नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को टक्कर देने के लिए बेंगलुरू में विपक्षी दलों की बैठक हुई। अभी तक जो विपक्ष यूपीए के नाम पर बिखरा-बिखरा नजर आ रहा था अब नये नाम के तले विपक्षी एकजुट होते दिखाई दे रहे हैं। इसमें कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी राहत की बात तो यह है कि बैठक में मौजूद विपक्षी नेताओं ने राहुल गांधी द्वारा सुझाये गये नये नाम इंडियान नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लयूसिव एलायंस (आईएनडीआईए) को स्वीकार कर लिया है। साथ ही कांग्रेस के लिए एक और बड़ी बात यह रही कि इस बार नीतीश बाबू ने नही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बैठक की अध्यक्षता की यानी 2024 के लोकसभा चुनाव की जंग में अब विपक्ष कांग्रेस की सहारे उतरेगा। इस बैठक की सबसे खास बात यह रही कि विपक्ष के नये राजनीतिक अलायंस में 95 प्रतिशत ऐसे नेता है जो ईडी से घबराये हुए हैं और किसी तरह भाजपा को सत्ता से बेदखल करना ही उनकी मजबूरी है।
विपक्षी एकता धीरे-धीरे, मगर सधे हुए कदमों के साथ आगे बढ़ रही है. पटना और फिर बेंगलुरु की बैठक के बाद भी कई मसलों पर रायशुमारी नहीं हो सकी है, लेकिन चुनौतियों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी गई है. यही वजह है कि उम्मीद के मुताबिक अब तक ना तो सीट शेयरिंग का फॉर्मूला निकाला जा सका. ना पीएम फेस पर सहमति बनी है। चुनावी कैंपेन पर भी चर्चा नहीं हो पाई है हालांकि, विपक्ष ने जो 11 सदस्यीय पैनल गठित करने का ऐलान किया है, जो इन सारे सवालों के जवाब तलाशेगा और सहमति के लिए फॉर्मूला निकालने की जिम्मेदारी भी होगी।
वहीं कांग्रेस के लिए आईएनडीआईए की बैठक खास दिखाई दी। क्योंकि जब बैठक के बाद ’आईएनडीआईए’ का संकल्प पत्र जारी हुआ, तो उसमें ’कांग्रेस’ के एजेंडे की झलक दिखाई दी। जिन मुद्दों को लेकर कांग्रेस पार्टी, मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रही है, उन्हें ’संकल्प’ पत्र में शामिल किया गया है। लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस को इस अलायंस की सफलता के लिए चार राज्यों में अपना बलिदान देना होगा। इतना ही नहीं, संकल्प पत्र में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के मुद्दे का भी पूरा ख्याल रखा गया है। विपक्षी खेमे के ये दोनों नेता, चुनी हुई सरकारों को केंद्र द्वारा राज्यपाल/एलजी के माध्यम से परेशान करने का मुद्दा उठाते रहे हैं। इसे भी संकल्प पत्र में जगह मिली है।
सोनिया और राहुल ने मणिपुर हिंसा का मुद्दा खूब उठाया
कांग्रेस पार्टी लंबे समय से धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद पर बात करती रही है। कांग्रेस ने अपने 85वें राष्ट्रीय महाधिवेशन में उक्त मामलों को केंद्र में रखा था। पार्टी के बयान में कहा गया, भारत का विचार, पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और संघवाद के लिए खड़ी है। कांग्रेस को वर्तमान ध्रुवीकृत राजनीति में केंद्र स्थान पर कब्जा करके राजनीतिक डिस्कॉर्स को फिर से परिभाषित करना चाहिए। मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर कांग्रेस ने भरपूर आवाज उठाई है। राहुल गांधी ने हिंसा ग्रस्त इलाकों में दो दिवसीय दौरा किया था। इसके अलावा कांग्रेस मुख्यालय में मणिपुर के वरिष्ठ नेताओं ने भी प्रेसवार्ता की। राहुल गांधी ने पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान कहा था, उनके लिए मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक महत्वपूर्ण नहीं थी। मणिपुर जलता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री चुप रहे। सर्वदलीय बैठक तब बुलाई गई, जब प्रधानमंत्री स्वयं देश में नहीं हैं। कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने एक वीडियो संदेश में मणिपुर के लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की थी। उन्होंने कहा, इस हिंसा ने हमारे राष्ट्र की अंतरात्मा पर एक गहरा घाव छोड़ा है। मणिपुर में लोगों का जीवन तबाह कर दिया गया।
एजेंसियों के दुरुपयोग पर सभी दलों ने उठाई आवाज
