अर्द्धसैनिकों के कल्याण एवं पुनर्वास के नाम पर वार्ब बना सफेद हाथी

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December 31, 2025

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अर्द्धसैनिकों के कल्याण एवं पुनर्वास के नाम पर वार्ब बना सफेद हाथी

-कॉनफैडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा बेहतर रोजगार की तलाश में भटकते पैरामिलिट्री चौंकीदारों वास्ते हाल ही में ऑनलाइन बनाए गए सीएपीएफ पुनर्वास पोर्टल का स्वागत किया।

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/भावना शर्मा/- कॉनफैडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन ने वार्ब की विश्वसनियता पर सवाल उठाते हुए सरकार से पिछले 14 सालों के वार्ब के कार्यों का ब्यौरा मांगा है। कितने पूर्व अर्धसैनिकों को रिटायरमेंट उपरांत नौकरी देने में वार्ब द्वारा सहायता दी गई। साथ ही यह भी बताया जाये कि अब तक कितने पूर्व अर्धसैनिकों को रिटायरमेंट उपरांत नौकरी देने में वार्ब द्वारा सहायता दी गई। उन्होने आरोप लगाते हुए कहा कि अभी तक वार्ब पूर्व अर्धसैनिकों के लिए सफेद हाथी ही साबित हुआ है।


