ने सिब्बल से कहा, आप कह रहे हैं कि संविधान का एक प्रावधान है जो संविधान की संशोधन शक्तियों से भी परे है। इसलिए, यदि हम आपकी बात स्वीकार करते हैं, तो हम संविधान की मूल संरचना से अलग एक नयी श्रेणी बनेगी।’
क्या है संविधान का मूल ढांचा
सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती फैसले में, संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिया था। तब ैब् ने माना था कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून के शासन जैसी कुछ मूलभूत विशेषताओं को संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है।
आर्टिकल 370 पर सुप्रीम सुनवाईः ये दो सवाल अहम
अनुच्छेद 370 पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। पीठ ने गुरुवार को कहा कि बहस के योग्य केवल दो मुद्दे हैं
-क्या अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की समाप्ति के साथ स्थायी दर्जा प्राप्त कर लिया?
-क्या इसे निरस्त करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया वैध थी?
आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई कब
इस मामले में सुनवाई आठ अगस्त को फिर से शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूछा था कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है जब वहां कोई संविधान सभा मौजूद ही नहीं है। एससी ने पूछा था कि एक प्रावधान (अनुच्छेद 370), जिसका विशेष रूप से संविधान में एक अस्थायी प्रावधान के रूप में उल्लेख किया गया था, वह 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद स्थायी कैसे हो सकता है?
370 पर कितने दिन सुनवाई चलेगी
सुप्रीम कोर्ट ने याचियों के वकील को कुल 60 घंटे का वक्त दिया है। कुल 18 वकीलों की ओर से याचिकाकर्ता का केस पेश किया जा रहा है।
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