मानसी शर्मा/- भारत में दशहरा का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन राम और सीता की पूजा की जाती है, और शाम को रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के विशालकाय पुतलों का दहन कर विजयदशमी मनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीलंका, जो रामायण में रावण की लंका के रूप में वर्णित है, वहां भी दशहरा का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है?
रामायण से श्रीलंका का संबंध
रामायण के अनुसार, रावण लंका का राजा था और उसने अपनी राजधानी को अत्यंत समृद्ध और भव्य नगर के रूप में बसाया था। रावण द्वारा सीता माता का हरण किए जाने के बाद श्रीराम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ, जो श्रीलंका की भूमि पर लड़ा गया। इसी युद्ध का अंत रावण के वध और धर्म की विजय के रूप में हुआ।
श्रीलंका में कैसे मनाते हैं दशहरा?
भारत की तरह श्रीलंका में भी दशहरा को अधर्म पर धर्म की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। वहां भी राम-सीता की पूजा की जाती है और रामायण के दस दिवसीय युद्ध को याद किया जाता है।
हालांकि भारत में रावण दहन एक मुख्य परंपरा है, श्रीलंका में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि वहां कई लोग रावण को एक महान विद्वान और शिवभक्त के रूप में भी मानते हैं।
रामलीला और सांस्कृतिक आयोजन
श्रीलंका के कुछ हिस्सों में दशहरे के अवसर पर रामलीला का आयोजन किया जाता है, जिसमें रामायण के प्रमुख पात्रों की झांकियां और नाट्य प्रस्तुति शामिल होती हैं। कई जगहों पर लोग जुलूस भी निकालते हैं, जहां कलाकार श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और रावण के किरदारों को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।
भगवान राम की होती है पूजा
दशहरे के दिन श्रीलंका में भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है। लोग इस दिन को न्याय, धर्म और सत्य की जीत के रूप में मनाते हैं। वहां का समाज इस पर्व को भारत की तरह ही धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाता है।
रावण के प्रति दृष्टिकोण थोड़ा भिन्न
जहां भारत में रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, वहीं श्रीलंका में रावण को कई लोग एक ज्ञानी राजा और महान योद्धा के रूप में भी देखते हैं। यही वजह है कि वहां रावण दहन की परंपरा नहीं है, लेकिन राम की विजय और धर्म की प्रतिष्ठा का सम्मान अवश्य किया जाता है।
संस्कृति की साझा विरासत
भारत और श्रीलंका के बीच रामायण के माध्यम से जुड़ा यह सांस्कृतिक संबंध दशहरा के त्योहार को एक साझी विरासत बना देता है। यह पर्व सिर्फ एक धर्म या देश का नहीं, बल्कि मानव मूल्यों की जीत का उत्सव है, जो दोनों देशों में अपने-अपने अंदाज़ में मनाया जाता है।


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