आईएनडीआईए के संकल्प पत्र में कांग्रेस एवं दूसरे विपक्षी दलों द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की बात कही गई है। कांग्रेस पार्टी ने कई बार कहा है कि मोदी सरकार में ईडी ने जिन राजनेताओं के यहां पर रेड की है या उनसे पूछताछ की है, उनमें 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं। इसमें सबसे ज्यादा रेड तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं के घरों और दफ्तरों पर की गई हैं। पार्टी ने आशंका जताई थी कि 2024 से पहले विपक्ष के अनेक नेता, केंद्रीय जांच एजेंसियों के जाल में फंस सकते हैं। संकल्प पत्र में कहा गया है कि सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एजेंसियों का खुल्लम-खुल्ला हमारी राजनीति के संघीय ढांचे को जानबूझकर कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। केजरीवाल और ममता बनर्जी ने राज्यपाल/उपराज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए थे। अब संकल्प पत्र में वह बात कही गई है कि गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों और उपराज्यपालों की भूमिका सभी संवैधानिक मानदंडों से अधिक रही है। भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एजेंसियों का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग हमारे लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। गैर-भाजपा शासित राज्यों की वैध जरूरतों, आवश्यकताओं और अधिकारों को केंद्र द्वारा सक्रिय रूप से अस्वीकार किया जा रहा है।
संकल्प पत्र में शामिल ये खास बातें
हम, भारत के 26 प्रगतिशील दलों के हस्ताक्षरित नेता, संविधान में निहित भारत के विचार की रक्षा के लिए अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हैं। हमारे गणतंत्र के चरित्र पर भाजपा द्वारा व्यवस्थित तरीके से गंभीर हमला किया जा रहा है। हम अपने देश के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। भारतीय संविधान के मूलभूत स्तंभों-धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, आर्थिक संप्रभुता, सामाजिक न्याय और संघवाद-को व्यवस्थित रूप से और खतरनाक रूप से कमजोर किया जा रहा है। हम मणिपुर को तबाह करने वाली मानवीय त्रासदी पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं। प्रधानमंत्री की खामोशी चौंकाने वाली और अभूतपूर्व है। मणिपुर को शांति और सुलह के रास्ते पर वापस लाने की तत्काल आवश्यकता है। हम संविधान और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकारों के संवैधानिक अधिकारों पर जारी हमले का मुकाबला करने और उनका सामना करने के लिए दृढ़ हैं। हमारी राजनीति के संघीय ढांचे को जानबूझकर कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों और उपराज्यपालों की भूमिका सभी संवैधानिक मानदंडों से अधिक रही है।
जांच एजेंसियों का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग
भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एजेंसियों का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग हमारे लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। गैर-भाजपा शासित राज्यों की वैध जरूरतों, आवश्यकताओं और अधिकारों को केंद्र द्वारा सक्रिय रूप से अस्वीकार किया जा रहा है। हम आवश्यक वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतों और रिकॉर्ड बेरोजगारी के गंभीर आर्थिक संकट का सामना करने के अपने संकल्प को मजबूत करते हैं। विमुद्रीकरण अपने साथ एमएसएमई और असंगठित क्षेत्रों में अनकही दुर्दशा लेकर आया, जिसके परिणामस्वरूप हमारे युवाओं में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी आई। हम पसंदीदा मित्रों को देश की संपत्ति की लापरवाही से बिक्री का विरोध करते हैं। हमें एक मजबूत और रणनीतिक सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ एक प्रतिस्पर्धी और फलते-फूलते निजी क्षेत्र के साथ एक निष्पक्ष अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए, जिसमें उद्यम की भावना को बढ़ावा दिया जाए और विस्तार करने का हर अवसर दिया जाए। किसान और खेत मजदूर के कल्याण को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
नफरत और हिंसा को हराने के लिए एक साथ
हम अल्पसंख्यकों के खिलाफ पैदा की जा रही नफरत और हिंसा को हराने के लिए एक साथ आए हैं। महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए एवं सभी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए एक निष्पक्ष सुनवाई की मांग करते हैं। पहले कदम के रूप में, जाति जनगणना को लागू करें। हम अपने साथी भारतीयों को निशाना बनाने, प्रताड़ित करने और दबाने के लिए भाजपा की प्रणालीगत साजिश से लड़ने का संकल्प लेते हैं। नफरत के उनके जहरीले अभियान ने सत्तारूढ़ दल और उसकी विभाजनकारी विचारधारा का विरोध करने वाले सभी लोगों के खिलाफ द्वेषपूर्ण हिंसा को जन्म दिया है। ये हमले न केवल संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि उन बुनियादी मूल्यों को भी नष्ट कर रहे हैं, जिन पर भारत गणराज्य की स्थापना हुई है। हम राष्ट्र के सामने एक वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पेश करने का संकल्प लेते हैं। हम शासन के सार और शैली दोनों को बदलने का वादा करते हैं जो अधिक परामर्शात्मक, लोकतांत्रिक और सहभागी होगा।
