
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/चंडीगढ़/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- मानसिक विकार से पीड़ित बच्चों और उनके माता-पिता का सहारा चला गया। चंडीगढ़ के सेक्टर- 32 स्थित गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच) के निदेशक डॉ. बीएस चवन का गुरुवार देर रात निधन हो गया। डॉ. चवन 59 वर्ष के थे और अपेंडिक्स कैंसर से पीड़ित थे। पिछले 20 दिनों से मेडिकल कॉलेज में भर्ती थे। डॉ. चवन का निधन चिकित्सा जगत के लिए बड़ी क्षति है। उनके निधन पर यूटी प्रशासक व एडवाइजर ने भी शोक प्रकट किया है।
डॉ. चवन बेहद मिलनसार व हंसमुख व्यक्तित्व के मालिक थे। बीते सप्ताह उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी और वे वेंटिलेटर पर थे। उनके निधन से मानसिक विकार से पीड़ित मरीजों को काफी गहरी क्षति पहुंची है। वे मेडिकल कॉलेज के निदेशक होने के साथ मनोचिकित्सा डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष भी थे। वे बौद्धिक अक्षमता व विशेष बच्चों के लिए गॉड फादर थे। उनके अधिकारों और जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयोग किए। डॉ. चवन की बदौलत कई बच्चे अपने पैरों पर खड़े हुए और आज वे अपना सुखी जीवन बिता रहे हैं। इन बच्चों के अभिभावकों को अपने बच्चों के हक के लिए लड़ना भी डॉ. चवन ने सिखाया।
मूलरूप से अंबाला के रहने वाले डॉ. चवन के पिता की मौत एक साल पहले 108 साल की उम्र में हुई थी। उसी दिन डॉ. चवन के पेट में दर्द हुआ। अगले दिन जांच कराई तो पता चला कि अपेंडिक्स कैंसर है। उसके बाद पीजीआई में इलाज चला। उनकी मां की उम्र 102 साल है और वे अभी जीवित हैं। डॉ. चवन की पत्नी सेक्टर-26 पुलिस हॉस्पिटल की मेडिकल ऑफिसर हैं, जबकि उनका छोटा बेटा डॉक्टर है। डॉ. चवन के कार्यों की ख्याति सिर्फ चंडीगढ़ में नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों में थी। साल 2003 में उम्मीद व प्रार्थना प्रोजेक्ट, जिसके तहत बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया था, उसके लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने सम्मानित किया।
साल 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मानसिक स्वास्थ्य व दिव्यांग लोगों के लिए सामाजिक कार्य करने के लिए सम्मानित किया था। डॉ. चवन के निजी सचिव अनिल मोदगिल ने बताया कि वे चेहरे से जितने सौम्य थे, अंदर से उतने ही मजबूत। कई बार देखा गया कि वे कीमो चढ़वाने के साथ ऑफिस पहुंचकर दफ्तर के काम में जुट जाते थे। कोरोना काल में ऐसे मरीजों को घर पर रहने की सलाह दी गई थी लेकिन डॉ. चवन घर पर बैठने की बजाए हॉस्पिटल में दिखते थे। उनकी देखरेख में कोरोना काल में सेक्टर-48 हॉस्पिटल और सूद धर्मशाला का कामकाज चलता रहा।
डॉ. चवन के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता
बौद्धिक अक्षम बच्चों के पुनर्वास के लिए उन्होंने सेक्टर- 31 स्थित ग्रिड में कई सारे वोकेश्नल कोर्स व कम्युनिटी प्रोग्राम शुरू करवाए।
वोकेशनल ट्रेनिंग करने के बाद बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए शहर में उम्मीद प्रोजेक्ट शुरू किया। इसके जरिए यूटी प्रशासन के सहयोग से जगह-जगह व्यावसायिक बूथ बनाकर मानसिक विकार से पीड़ित बच्चों को सौंपे गए। इनकी मदद से कई अपने घर का खर्चा चला रहे हैं।
मानसिक विकार से पीड़ित बच्चों को रहने के लिए उन्होंने सामर्थ व आश्रय नाम के भवन खुलवाए। यहां पर वे रह सकते थे।
-एंटीनेटल व शिशु की स्क्रीनिंग के लिए जेनेटिक सेंटर की स्थापना कर सुविधा शुरू की।
-मनोचिकित्सक डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष होने के नाते उन्होंने विभाग में डॉक्टरों की फौज खड़ी करने के लिए कई सारे कोर्स शुरू किए।
-मानसिक विकार पीड़ित बच्चों को मापदंड के मुताबिक पहले 500 रुपये पेंशन मिलती थी, उसे उन्होंने दो गुना करवाया।
-दिव्यांग बच्चों को शहर में किस तरह की दिक्कते आती हैं, इसके लिए उन्होंने दिव्यांग बच्चों से ही शहर में एक सर्वें कराया था। इसकी रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को सौंपी गई थी।
-आत्महत्या रोकने के लिए 24 घंटे की एक हेल्पलाइन सेवा शुरू की। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य में संकट की स्थितियों के लिए होम बेस्ड ट्रीटमेंट केयर शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ऐसा लग रहा है कि हमारे ऊपर से साया उठ गया है। वे हमारे लिए भगवान थे। उन्होंने न सिर्फ हमारे बच्चों को सहारा दिया, बल्कि हम जैसे अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ जीने की नई राह दिखाई। उनकी कमी शायद ही कोई पूरी कर पाए। -पूजा घई, बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित बच्चे की मां।
मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं। समझ में नहीं आ रहा है कि आगे जीवन कैसे चलेगा। वे हमारे लिए सब कुछ थे। वे हमारी स्थितियों को समझते थे। उन्होंने ही बताया कि हमारे बेटे के क्या अधिकार होते हैं। – सीमा वोहरा, बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित बच्चे की मां।
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