                महासचिव रणबीर सिंह द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि पिछले 10 सालों  में केंद्रीय सुरक्षा बलों में समय से पहले नौकरी छोड़ने, वालंटियर रिटायरमेंट लेने का सिलसिला बढा है। तकरीबन 80 हजार जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति एवं 18 हजार जवानों द्वारा नौकरी का छोड़ना एक भयावह स्थिति की ओर इशारा करता है ना केवल सिपाही, हवलदार उपनिरीक्षक निरिक्षकों में नौकरी से त्यागपत्र या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का प्रचलन बढ़ा है बल्कि जवानों व आफिसर्स वर्ग में प्रमोशन, ट्रांसफर व घर परिवार से दूर साथ ही सुविधाओं की कमी के चलते अक्सर आपसी शूटआऊट एवं आत्महत्याओं में इजाफा हुआ है।
                 रणबीर सिंह के अनुसार अगर गृह मंत्रालय को अपने पूर्व अर्धसैनिकों की नौकरी व पुनर्वास की इतनी ही चिंता है तो सबसे पहले 23 नवंबर 2012 के गृह मंत्रालय द्वारा आदेश को लागू करवाया जाए जिसमें पूर्व अर्धसैनिकों को एक्स-सीएपीएफ का दर्जा दिया गया है। जबकि सत्तापक्ष तकरीबन राज्यों में सरकारें चला रहे हैं और यही हाल कांग्रेस शासित प्रदेशों का है। उपरोक्त आदेश गोवा को छोड़कर किसी राज्य ने लागू नहीं किया।  
               एक्स सीएपीएफ का दर्जा देने हेतु 29 जुलाई 2019 को माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह से रणबीर सिंह के नेतृत्व में मुलाकात कर ज्ञापन भी सौंपा गया था। विभिन्न राज्यों में कार्यरत वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा एक्स मैन दर्जा देने हेतु बार बार शांति पूर्ण धरना प्रदर्शन किए जा रहे हैं लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा ध्यान भटकाने के लिए सीएपीएफ पुनर्वास पोर्टल के नाम पर एक नया शगूफा छोड़ दिया।
               वार्ब यानी वेलफेयर एंड रिहैबिलिटेशन बोर्ड जिसका का गठन 2007 में पूर्व अर्धसैनिकों के पैंशन, पुनर्वास बेहतर कल्याणकारी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए गठन किया गया था। सरकार बताए कि पिछले 14 सालों में आज तक कितने पूर्व अर्धसैनिकों को रिटायरमेंट उपरांत नौकरी देने में वार्ब द्वारा सहायता दी गई। आश्चर्य तब और बढ़ जाता है कि आज तक वार्ब द्वारा पूर्व अर्धसैनिकों या विभिन्न वेलफेयर एसोसिएशन के बीच केंद्रीय स्तर पर कोई बैठक आयोजित नहीं की गई सिवाय एक मौके को छोड़कर जब श्रीमती अर्चना रामसुंदरम एसएसबी के डीजी एवं चेयरमैन वार्ब पद पर विराजमान थी। आठवां आश्चर्य तब और बढ़ जाता है जब पिछले मुलाकात में डीजी सीआरपीएफ से बैठक दौरान हमने केंद्रीय स्तर पर वार्ब की बैठक बुलाने का अनुरोध किया तो डीजी साहब लगे बगले झांकने, साहब को यही पता नहीं कि वह वार्ब के चेयरमैन हैं। वार्ब की नाक के नीचे दिल्ली में डिस्ट्रिक्ट वेलफेयर आफिसर पद पर कार्यरत डीआईजी लेवल के अधिकारी से हमने कई बार वार्ब मीटिंग बुलाने का अनुरोध किया लेकिन पिछले तीन साल से कोरोना के नाम पर मीटिंग को इग्नोर कर रहे हैं जबकि डीडब्ल्यूओ पद के अधिकारी की जिम्मेदारी बनती है कि वह वार्ब की तिमाही बैठक बुलाए। यह जांच का विषय है कि समस्त भारत में तैनात किन किन अधिकारियों ने तिमाही बैठक का आयोजन क्यों नहीं किया। राज्यवार सेवानिवृत, सेवारत एवं शहीद परिवारों की सुची क्या वार्ब उपलब्ध करा पाएगी इसमें संदेह है।
                 ऐसे क्या कारण व मजबूरियां रही कि कोई नया फैसला अर्ध सैनिक बलों पर जबरन थोप दिया जाता है कुछ उदाहरण हमारे सामने है। हमारी कॉनफैडरेसन द्वारा सीपीसी कैंटीन पर जीएसटी टैक्स छूट की मांग की तो उसका नाम बदलकर केंद्रीय पुलिस कल्याण भन्डार कर दिया साथ ही वोकल पे लोकल कर दिया गया छूट देने की बात भुला दी गई। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों द्वारा सीजीएचएस हैल्थ फैसलिटी का फायदा उठाते हैं जब 200-300 किलोमीटर तक डिस्पैंसरी ही नहीं तो पैरामिलिट्री परिवार इलाज हेतु जाएं कहां। अब डिस्पैंसरी के विस्तार के बजाय आयुष्मान योजना गृह मंत्रालय ले आया अब सवाल फिर उठता है कि जब सभी मेडिकल सुविधाओं से लैस अस्पताल आयुष्मान के पैनल में ही नहीं। एक ओर 100 दिन छुट्टी वाला फार्मूला जुमले की तरहां हवा में तैरता नजर आ रहा है। सीआईएसएफ जवानों की मात्र 30 दिनों की सालाना अवकाश है उनको सरकार कैसे 100 दिन छुट्टी दे पाएंगे।
               कॉनफैडरेसन जो कि पिछले 7 सालों से सड़क से शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं माननीय गृह मंत्रालय से श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हैं कि 2007 से लेकर आज तक वार्ब द्वारा कितने पुर्व अर्धसैनिकों को नौकरी देने में मदद की साथ ही पिछले 3 सालों में विभिन्न सुरक्षा बलों में डिस्ट्रिक्ट वेलफेयर आफिसर के पदों पर तैनात अधिकारियों द्वारा तिमाही वार्ब बैठक को आयोजित नहीं किया गया। वार्ब चेयरमैन की ऐसी क्या मजबूरियां रही कि पिछले 4 सालों में केंद्रीय स्तर पर विभिन्न एसोसिएशन व रिटायर्ड सैनिकों के साथ बैठक आयोजित नहीं की गई। कल्याण एवं पुनर्वास के नाम पर बना वार्ब एक छलावे के सिवाय और कुछ नहीं।

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