बहादुरगढ़/शिव कुमार यादव/- परिवर्तन तो होना ही है आज नहीं तो कल होगा, मगर कायरों की आंखों में प्रायश्चित का जल होगा। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय ओज कवि डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी जी का जो बीती शाम आत्म शुद्धि आश्रम में आयोजित विराट कवि सम्मेलन में उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए देश व दुनिया के स्वार्थ पूर्ण भौतिक परिवेश पर टिप्पणी करते हुए उन्हें इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से निपटने का आह्वान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि…
बिना शक्ति के भक्ति भावना पंगु अधूरी है।
आज बांसुरी संग सुदर्शन चक्र ज़रूरी है।
कलमवीर विचार मंच के तत्वावधान मे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ओजकवि प्रो.(डॉ.) सारस्वत मोहन मनीषी जी के 75 वें जन्मदिवस पर आयोजित इस काव्योत्सव का मंच संचालन उनके शिष्य कृष्ण गोपाल विद्यार्थी ने किया। आर्यसमाज के जिला महामंत्री राजबीर छिकारा व आश्रम के अधिष्ठाता आचार्य विक्रम देव के सानिध्य में लगभग चार घंटे तक चले इस कार्यक्रम की अध्यक्षता परोपकारिणी सभा अजमेर के राष्ट्रीय महामंत्री कन्हैयालाल आर्य ने की। कार्यक्रम में युवा समाजसेवी सचिन जून, नवीन मल्होत्रा,एस श्याम, हरिओम दलाल व आर्यसमाज झज्जर के कोषाध्यक्ष सूर्य प्रकाश आर्य सहित विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े असंख्य लोग उपस्थित रहे।
मनीषी जी के स्वस्तिवाचन व युवा ग़ज़लकार जय सिंह जीत के काव्य पाठ से शुरू हुए इस कार्यक्रम के दौरान दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश से पधारे कवियों ने श्रोताओं को घंटों मंत्रमुग्ध किए रखा। विश्व हास्य दिवस होने के बावजूद उपस्थित हास्य कवियों सहित सभी कलमवीरों ने अपने कवि धर्म का पालन करते हुए वातावरण को गरिमापूर्ण बनाए रखा। हरिंदर यादव और विरेन्द्र कौशिक ने जहां हरियाणवी हास्य रचनाएं प्रस्तुत की वहीं विकास यशकीर्ति,वेद भारती, सत्येन्द्र सारथी,वीणा अग्रवाल, रजनी अवनी,पुष्पलता आर्य, डॉ.शैलजा दुबे,भारती अग्रवाल व अनिल भारतीय आदि ने अपने गीतों, ग़ज़लों, मुक्तकों व दोहों के माध्यम से भारत की गौरवशाली परंपराओं व संस्कृति के पुनरुत्थान का संदेश दिया। कुमार राघव, राजपाल यादव ’राज’ व मोहित कौशिक ने वर्तमान पीढ़ी की भौतिकवादी सोच के चलते गांवों के शहरीकरण पर चिंता जताते हुए श्रोताओं को अपनी जड़ों की ओर लौटने का आह्वान किया। कौशल समीर व सार्थक सेवा समिति के प्रधान एन एस कपूर ने भी अपने मन की बात कहकर तालियां बटोरीं। प्रसिद्ध हास्य कवि रसिक गुप्ता व मास्टर महेंद्र ने जहां श्रोताओं को ठहाके लगाने पर मजबूर किया वहीं वयोवृद्ध बागी चाचा ने समाज व परिवार के वैचारिक प्रदूषण पर व्यंग्य रचनाएं सुनाकर सभी का अंतर्मन भिगो दिया।
श्रोताओं की लंबी प्रतीक्षा के बाद मुखर हुए डॉ.सारस्वत मोहन मनीषी ने अपने काव्य पाठ से सभी को भावविभोर कर दिया। बानगी के रूप में उनकी कुछ रचनाओं के अंश प्रस्तुत हैं….
कम बोलो ज़्यादा सुनो, बढ़े शांति मुस्कान।
दिए तभी भगवान ने एक जीभ दो कान।
चांदी की हैं गोलियां, सोने की बन्दूक।
खानी हैं दो रोटियां,भरे पड़े सन्दूक।
पांव दबा या मत दबा पर कानून न छांट।
सारी चीजें बांट लीं माँ को तो मत बांट।
गांव गांव में गुरुकुल होगा।
तब ही भारत रघुकुल होगा।
कसे-कसाए वीर मिलेंगे,
कहीं न कोई थुलथुल होगा।
दिल से अँधेरों को भगाओ साथियो।
आँधियों में दीपक जलाओ साथियो।
तेल की तलाश में न जाओ साथियो।
बातियों को खून में डुबाओ साथियो।
काव्योत्सव के समापन से पूर्व डॉ. मनीषी, कन्हैयालाल आर्य, राजबीर छिकारा व आचार्य विक्रम देव को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। आर्य समाज की ओर से मनीषी जी को स्वामी दयानंद सरस्वती जी का सुंदर चित्र व आमंत्रित कवियों को सत्यार्थ प्रकाश की प्रतियां भेंट की गईं। राजबीर सिंह छिकारा व स्वामी दयानंद जी की 200वीं जन्म जयंती पर ऐसे ही सार्थक आयोजन किए जाने की बात कही। शांति पाठ के साथ इस दिव्य आयोजन का समापन हुआ।
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