
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/ऋषिकेश/देहरादून/मनोजीत सिंह/भावना शर्मा/- आईआईटी रूड़की द्वारा तैयार किये गये पोर्टेबल वेंटिलेटर प्राणवायु का परिक्षण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में शुरू हो चुका है। कोरोना वायरस कोविड 19 के विश्वव्यापी बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर आईआईटी रुड़की ने एम्स ऋषिकेश के सहयोग से पोर्टेबल वेंटीलेटर सिस्टम प्राणवायु विकसित किया है। जिसे देश में वेंटीलेटर की कमी के चलते मरीजों के उपचार के लिएं उपयोग में लाया जाएगा। एडवांस तकनीक पर आधारित यह वेंटीलेटर सिस्टम कोविड मरीजों के लिए खासतौर से कारगर साबित होगा। एम्स संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने इस नए आविष्कार के सफल प्रयोग के लिए एम्स ऋषिकेश व आईआईटी की संयुक्त टीम को बधाई दी है।

निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो.रवि कांत ने बताया कि देश में वेंटीलेटर सिस्टम का बहुत ज्यादा अभाव है, जिससे सांस संबंधी रोगों से ग्रसित मरीजों के इलाज में चिकित्सकों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में देश में कोविड-19 से ग्रसित मरीजों की संख्या बढ़ने की स्थिति में वेंटीलेटर्स की कमी से मरीजों के उपचार में चुनौतियां बढ़ेंगी। लिहाजा समय रहते एम्स ऋषिकेश व आईआईटी रुड़की के चिकित्सकों व वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने निहायत कम लागत में पोर्टेबल वेंटीलेटर प्राणवायु विकसित किया है। जो सांस लेने में होने वाली तकलीफ में मददगार साबित होगा। निदेशक एम्स ने बताया कि एडवांस तकनीक का यह वेंटीलेटर कोविड मरीजों के लिए अधिक कारगर है। उन्होंने पोर्टेबल वेंटीलेटर तैयार करने वाले दल की सराहना की है। साथ ही उम्मीद जताई कि यह पोर्टेबल वेंटीलेटर सिस्टम जल्द से जल्द बाजार में आए, जिससे यह एम्स ऋषिकेश ही नहीं बल्कि देश के अन्य मेडिकल संस्थानों के लिए भी उपयोगी साबित हो। जहाँ तक मरीजों के उपचार की बात करें तो ऋषिकेश एम्स उत्तराखण्ड में सबसे बड़ा हॉस्पिटल है। एम्स ने उत्तराखण्ड में ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अभी कुछ दिन पहले एम्स ऋषिकेश के कन्वोकेशन में खुद गृहमंत्री अमित शाह और स्वस्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन ने एम्स निदेशक डॉक्टर प्रो. रविकांत और उनके अगुवाई में संस्थान के कार्यों की काफी तारीफ की थी।
क्या होता है वेंटिलेटर ?
वेंटीलेटर बिजली से चलने वाला उपकरण है जिस पर मरीजों को आर्टिफिशियल सांस दिलाई जाती ह।ै इसमें ऑक्सीजन के सिलेंडर, मोटर और कंप्रेसर लगे होते हैं और नलियों के जरिए यह ऑक्सीजन श्वसन तंत्र तक पहुंचाई जाती हैं जिसकी मदद से व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन का संचार बना रहता है। वेंटिलेटर की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब कोई व्यक्ति गंभीर हालत में होता है और सांस नहीं ले पाता। ऐसी स्थिति में मरीज़ की श्वसन नली तक कृत्रिम श्वास पहुंचाने के लिए उसके मुख (एंडोट्रैचियल ट्यूब), नाक या गले (एक ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब) के माध्यम से एक् ट्यूब डाली जाती है। वेंटिलेटर खास तौर पर देखा जाये तो विदेशों में काफी महंगा है। ऐसे में कोरोना के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वेंटिलेटर का आविष्कार होना काफी मददगार साबित हो सकता है। जो न सिर्फ कीमत में सस्ता है बल्कि काफी प्रभावी भी है। इससे देश को आने वाले में काफी फायदा होगा।
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