पंजाब में सीएम की कुर्सी के छः दावेदारों में कौन कितना दमदार ?

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December 31, 2025

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पंजाब में सीएम की कुर्सी के छः दावेदारों में कौन कितना दमदार ?

-कांग्रेस के चन्नी व सिद्धू, आप के भगवंत मान, अकाली व बसपा के सुखबीर सिंह बादल, संयुक्त समाज मोर्चा के बलबीर सिंह राजेवाल तथा भाजपा व पंजाब लोक कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच कांटे की टक्कर

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/पंजाब/शिव कुमार यादव/- इस बार के पंजाब विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरे सभी राजनीतिक दलों में मुख्यमंत्री पद के चेहरों की चर्चा अब तेज़ हो गई है। इस चर्चा के चलते पंजाब विधानसभा चुनाव काफी रोचक हो गया है। इसमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, अकाली-बसपा गठबंधन, भाजपा-पीएलसी व अकाली दल संयुक्त प्रमुख पार्टी के रूप में चुनाव लड़ रहे है। चुनावी रण में अपनी पकड़ बनाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दांव खेल रहे हैं। इसबार आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस में इस पद के लिए मुख्य मुक़ाबला मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच है हालांकि चरणजीत सिंह चन्नी के पक्ष में हालात अधिक अनुकूल दिख रहे हैं।
              उधर अकाली दल-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा सुखबीर सिंह बादल हैं. इस बात का एलान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और सुखबीर सिंह बादल के पिता प्रकाश सिंह बादल ने किया है। किसान आंदोलन के बाद बनी किसानों की नई पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा ने बलबीर सिंह राजेवाल को अपना नेता चुना है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी, कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा की अकाली दल (संयुक्त) ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है।
              पंजाब विधानसभा चुनाव में नए राजनीतिक समीकरणों के चलते कांटे की टक्कर बनी हुई है। अभी यह कहना कि पंजाब की कुर्सी किसे मिलेगी अभी जल्दबाजी होगी। इस रिपोर्ट में हम मुख्यमंत्री पद के लिए सभी पार्टियों और गठबंधनों के संभावित 6 उम्मीदवारों के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

1
चरणजीत सिंह चन्नी होंगे पंजाब के मुख्यमंत्री, दलित-सिख चेहरा कांग्रेस का ’मास्टरस्ट्रोक’?
चरणजीत सिंह चन्नी (कांग्रेस)ः-
सकारात्मक पक्षः-
चरणजीत सिंह चन्नी दलित समुदाय से आते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में अभी तक के क़रीब चार महीनों में उन्होंने दलित समुदाय पर अपनी पकड़ और मज़बूत बनाई है। मुख्यमंत्री पद के लिए बाक़ी सारे उम्मीदवार जाट सिख समुदाय के हैं। ऐसे में जाट सिख वोटों के बंटने की पूरी संभावना है। इन हालातों में दलित समुदाय के अकेले मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने का फ़ायदा चन्नी को हो सकता है। वहीं किसानों की कुछ मांगें मान लेने और बिजली के साथ पेट्रोल-डीज़ल को सस्ता करने जैसे फ़ैसलों से भी चन्नी को फ़ायदा हो सकता है। आम जनता की मुख्यमंत्री तक पहुँच बनाने और मुख्यमंत्री को आम आदमी जैसा दिखाने से चन्नी ’आप’ के एजेंडे का मुक़ाबला करने में सक्षम हो सकते हैं।
                    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान पंजाब समर्थक रुख़ अपनाने और चुनाव के दौरान उनके रिश्तेदारों के खिलाफ प्रवर्त्तन निदेशालय की छापेमारी से चन्नी का क़द और बढ़ गया है.


नकारात्मक पक्षः-
नवजोत सिद्धू, सुनील जाखड़ और मनीष तिवारी जैसे कांग्रेस नेताओं के विरोध का नकारात्मक असर चन्नी की दावेदारी पर पड़ सकता है। पारंपरिक नेताओं के बीच विरोधी विचार भी एक बड़ी समस्या है। आम आदमी जैसे दिखने की चन्नी की कोशिश के चलते वे विरोधियों के बीच मज़ाक का पात्र भी बनते रहे हैं। बेअदबी और ड्रग्स मामलों में कोई ठोस कार्रवाई न करना चरणजीत सिंह चन्नी के लिए महंगा साबित हो सकता है। कांग्रेस पार्टी और पंजाब सरकार की कमियों की जवाबदेही भी चन्नी पर भारी पड़ सकती है।