बैठक में दिखाई दी मंच पर बैठने की सियासत, जिससे हुआ ऑल इज वेल
राहुल गांधी के दाहिनी तरफ नीतीश कुमार और बाईं तरफ लालू यादव। सोनिया गांधी के एक तरफ खरगे और दूसरी और ममता बनर्जी। विपक्षी दलों की बेंगलुरु में शुरू हुई बैठक में यह तस्वीरें और बैठने की व्यवस्था कुछ ऐसी है, जिसके सियासत में अब जबरदस्त मायने निकाले जा रहे हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि विपक्षी दलों की एकता में डांवाडोल स्थिति अरविंद केजरीवाल की मांग पर कांग्रेस के समर्थन न किए जाने से बन रही थी। इस बैठक में जो तस्वीर सामने आई है, उसमें राहुल गांधी और सोनिया गांधी के आस पास बैठे हुए नेताओं से गठबंधन की तस्वीर के साथ साथ उसकी तासीर भी दिखी। बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और सोनिया गांधी के अगल-बगल में होने के साथ ममता बनर्जी की पड़ी हुई बगल की कुर्सी यह इशारा कर रही है कि अब सब कुछ ’ऑल इज वेल’ हो गया है। सोनिया गांधी के दाहिनी ओर जहां ममता बनर्जी बैठी दिखीं, वहीं राहुल गांधी के बाईं ओर लालू यादव और दाहिनी ओर नीतीश कुमार दिखे। लालू यादव के बगल में अरविंद केजरीवाल, उनके बगल में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नजर आए। जबकि अखिलेश यादव के बगल में एक ओर जयंत चौधरी, तो चौधरी के बगल में ही बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी बैठे दिखे। तेजस्वी के बगल में ही महबूबा मुफ्ती और उनके पास पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान बैठे दिखे। राजनीतिक जानकारों का कहना है यह उन राज्यों के नेताओं की वह तस्वीरें हैं, जहां पर उनका दावा सियासी गठबंधन में बड़ा माना जा रहा है। लेकिन इस ऑल इज वेल के फेर में पांच राज्यों में सबसे ज्यादा कांग्रेस के नेताओं को बड़ा सियासी बलिदान भी करना होगा। क्योंकि गठबंधन में कांग्रेस की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसका देश के सभी राज्यों में विस्तार है। फिलहाल बैंगलोर की बैठक के बाद अगली कुछ बैठक और होनी है, जिसमें चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर बड़ी चर्चा होगी।
पंजाब, प. बंगाल, यूपी और दिल्ली में कांग्रेस नेताओं का कटेगा टिकट
बैठक में शामिल सूत्रों के मुताबिक जल्द ही सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला भी तय किया जाएगा। बैठक में शिरकत कर रहे वरिष्ठ नेता बताते हैं कि हालांकि सबसे बड़ा पेंच अभी सीटों के बंटवारे को लेकर होना बाकी है। इसमें पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर बड़ा मंथन किया जाना है। राजनीतिक जानकारों की माने तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं। उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नाम पर समाजवादी पार्टी और आरएलडी मजबूत स्थिति में है। इसलिए इन तीन राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को बड़े सियासी बलिदान के लिए तैयार रहना होगा। इसके अलावा बड़ी सियासत दिल्ली में भी होनी है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के चलते कांग्रेस के नेताओं को यहां भी बड़े समझौते करने पड़ सकते हैं। बैठक में शामिल सूत्रों का कहना है कि ऐसे ही मामलों पर सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला जल्द ही तय कर लिया जाएगा। बिहार में इस वक्त कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकार चल रही है। इसलिए वहां पर अन्य राज्यों की तुलना में यह स्थिति नहीं होने वाली है। इसी तरह महाराष्ट्र में भी महाविकास आघाडी गठबंधन पहले से बना हुआ है।
कांग्रेस तो अभी भी है केंद्र में
विपक्षी नेताओं की बैठकों में जिस तरीके की सामने तस्वीरें आ रही हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि अभी भी केंद्र में कांग्रेस ही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के नेता और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कहते हैं कि कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की बिल्कुल इच्छुक नहीं है। खरगे ने कहा कि हम मानते हैं कि हमारे बीच राज्य स्तर पर कुछ मतभेद हैं, लेकिन यह मतभेद वैचारिक नहीं हैं। यह मतभेद इतने बड़े भी नहीं हैं कि आम आदमी, गरीब, युवाओं और मध्यम वर्ग के लिए हम इन्हें भुलाकर आगे नहीं बढ़ सकते। 26 पार्टियां साथ हैं और 11 राज्यों में हम सबकी सरकार है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की ओर से आए इस बयान से फिलहाल गठबंधन में जुड़ने वाले नेताओं की बड़ी दुविधा तो खत्म होती हुई नजर आ रही है।
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