गुरुग्राम/उमा सक्सेना/- गुरुग्राम में एसजीटी यूनिवर्सिटी के प्रांगण में जाने-माने लेखक, सफल रियल एस्टेट उद्यमी और सेवानिवृत्त रेलवे इंजीनियर डा. बीएल गौड़ की दो पुस्तकें ‘कैसे बने विश्वकर्मा (नींव से नाली तक)’ और ‘हाई राइज बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन’ का विमोचन पद्मश्री व पद्मभूषण रामबहादुर राय ने किया। डॉ. गौड़ की इन पुस्तकों में न केवल तकनीकी ज्ञान है बल्कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए कई प्रेरक संदेश भी छिपे हैं। रामबहादुर राय ने कहा कि इन पुस्तकों के माध्यम से पाठक डॉ. गौड़ के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनके जीवन अनुभवों को समझ सकते हैं। उन्होंने विशेष रूप से गौड़ की आत्मकथा ‘बीता सो अनबीता’ की भी सिफारिश की, जिसमें डॉ. गौड़ के रेलवे इंजीनियरिंग के समय के अनुभव, जंगलों में किए गए प्रोजेक्ट और जीवन के अद्भुत संघर्ष शामिल हैं।
पुस्तक विमोचन के अवसर पर विशेष अतिथियों की उपस्थिति
विमोचन समारोह में दशमेश एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध ट्रस्टी मनमोहन चावला, एसजीटी यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी एवं रेरा सदस्य प्रो. (डॉ.) बलविंदर कुमार, गौर संस ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर, एसकेए ग्रुप के डायरेक्टर संजय शर्मा और डॉ. शिप्रा कुमारी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान सभी ने नवाचार, विकास, आदर्शवाद, सृजन और व्यावहारिक सिद्धांतों पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रो. (डॉ.) अतुल नासा ने स्वागत भाषण में इसे एसजीटी यूनिवर्सिटी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरक अवसर बताया और इसे केवल पुस्तक विमोचन न मानते हुए ज्ञान, प्रेरणा और उपलब्धि का उत्सव बताया।

डॉ. बीएल गौड़ का जीवन और प्रेरक दृष्टिकोण
डा. बीएल गौड़ ने अपने संबोधन में कहा कि लेखक का महत्व उसके सृजन में होता है और हर दिन कुछ नया सीखना चाहिए। उन्होंने सभी को यह संदेश दिया कि “एवरी डे इज अ लर्निंग डे” और जीवन से मिलने वाले हर अनुभव को सीखने का अवसर समझें। उन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभव साझा किए, जिसमें रेलवे इंजीनियर के रूप में कठिन परिस्थितियों में काम करना, जंगलों और दूरदराज के प्रोजेक्ट्स पर काम करना और अपने जीवन की नई राह चुनकर ‘गौर संस’ की स्थापना करना शामिल है। रामबहादुर राय ने उनके व्यक्तित्व की बहुआयामी विशेषताओं की सराहना की और बताया कि उनकी किताबें विद्यार्थियों, शिक्षकों और पेशेवरों के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करेंगी।
प्रवासी भारतीय भवन में योगदान और सामाजिक दृष्टि
समारोह में रामबहादुर राय ने यह भी बताया कि आईटीओ से मिंटो ब्रिज की ओर देखे तो प्रवासी भारतीय भवन दिखाई देता है। इसके निर्माण में डॉ. बीएल गौड़ का योगदान अद्वितीय रहा। इस भवन का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया और आज यह अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाने का केंद्र है। राय ने बताया कि डॉ. गौड़ ने अपने पेशेवर कौशल और दृष्टि से इस भवन के निर्माण में योगदान दिया, बावजूद इसके कि परिवार में मनोज गौड़ जैसे लोग इसे चुनौती मानते थे।
ज्ञान, सृजन और प्रेरणा का संगम
डॉ. बीएल गौड़ की किताबें केवल तकनीकी मार्गदर्शन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें जीवन मूल्य, परिश्रम, नवाचार और समाज के प्रति जिम्मेदारी का संदेश भी छिपा है। रामबहादुर राय ने समारोह में बताया कि यह पुस्तक विमोचन केवल लोकार्पण का अवसर नहीं है, बल्कि यह विचार, दृष्टिकोण और जीवन दर्शन का उत्सव है। उन्होंने डॉ. बीएल गौड़ के योगदान को एक दीपक के समान बताया जो युवा इंजीनियरों और पेशेवरों के लिए मार्गदर्शक बनेगा। समारोह का समापन राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों के साथ हुआ:
“नर हो न, निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम
जंग में रह कर नाम करो
कुछ काम करो, कुछ काम करो”
और डॉ. गौड़ ने अपनी प्रेरक पंक्तियाँ जोड़ी:
“जो मैं न कर सका इस जीवन में
उससे आगे तुम काम करो”।


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