“माँ…ममता…मातृत्व”, खुशियो का अनुपम सानिध्य हे मेरी माँ।

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
December 3, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

“माँ…ममता…मातृत्व”, खुशियो का अनुपम सानिध्य हे मेरी माँ।

-मातृ दिवस पर लेखिका डॉ. रीना रवि मालपानी का विशेष आलेख

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- मेरे जीवन की अद्वितीय रचनाकार है मेरी माँ। अपनी प्रार्थनाओं के स्पंदन से मेरे जीवन में सफलता के आयाम रचती है मेरी माँ। अपनी परेशानियों को अलमारी में छुपाती हुई मुझे सदैव प्रफुल्लित अनुभव कराती है मेरी माँ। मेरे आगमन को जानकर जो अपने अस्तित्व को भूल चुकी थी वह है मेरी माँ। मेरे जन्म ने एक ऐसी माँ को जन्म दिया जो मेरे होने के बाद कभी अपना अतीत और अपनी खुशियाँ जी ही नहीं पाई, क्योंकि उसके जीवन की माला के प्रत्येक मोती में मेरे जीवन की खुशियाँ समाहित थी।

खुशियों का अनुपम सानिध्य हे मेरी माँ।
ईश्वर का दिया कीमती वरदान है मेरी माँ।।

बिना छल कपट के स्नेह जताती मेरी माँ।
इस अविश्वासी दुनिया में विश्वास बढ़ाती मेरी माँ।।
                परीक्षा मेरी होती और ईश्वर का स्मरण वह करती। इंटरव्यू देने मैं जाती तो बाकी तैयारी वह करती। मेरी सेहत के रख-रखाव में वह खुद सोना और खाना भूल गई। उसके समय की घड़ी का विराम मेरे अनुसार होता था। मेरा खिलखिलाता चेहरा देखकर वह खुद को सबसे खुशनसीब समझती थी। मेरे आने के पहले उसकी भी पसंद-नापसंद थी। वह भी इठलाना, गाना जानती थी; परंतु अब तो उसका प्रत्येक राग मेरे लिए होता है। उसके अन्तर्मन में द्वंद होने के बावजूद भी उसकी दैनिक क्रियाएँ सिर्फ मेरे ही इर्द-गिर्द घूमती है। दूरी तो कभी भी माँ की चिंता कम ही नहीं कर पाई। उसे तो मेरे लिए हर कला का कलाकार बनना पड़ा। खाना बनाने में पारंगत, पढ़ना, सजाने से लेकर सुलाने तक कभी गायक, कभी फैशन एक्सपर्ट, कभी काउंसिलर, कभी मेंटोर, कभी हृदय से कोमल और कभी कठोरता का आडंबर भी रचना पड़ा और कभी-कभी तो मेरी खुशियों के कारण मेरे साथ हमउम्र बच्चा और दोस्त भी बनना पड़ा।  

माँ शब्द में छिपा कितना सुंदर एहसास है।
नौ महीने का ज्यादा जुड़ाव बनाता इसे खास है।।

मेरे गर्भ में आते ही अपनी पसंद-नापसंद भूल गई।
मेरी उन्नति के चक्र में तो वह थक कर बैठना भूल गई।।
           मेरा समय पर निकलना और पहुँचना, मेरा खाना-पीना, पढ़ना-लिखना, सोना-जागना माँ के दिमाग का बोझ कभी कम ही नहीं हो पाया। मेरे सृजन से लेकर मेरे जीवन को स्वरूप देने के लिए ईश्वर ने माँ को पहले ही पारंगत बना दिया था। मेरे लिए इतनी ममता पता नहीं ईश्वर ने उसे कहाँ से दे दी। क्यों मेरी हर पीड़ा उसके हृदय को छु जाती है। कहाँ से उसे वह एहसास हो जाता है। कैसे वह मेरे मनोभावों को पढ़कर उसका त्वरित निदान कर देती है। उसने तो मुझे ही अपने जीवन की घड़ी बना लिया है। मेरे अनुसार सोती है, उठती-बैठती है और अपनी दिनचर्या क्रियान्वित करती है। रुग्ण अवस्था में भी मुझ पर ही केन्द्रित रहती है। कभी-कभी मेरी गलती पर मुझे प्रताड़ना देकर खुद भी प्रताड़ित होती है। मुझे रोता देखकर खुद कमजोर हो जाती है।

