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    युवा देश, नेता व जन अपेक्षाये

    -नई तकनीक के इस्तेमाल से आ सकता है क्रांतिकारी परिवर्तन, नेता व जनता के बीच समन्वय बनाने की कोशिश जारी रहनी चाहिए

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- आज हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं लेकिन क्या 75 साल पहले भारत एक स्वतंत्र देश था? नहीं यह स्वतंत्रता बिल्कुल असंभव था अगर हमारे देश के महान नेताओं सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, भगत सिंह, बाबू कुंवर सिंह, महारानी लक्ष्मीबाई व खुदीराम बोस आदि ने अपनी कुर्बानी नहीं दी होती। आज देश एक विश्व गुरु बनने की राह पर है। वह उन्हीं नेताओं की देन एवं विजन है। आजादी के बाद देश एक मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। इसके पीछे अनेकों कारण हो सकते हैं, इनमें से एक कारण है मजबूत लीडरशिप का होना, बड़े फैसला लेना और उन्हें अंजाम तक पहुंचाना। सरकार नेताओं की कार्यशैली होती है, सरकार द्वारा हर वर्ग के लिए योजनाएं तैयार करना एवं उसे आम जन तक पहुंचाना भी उनके प्रारूप में होता है। नेता एवं जनता के बीच की कड़ी को समझना एवं उनकी अपेक्षा पर खरा उतरना दोनों के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है जिसकी वजह से चुनाव के समय तथा चुनाव के उपरांत जनता से नेता का एवं नेता का जनता से एक मधुर संबंध बन जाता है।
    135 करोड़ की आबादी वाले इस भारत देश में आम लोगों की अपेक्षाएं एवं उनकी महत्वकांक्षी राजनेता से बहुत हद तक जुड़ी हुई होती हैं चाहे वह निजी कार्य के लिए हो या फिर कार्यालय कार्य के लिए अथवा विकास से जुड़े मुद्दों के लिए आम जनता जो सोचती है कि मेरा कोई भी काम हमारे नेता जी करा देंगे या इसके लिए वह प्रयास करेंगे। अमूमन यह देखने को मिलता है कि उनकी यह अपेक्षा पूरी हो जाती है लेकिन कुछ लीडर के लिए बहुत मुश्किल होता है, जब वह उनके अपेक्षा पर खरा नहीं उतर पाता है जिसकी वजह से उस लीडर के मन में यह सवाल घर करता है कि मैं अपने क्षेत्र की जनता का काम नहीं करा पाया इसके पीछे तमाम कारण हो सकते हैं हो सकता है कि वह काम नीति विषयक ना हो, हो सकता है कि वह कार्य उनके कार्यक्षेत्र से बाहर का हो लेकिन नेता के लिए सबसे जरूरी होता है उस कार्य को करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना। जनता अपने कार्यों का अपडेट लेने हेतू नेता के कार्यालय के कई चक्कर तथा बहुत तेरे फोन कॉल भी करने पड़ते ह,ैं तब भी उनको सही एवं सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। यह जनता एवं नेताओं के बीच का एक बहुत बड़ा लूप होल है जैसे आज के समय में सही करना नेताओं का कर्तव्य है।ठीक वैसे ही नई तक्नीक का इस्तेमाल भी जनहित में किया जाना चाहिए। टेक्नोलॉजी के माध्यम से आज हर एक चीज आसान हो रही है लेकिन पॉलीटिकल सिस्टम में इनका समावेश देखने को नहीं मिलता है। अभी के समय में इज ऑफ डूइंग बिजनेस का महत्व बहुत बढ़ गया है।
    इज ऑफ डूइंग बिजनेस यानी कारोबारी सुगमता की रैंकिंग में भारत ने जबरदस्त छलांग लगाई है। वर्ल्ड बैंक की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत 14 पायदान चढ़कर 63 में स्थान पर पहुंच गया है। यह पिछले 5 साल में 79 पायदान का सुधार है। डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों का नतीजा है कि विश्व डिजिटल प्रतिस्पर्धा रैंकिंग में भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। भारत अब 48 वें स्थान पर है। आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, जहां भारतीयों की औसत आयु 29 साल है जो हमारी ताकत है। अगर इसे ऐसे कहें तो इस युवा ताकत के दम पर भारत की विकास दर 2 फीसदी तक और बढ़ाई जा सकती हैं। इज ऑफ डूइंग बिजनेस और टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग हर पॉलीटिकल लीडर को अपने क्षेत्र के विकास जनता से सीधे जुड़ने, कार्यों में पारदर्शिता, सोशल मीडिया, जनता के विषयों, आवेदन एवं सुझावों के लिए रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम डेटा संरक्षण आदि के लिए करना चाहिए तथा इसके लिए औरों को भी प्रेरित करना चाहिए।
    पॉलीटिकल सिस्टम में टेक्नोलॉजी का समावेश लीडर्स को जनता से जुड़ने, उनके कार्यों के लिए डिजिटल ऑफिस का संचालन करना एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। चुनाव के समय लीडर्स इन सभी डेटा का उपयोग कर अपने चुनाव को और बेहतर तरीके से उनका प्रबंधन कर सकते है। ट्रांसफार्म, रिफॉर्म और परफॉर्म के मंत्र पर आम आदमी के जीवन को आसान बनाने की दिशा में हर एक नेता या सरकार को पहल करनी चाहिए।

    लेखक:- आलोक कुमार सिंह, एपीएस उर्जा मंत्री, भारत सरकार

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