2
कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या पंजाब कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकते हैं?
कैप्टन अमरिंदर सिंह (पंजाब लोक कांग्रेस-बीजेपी-संयुक्त अकाली दल)-
इस बार बीजेपी, अमरिंदर सिंह की नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल (संयुक्त) ने मिलकर चुनाव लड़ने का एलान किया है. हालांकि इस गठबंधन ने अब तक मुख्यमंत्री के किसी चेहरे की घोषणा नहीं की है। हालांकि इस गठबंधन में अभी तक केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह ही ऐसा चेहरा हैं जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन सकते हैं।
सकारात्मक पक्षःः-
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के हितों की रक्षा करने वाली हस्ती के रूप में जाने जाते हैं। वे अपनी मुखरता और विचारों के लिए जाने जाते हैं. बात चाहे ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में 1984 में सांसद और अपनी ही पार्टी से इस्तीफ़ा देने की हो या राज्य के पानी के मुद्दे पर 2004 में पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कराना हो। राष्ट्रवाद और पाकिस्तान को घेरने के मुद्दे पर वह बीजेपी से एक क़दम आगे दिखते हैं। जो उन्हें हिंदू समुदाय में लोकप्रिय बनाता है।


नकारात्मक पक्षः-
उनकी सबसे बड़ी ख़ामी पिछले साढ़े चार साल का उनका कार्यकाल है जिससे कई लोगों को यह भरोसा हो गया है कि कैप्टन अमरिंदर तक लोगों की पहुंच नहीं थी। साथ ही उन्होंने आम आदमी के काम को प्राथमिकता नहीं दी है। वहीं संसद से तीन कृषि क़ानून पारित करने के चलते (हालांकि बाद में बिल वापस ले लिए गए) लगभग पूरे ग्रामीण इलाक़ों में बीजेपी को लेकर काफ़ी नाराज़गी है। कांग्रेस में अपने ख़लिफ़ बग़ावत होने के बाद जब उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया, तो उन पर साढ़े चार साल के ’ख़राब’ प्रदर्शन के साथ-साथ ’किसान विरोधियों’ के साथ गठजोड़ करने के आरोप भी लगाए गए।

3
पंजाब में भगवंत मान क्या चरणजीत सिंह चन्नी की काट बन पाएंगे?
भगवंत मान (आम आदमी पार्टी)ः-
सकारात्मक पक्षःः-
भगवंत मान स्टार कलाकार रह चुके हैं। वे एक तेज़ तर्रार कैंपेनर हैं जिनकी पूरे पंजाब ख़ासकर युवाओं के बीच अच्छी पकड़ है। उनकी छवि एक ईमानदार नेता की है। वे लगभग दो दशकों से राजनीति में हैं, फिर भी वे भ्रष्टाचार के दाग़ से अभी तक बचे हुए हैं। भगवंत मान मालवा क्षेत्र के सामान्य जाट सिख परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ये दोनों ऐसे पहलू हैं जिसका प्रभाव पंजाब की सता पर हमेशा रहा है। केजरीवाल के दिल्ली मॉडल की पंजाब में अच्छी अपील भी भगवंत मान के पक्ष में जाती है।


नकारात्मक पक्षः-
कथित तौर पर शराब के नशे में ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने के लिए विपक्षी नेता उनकी “नशे की लत“ की काफ़ी निंदा करते रहे हैं। आम आदमी पार्टी का सांगठनिक ढांचा कांग्रेस और अकाली दल जितना मज़बूत नहीं है। ये बात उनके लिए समस्या हो सकती है। पार्टी का आधार मालवा तक ही सिमटा होना और माझा और दोआबा में मिली हार के चलते ही पिछली बार पार्टी 20 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। कॉमेडियन होने के कारण राजनीति के विरोधियों द्वारा बनाई गई उनकी ग़ैर-गंभीर छवि भी उनके लिए हानिकारक हो सकती है।

4
सिद्धू की राजनीति से क्या पंजाब के हिन्दू वोटर कांग्रेस को दे सकते हैं झटका
नवजोत सिंह सिद्धू (कांग्रेस)ः-
सकारात्मक पक्षः-
नवजोत सिंह सिद्धू एक स्टार खिलाड़ी और मनोरंजन की दुनिया में बड़ा नाम होने के कारण पंजाब के बाहर भी जाने जाते हैं। पंजाब मॉडल, करतारपुर कॉरिडोर खोलने में उनकी भूमिका और कैप्टन अमरिंदर सिंह को सत्ता से हटाने के कारण उनकी ख़ासी अपील है। सिद्धू को ड्रग माफ़िया और बेअदबी के मामलों में न्याय के लिए स्टैंड लेने से उन्हें फ़ायदा हो सकता है। सिद्धू मालवा इलाक़े के जाट सिख हैं, लेकिन माझा उनकी कर्मभूमि है। वहीं हिंदू रीति-रिवाजो के मानने के चलते शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ हिंदुओं में भी उनकी अच्छी पकड़ है।