मनोभावों को पढ़ने का हुनर पता नहीं माँ को कहाँ से आता है।
जो मेरे मन की हर थाह को तुरंत भाप जाता है।।

मेरी माँ को रूठने का गुण नहीं आता।
और मेरा दुःख तो उसे स्वप्न में भी रास नहीं आता।।
          माँ तेरा और मेरा रिश्ता तो सिर्फ तेरे होने से ही सुशोभित होता है। गुस्सा दिखाकर प्यार जताना तो केवल तुझे ही आता है। माँ तू ही तो है जो मुझे समझती भी और समझाती भी है। प्रसव के दर्द में भी तुझे केवल मेरी ही सुरक्षा का ख्याल था। मेरी खुशी के लिए तो तू थकावट के बाद भी चल पड़ती है। गहरी नींद आने पर भी मेरी एक क्रिया-प्रतिक्रिया पर तू तुरंत जाग जाती है। मातृत्व की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते तू स्वयं की धुरी तो बिलकुल भूल ही गई। माँ मेरी गलतियों के लिए भी दुनिया ने तुझे कोसा और तूने उसे भी सरल मन से स्वीकार किया। मुझे सहेजते-सहेजते तो तेरी ही मुरझाने का समय नजदीक आता गया। मेरे लिए तू हर समय मुश्किलों से लड़ती रही, पर अपने पिटारे को मेरी खुशियों से भरा रखा। माँ जितना तूने मुझे सजाया, सँवारा, समझा और जितना प्यार-दुलार तूने मुझे दिया उतना इस संसार में कोई कभी नहीं दे सकता। तू तो मेरी हर इच्छा सबसे लड़कर भी पूरी करती थी। प्रतिपल बदलती इस दुनिया में तेरा स्नेह ही तो मेरे लिए अक्षय है। ऐसी ममता की चादर तो किस्मत वालों को ही मिलती है। माँ तेरी गोद में मिला आनंद तो बाद में कभी नसीब ही नहीं हुआ। माँ तू हमेशा मुझे संघर्षों से जूझना सिखाती है क्योंकि तू जानती है कि मेरी गलतियों के लिए तू मुझे माफ कर देगी पर दुनिया नहीं।
        जीवन में उत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिए तू मुझे श्रेष्ठ कलाकार बनाना चाहती है। यह तेरा ही तो कथन है कि दुनिया में प्रतिकूलता के समय दूरियाँ आ जाती है और अनुकूलता के समय तो किसी को आमंत्रण की जरूरत भी नहीं पड़ती है। माँ तेरा किरदार तो कल्पना से भी परे है। मेरी खुशियों की इस यात्रा में मुझे तेरा दर्द वाला फ्रेम कभी नहीं दिखा। भाव तो तेरे भी होंगे, हर्ष-विषाद के बीच दोलन तो तेरा जीवन भी करता होगा, पर मुझे हमेशा तूने अपना सृजनात्मक और सकारात्मक स्वरूप ही दिखाया। माँ तू तो मेरा सृजन करने वाली ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ सृजन है। मेरी जिंदगी की सुनहरी किताब का सबसे श्रेष्ठ पन्ना तेरे मातृत्व की अनुभूति है। दुनिया तो लेन-देन से चलती है, पर तेरी डिक्शनरी में तो केवल देने वाला शब्द ही है। तू मेरी गलतियों को नजर-अंदाज कर मुझे हमेशा सम्मानित जीवन जीने की ओर अग्रसर करती है। माँ तू तो वो सुगंधित फूल है जिसे कभी इत्र की आवश्यकता ही नहीं हुई। तू तो वो महानदी है जिसने मुझे नवीन दिशाओं में बहना सिखाया है। मेरे ख़्वाहिशों के टोकरे को पूरा भरने के लिए तूने बिना रुके अपना सफर खत्म कर दिया। तूने खुद कष्ट सहकर मुझे जन्म दिया, पर फिर भी तेरे प्रयासों में हमेशा मुझे कष्ट से पार लगाना शामिल था। तेरे वर्णन के लिए माँ मैं निःशब्द हूँ। ईश्वर की बनाई सृष्टि में सबसे सुंदर, सरल, सहज और सरस तेरी कल्पना है।        

जब पहली बार वह मेरे आने को जान पाई।
उसी दिन से उसने अपनी सारी दुआएँ मुझ पर लुटाई।।

डॉ. रीना कहती माँ तो एहसासों की अतुलनीय अनुभूति है।
माँ के बिना तो जीवन मात्र रिक्ति है।।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox