नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/जीवन शैली/शिव कुमार यादव/- कोरोना के नाम पर सबसे अधिक फ़ायदा उठाने वाली प्रजातियों में एक हैं माली जो घर जा जा कर लोगों को पौधे बेच रहे हैं। कानों में ईयर फ़ोन लगाए ये नए नए लड़के थोड़ा थोड़ा वास्तु पढ़ कर फ़्लैट्स के बाहर अपनी दुकाने धड़ल्ले से चला रहे हैं। इसका नतीजा ये है की जो पेड़ पौधे हमारे बुज़ुर्ग कभी जंगली झाड़ समझ कर बाहर फेंक दिये करते थे वो आज फैन्सी नामों से हमारे ड्रॉइंग रूम की शोभा बढ़ा रहे हैं। समय कैसे बदल जाता है कभी कभी सोच कर आश्चर्य होता है। बदलाव तो प्रकृति का नियम है लेकिन ये ऐसा रूप ले लेगा कभी सोचा नहीं था।
आज हम फ़ैशन, वास्तु और स्वास्थ्य के नाम क्या क्या करने लगे हैं अगर हमारे बुज़ुर्ग देखते तो शायद घर से बाहर ही निकाल देते। अधिकतर कैक्टस प्रजाति के ये बेकार,सड़क किनारे और जंगलों में दिखने वाले ये पौधे, कभी औषधीय और कभी वास्तुशास्त्र के नाम पर आजकल बंगलों में शोभायमान हो चुके हैं।इन्हें हम मनमाने दामों पर ख़रीद कर अपनी क़िस्मत और स्वास्थ्य दोनों सुधार रहे हैं।
इसमे से सबसे अधिक प्रचलित है आलू वेरा तो वर्षों से हमारे स्वास्थ्य-वर्धन के लिए अपनी जान गंवा रहा है।इसी क्रम में एक नागफनी की प्रजाति है जिसे ’स्नेक प्लांट’ के नाम से वास्तुकारों ने बाज़ार में उतारकर इन आस्तीन के सापों को घरों में सज़ा दिया है। इस क्रम में आजकल सबसे अधिक भाव खाने वाला पौधा है एक छोटे छोटे पत्तों वाला ’जेड’ प्लांट जो इतना ’लकी प्लांट’ है कि इसने अब तक ना जाने कितने नर्सरी और गेट के बाहर घूमने वाले मालियों की किस्मत बदल रहा है।
और अंत में है मनी प्लांट जिसके तो नाम में ही ’मनी’ जुड़ा है।ना जाने कैसे ये मान्यता फैल चुकी है की जिसके घर में मनी प्लांट प्लांट की बेल फल फूल रही है उस पर पर माँ लक्ष्मी की अपार कृपा होती है। इससे एक ये भी क़िस्सा जुड़ा है कि किसी और की बगिया से बिना बताए चोरी से लाया गया मनी प्लांट ज्यादा अच्छी किस्मत लेकर आता है।तो चोरी तो हम शहर वालों को घुट्टी में पिलाई जा रही है।
मेरे घर में कभी मनी प्लांट नहीं लग पाया और मैं बहुत परेशान था।फिर अचानक मेरा मनी प्लांट लहलहाने लगा।और मैंने ग़ौर से देखा तो पता चला की ज़मीन में लगने वाला पौधा तो कभी नहीं पनपा लेकिन जो पौधा मैंने बस वैसे ही ख़ाली पड़ी विस्की और रम की बोतलों में पानी डालकर छोड़ दिया था वो ख़ुशी से दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। पत्रकार होते हुए मैंने तो मदिरा को हाथ नहीं लगाया लेकिन इन पौधों का स्टेटस अपडेट ज़रूर हो गया है।
वैसे देखा जाए तो स्टेटस अपडेट तो हमारा भी हुआ है।
हम तब काठ के उल्लू थे
अब हम गांठ के उल्लू बन चुके हैं।
लेखक-
अमिताभ श्रीवास्तव
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