नकारात्मक पक्षः-
नवजोत सिद्धू के बेबाक बोलने और ग़ुस्से में आकर प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे देने से उनकी छवि ख़राब हुई है। टीम वर्क के बजाय ’वन मैन आर्मी’ के रूप में काम करने का उनका अंदाज़ कांग्रेस के लिए नुक़सानदेह रहा है। पंजाब कांग्रेस के पारंपरिक नेतृत्व से बढ़ती दूरी सिद्धू के लिए नकारात्मक साबित हो सकती है।

5
पंजाब में सत्ता विरोधी लहर का नाम सुखबीर तो नहीं?
सुखबीर सिंह बादल (अकाली दल-बसपा)ः-
सकारात्मक पक्षः-
सुखबीर सिंह बादल नेता के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया के कुशल प्रबंधक के रूप में भी जाने जाते हैं। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि सुखबीर की क़ाबिलियत का कोई मुक़ाबला नहीं है। शिरोमणि अकाली दल में उनके नेतृत्व को अब कोई चुनौती भी नहीं बची है। पंजाब भर में अकाली दल का मज़बूत ढांचा और अनुशासित कैडर बहुकोणीय मुक़ाबले में फ़ायदेमंद हो सकता है। बहुजन समाज पार्टी के साथ अकाली दल का गठबंधन जाट सिख और दलित वोट बैंक का एक अच्छा संयोग साबित हो सकता है। अकाली दल (संयुक्त) के रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा जैसे अकालियों की अकाली दल में वापसी और टिकटों के बंटवारे के दौरान किसी बग़ावत का न होना भी इनके पक्ष में जाता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के पास पंजाब में समानांतर सता और ढांचा है जिस पर अकाली दल के क़ब्ज़े का भी उन्हें फ़ायदा हो सकता है।


नकारात्मक पक्षःः-
सुखबीर सिंह बादल अकाली दल को एक निजी कंपनी के रूप में चलाने और हथियारों के बल पर अपने व्यापार का विस्तार करने के आरोप से अभी तक छुटकारा नहीं पा सके हैं। अकाली दल के राज में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और न्याय की कमी के साथ रेत, ड्रग्स, केबल और परिवहन क्षेत्र में माफ़िया गतिविधि चलाने के आरोप भी उनका पीछा करते रहे हैं। बिना सब्सिडी वाली घोषणाओं के अलावा कुछ ख़ास नए कार्यक्रमों को एजेंडे में शामिल न कर पाना और पंजाब के पारंपरिक और पंथ से जुड़े मुद्दों को चुनावी मुद्दे न बना पाना उनके खिलाफ़ जा सकता है।

6
किसान आंदोलन स्थगित, नेताओं ने कहा – सरकार वादे से मुकरी तो फिर होगा आंदोलन
बलबीर सिंह राजेवाल (संयुक्त समाज मोर्चा)-
सकारात्मक पक्षः-
तीन कृषि क़ानूनों के ख़लिफ़ संघर्ष में एक अग्रणी व्यक्ति के तौर पर वे पारंपरिक राजनीति और व्यवस्था के ख़लिफ़ एक चेहरा बन गए हैं। राजेवाल तथ्यों के आधार पर सरल और आम भाषा बोलने की कला में माहिर हैं। राजेवाल उन लोगों का साथ पा सकते हैं, जो किसान आंदोलन का भरपूर समर्थन करते रहे हैं और किसानों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। वे पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। उनके ख़लिफ़ कोई आरोप या विवाद भी नहीं हैं।


नकारात्मक पक्षः-
किसान आंदोलन में शामिल पंजाब के बड़े कैडर संगठनों का चुनाव से बाहर रहना, राजेवाल के लिए नुक़सानदायक साबित हो सकता है। वहीं अनुशासित कैडर की कमी, चुनाव के लिए पर्याप्त धन और ढांचे की कमी इस मोर्चे की कमज़ोर कड़ी साबित हो सकती है। पारंपरिक पार्टियों से जुड़े किसानों के वोट बंटने के डर से शहरी क्षेत्रों और समाज के ग़ैर-किसान वर्गों का समर्थन मिलना मुश्किल है। इसके अलावा, ख़ुद राजेवाल 80 साल के हैं। ऐसे में ये सवाल भी है कि किसान आंदोलन में अपनी क़ाबिलियत साबित करने के बाद भी क्या वे चुनाव मैनेज कर पाएंगे।

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