बच्चों में मोटापा बन रहा गंभीर संकट : यूनिसेफ की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
December 28, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

बच्चों में मोटापा बन रहा गंभीर संकट : यूनिसेफ की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता

हेल्थ/अनीशा चौहान/- आज की दुनिया में बच्चों का स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यूनिसेफ (UNICEF) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार वैश्विक स्तर पर 5 से 19 वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापा और कम वजन माता-पिता के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गए हैं। भारत में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसका मुख्य कारण है अनहेल्दी भोजन और बदलती जीवनशैली।

मोटापे का बढ़ता बोझ
यूनिसेफ की रिपोर्ट “फीडिंग प्रॉफिट: हाउ फूड एनवायरनमेंट्स आर फेलिंग चिल्ड्रन” के मुताबिक साल 2025 में 5–19 वर्ष के लगभग 188 मिलियन बच्चे और किशोर मोटापे का शिकार हैं। यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर हर 10 में से 1 बच्चे को प्रभावित करता है। साल 2000 में यह केवल 3% था, जो अब बढ़कर 9.4% हो गया है। वहीं, कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 13% से घटकर 9.2% रह गया है।

भारत की स्थिति भी चिंताजनक है। द लैंसेट की एक स्टडी के अनुसार, 1990 में जहां केवल 0.4 मिलियन बच्चे मोटापे से प्रभावित थे, वहीं 2022 तक यह आंकड़ा बढ़कर 12.5 मिलियन हो गया, जिनमें 7.3 मिलियन लड़के और 2.3 मिलियन लड़कियां शामिल हैं।

भारत में मोटापे की स्थिति
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, 5 साल से कम आयु के 3.4% बच्चे अधिक वजन वाले हैं, जबकि 2015-16 में यह अनुपात 2.1% था। यूनिसेफ के वर्ल्ड ओबेसिटी एटलस 2022 की भविष्यवाणी है कि 2030 तक भारत में 27 मिलियन से अधिक बच्चे मोटापे का शिकार होंगे। यह वैश्विक स्तर पर हर 10 में से 1 बच्चे का प्रतिनिधित्व करेगा।

शहरी क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गंभीर है। यहां उच्च आय वाले परिवारों के बच्चे वसा, चीनी और नमक से भरपूर फास्ट फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का ज्यादा सेवन कर रहे हैं।

रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि आज बच्चों के आहार का बड़ा हिस्सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स जैसे – चिप्स, बिस्किट, केक और शीतल पेय से भर गया है। ये उत्पाद चीनी, नमक और अनहेल्दी वसा से भरपूर होते हैं, जो बच्चों को लत की तरह आकर्षित करते हैं।

फल, सब्ज़ियां और प्रोटीन से भरपूर पारंपरिक भारतीय भोजन की जगह अब जंक फूड और रेडी-टू-ईट उत्पादों ने ले ली है। शहरीकरण और ऑनलाइन डिलीवरी ने इन्हें और आसान बना दिया है। वहीं, ताजा और पौष्टिक भोजन महंगा होने की वजह से कई परिवार प्रोसेस्ड फूड की ओर झुकते हैं।

साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर जंक फूड के विज्ञापन बच्चों को सीधे प्रभावित कर रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, 75% युवाओं ने पिछले सप्ताह जंक फूड के विज्ञापन देखे और 60% ने माना कि इनसे उनकी भूख बढ़ी।

स्वास्थ्य पर असर

  1. शारीरिक स्वास्थ्य: मोटापा बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और कैंसर तक का खतरा बढ़ाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, 80% मोटे किशोर वयस्कता में भी मोटे रहते हैं।
  2. मानसिक स्वास्थ्य: मोटापा आत्मविश्वास, मानसिक संतुलन और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है। तंग करने और भेदभाव की घटनाएं भी बढ़ती हैं।
  3. आर्थिक बोझ: यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि 2035 तक मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की लागत वैश्विक स्तर पर 4 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष से अधिक होगी। भारत में यह लागत 2060 तक 479 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।

यूनिसेफ ने सुझाए समाधान

  1. स्कूलों में जंक फूड पर प्रतिबंध – मेक्सिको की तरह, जहां अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड पर रोक है।
  2. खाद्य लेबलिंग और कर – अनहेल्दी फूड पर चेतावनी लेबल और टैक्स लगाने से उपभोग घट सकता है।
  3. विज्ञापन पर नियंत्रण – बच्चों को लक्षित करने वाले विज्ञापनों पर सख्त रोक जरूरी है।
  4. पौष्टिक भोजन की पहुंच – सरकार को ताजे और पौष्टिक भोजन को सस्ता और सुलभ बनाना चाहिए।
  5. शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा – स्कूलों में खेल और आउटडोर एक्टिविटी अनिवार्य करनी चाहिए।
  6. जागरूकता अभियान – माता-पिता और बच्चों को पोषण और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में शिक्षित करना जरूरी है।

भारत में उठाए गए कदम
भारत में इस दिशा में कुछ प्रयास शुरू हुए हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने दिल्ली, पुणे और बेंगलुरु में भारत-विशिष्ट बच्चों के ग्रोथ और डेवलपमेंट स्टैंडर्ड बनाने के लिए एक स्टडी शुरू की है। इसके अलावा “उन्नति (UNNATI) पहल” का लक्ष्य बच्चों के लिए अनुकूलित बेंचमार्क बनाना है, ताकि समय रहते मोटापे और कुपोषण दोनों को नियंत्रित किया जा सके।

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox