नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कभी ग्राम स्वराज का सपना देखा था जिसमें प्रतिभायें गांवों शहरो की तरफ पलायन न करके गांवों में ही अपना हुनर दिखाये। ताकि देश के गांव व किसान खुशहाली का जीवन जी सके। लेकिन पिछले 70 साल में सिवाय प्रतिभा पलायन के आज तक ऐसा कोई काम नही हुआ जिसके सहारे युवा प्रतिभा गांवों में रहकर काम धंधा कर सके। आज तक किसी भी सरकार ने राष्ट्रपिता के ग्राम स्वराज की अवधारणा को पूरा करने की कोशिश नही की। लेकिन कोरोना वायरस के खौफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस अवधारणा पर काम करने का सुनहरा मौका दे दिया है। जिसके चलते अब गांवों के व किसानों के दिन बहुर सकते है। सरकार को इस अवधारणा को चरित्रार्थ करने के लिए गंभीरता से काम करना होगा।
शनिवार को ग्राम स्वराज पर अपने विचार रखते हुए मातामूर्ति देवी महिला मंडल अध्यक्षा व नजफगढ मैट्रो न्यूज पेपर की संपादक भावना शर्मा ने कहा कि कोरोना को लेकर हम खौफजदा जरूर है लेकिन जो काम पिछले सात दशकों से सरकारे नही कर पाई वो काम कोरोना ने एक महीने में करके दिखा दिया। आज हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ढोल रही है। लेकिन हम अभी भी ग्राम स्वराज की बजाये औद्योगिकीकरण पर ही जोर दे रहे है जबकि जीवन हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का पहला मूलमंत्र सिर्फ खेती ही है। खेती के दम पर ही हम दुनिया में सोने की चिड़िया कहलाते थे। आज जरूरत है तो खाद्यान्न उत्पादन को गति देने की। जो प्रतिभायें व मजदूर गांवों में गये है। सरकार पर उन्हे वहीं पर रोककर काम देने की चुनौति जरूर रहेगी लेकिन यह काम इतना मुश्किल भी नही है।
उन्होने कहा कि सरकार के पास अब अवसर है कि गांवों में मनरेगा के तहत काम शुरू कराकर खेतों के लिए सिंचाई की सुविधा मजबूत बनाये। नहरों और नदियों को जोड़ने की योजना को तेजी से लागू करे। गावों प्राइमरी हैल्थ सैंटरों का दर्जा बढ़ाया जाये। युवाओं के लिए हैल्थ सैक्टर में बीएएमएस व नर्सिंग की शिक्षा का कोटा बढ़ाया जाये और उन्हें तैयार गांवों में ही नौकरी दी जाये। गांवों में फूड काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया के माध्यम से ग्रामीणों के घरों को गोदाम बनाने की परमिशन दी जाये ताकि लोगों को रोजगार के साथ-साथ भंडारण प्रबंधन का भी ज्ञान हो सके। इससे सरकार के पैसा व तंत्र की बचत होगी और गांवों में खुशहाली कदम रखेगी। एफसीआई द्वारा प्रमाणित होने पर गांवों का अनाज गांवों में भंडारण के लिए रह जायेगा जिसपर किसान को ऋण की भी सुविधा प्रदान की जाये ताकि वह अपनी खेती को बढ़ावा दे सके। आज भी देश में 60 प्रतिशत किसानों के पास फसल सिंचाई के लिए कोई मजबूत तंत्र नही है। जमीन का पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जहां है वहां वह पानी तबाही मचाये हुए है। बस सरकार इसी पर काम करले और इसे व्यवस्थित कर एक समान करने पर काम करे। इससे संस्थागत खेती को बढ़ावा मिलेगा और देश में खादान्न उत्पादन का ग्राफ बढ़ेगा।
उन्होने कहा कि सरकार किसानों को नये ऋण ना देकर उनके किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट 15 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दे। इससे किसान के हाथ में एक अच्छी रकम होगी जिससे वह खेती और घर की जरूरतों को समय से पूरा कर सकेगा। ऋण माफी या ऋण देना समस्या का हल नही समस्या समय पर पैसे की है और वो जरूरत किसान क्रेडिट कार्ड पूरी कर सकता है। उन्होने कहा कि आज इजरायल जैसा छोटा सा देश न केवल अपनी बल्कि विश्व के दूसरे देशों की खाद्यान्न से संबंधित कई जरूरते पूरी कर रहा है। उनके किसान अपने खेतों में सोना उगा रहे है। जबकि हमारा किसान अपनी फसल को बचाने के लिए ही मेहनत करता रहता है। कभी मौसम की मार तो कभी आर्थिक तंगी ने किसान को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। उन्होने कहा कि देश की जीडीपी में खेती की 24 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। अब जब हमारे पास साधन भी है और प्रतिभा भी है तो हम इसका सही उपयोग कर जीडीपी में खेती के योगदान का लक्ष्य 40 प्रतिशत ले जाने का होना चाहिए। ताकि हमारे देश में भुखमरी शब्द का कोई औचित्य ही न रह जाये।
उन्होने कहा कि गांवों में सरकार छोटे व मंझोले तथा कुटीर उद्योग को बढावा दे जो कि कृषि कार्यों से ही जुड़े हो ताकि हमारे किसान व युवा वर्ग मिलकर अपनी व देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान कर सके। उन्होने कहा कि अगर गांव की प्रतिभा गांव में ही रहकर काम करेगी तो इससे शहरों का बोझ घटेगा हमें नये शहर नही बसाने पड़ेंगे। और अगर नये शहर नही बने तो खेती की जमीन बचेगी जिससे और ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन होगा। इस अवसर को हमें गवाना नही बल्कि इसका पूरा लाभ उठाना है ताकि भविष्य में हमे पलायन जैसी त्रासदी का सामना न करना पड़े और बेवजह लोग अपनी जान न गंवाये।
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