भाई दूज एक पावन पर्व होने के साथ ही सात्विक स्नेह का प्रतीक भी है। भाई-बहन के अटूट रिश्ते का तथा उस “रिश्ते के निर्वहन का पर्व है। बहिन चाहे कहीं भी हो, भाई के लिये उसके हृदय से सदा दुआएं ही निकलती हैं। हर बहिन को अपना भाई बहुत प्यारा होता है। हमारे देश में मनाये जाने वाले प्रत्येक पर्वो की तरह भाई दूज की भी अपनी पौराणिक मान्यता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं।
यह पर्व भारत में सर्वत्र भाई-बहन के त्यौहार के रूप में प्रतिष्ठित हैं,और इससे जुड़ी विभिन्न मान्यताएं परिवेश के अनुसार भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज भी हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पर्व का प्रारंभ भगवान सूर्य के पुत्र-पुत्री यम-यमुना (भाई-बहन) के प्रेम से हुआ है। एक बार यम ने किसी बात पर क्रोधित होकर अपनी सौतेली मां छाया को लात मार दिया! तब छाया ने उन्हे मृत्युलोक में रहने का शाप दे दिया। फलतः यम को मृत्युलोक के शासन की बागडोर संभालनी पड़ी। पुत्री यमुना को भी सूर्य (पिता) ने तीनों लोकों के कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेज दिया ! पिता के आदेशानुसार यमुना अपने एक अंश से नदी बनकर कालिंदी पर्वत से धारा के रुप में उतरकर धरती पर आई, और यमुना कहलाई! एक दिन यमुना को उदास देखकर गंगा ने बहन से उसकी उदासी का कारण पूछा तो यमुना कहने लगी! क्या बताऊं बहन ! मैं बड़ी अभागन हूँ, पिछले कई वर्षों से मैं अपने भ्राता यम से नहीं मिल पाई हूँ। लगता है भईया यम ने मुझे बिलकुल ही भुला दिया है। तब गंगा उसे धैर्य बंधाते हुवे कहती है-तुम आज ही अपने भाई को याद कर घर के बाहर तेल का एक चौमुखी दीपक प्रज्जवलित करो, जिससे चतुर्दिक फैलता यह प्रकाश यम को तुम्हारे पास आने के लिये आमंत्रित करेगा,और चार दिन के भीतर ही यम तुमसे मिलने के लिये आएंगे।
तुम उनके स्वागत पूजा के लिये स्वादिष्ट व्यंजनों सहित तत्पर रहकर दरवाजे पर उसकी प्रतीक्षा करो ! यह कहकर गंगा यमराज (धर्मराज) को बुलाने यमलोक चली गई !
यमपुरी में यमराज अपने अनुचरों सहित कार्य में व्यस्त थे ! अचानक गंगा को सामने देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ! उन्होंने गंगा का स्वागत सत्कार करते हुए ,उनसे आगमन का प्रयोजन पूछा ! तब गंगा ने यमुना की व्यथा का वर्णन यम से किया ! बहन यमी का नाम सुनते ही यमराज यमुना से मिलने को व्यग्र हो उठे। ग्लानि और भावुकता से उनके नयन सजल हो उठे और तुरंत गंगा के साथ चल पड़े !
भ्राता यम को देखकर बहन यमुना की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा! खुशी से पागल बहन भाई को देखकर अपनी सुध-बुध ही खो बैठी ! यमुना ने जैसे-तैसे भाई को बैठाकर उसका तिलक किया. आरती उतारी एवं स्वयं अपने हाथों से मिष्ठान्न खिलाकर भाई के दीर्घायु एव सुखमय जीवन की कामना की ! बहन के प्रेम से प्रसन्न होकर यम ने बहन यमी को अनेक उपहार देते हुए कहा-बहिन आज तेरी जो इच्छा हो वह मांग ले ! तब बहन ने कहा भईया आपके दर्शन मात्र से मेरी समस्त इच्छाएं तृप्त हो गई हैं। मुझे किसी वस्तु की चाह नहीं रही, किंतु यदि देना चाहते हो तो प्रतिवर्ष इसी तिथि को आकर मुझे दर्शन दे दिया करो ! यमराज ने तब कहा-वह तो मैंने तेरे मांगने से पहिले ही यह निश्चय कर लिया था बहिन, कि मैं वर्ष में सभी काम छोड़कर एक दिन तुम्हारे पास आया करूंगा ! परंतु जब तक तुम अपनी इच्छा से कुछ नहीं मांगोगी तो मुझे संतोष नहीं होगा ! इस पर यमुना ने संसार के सभी भाई-बहनों के लिये यमराज से वर मांगते हुए कहा- “भईया मुझे यह वर दो कि जो भाई-बहन एक साथ आज के दिन मुझमें (यमुना) स्नान कर इस पर्व को मनायेंगे वह दीर्घजीवी व समृद्धशाली होगा ! तथा संसार का जो कोई भी प्राणी मुझमें स्नान करेगा वह यमलोक नहीं जायेगा ! “
यमराज ने बहन को यह वर देते हुए यमुना की महत्ता को बढ़ाया और कहा कि- “आज से हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया को समस्त संसार हम भाई-बहन के इस मिलन को भैयादूज के रूप में मनाएगा !“ अपने वचन के अनुसार आज भी प्रतिवर्ष यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने भाईदूज के दिन आते हैं। यमुना तट पर मथुरा में विश्राम घाट के किनारे यम-यमी का विशाल मंदिर है ,जहां प्रतिवर्ष भाईदूज के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। यहां आकर असंख्य भाई-बहन यमुना स्नान कर भाईदूज का पर्व आस्था पूर्वक मनाते हुए अपने दीर्घजीवी, समृद्धशाली होने के साथ ही इस नश्वर संसार से मुक्ति और बैकुण्ठधाम के लिये आश्वस्त होते हैं। आजकल जीवन में भौतिकता का समावेश कुछ अधिक हो जाने के कारण आत्मीय संबंधों में भावहीनता आती जा रही है। रिश्ते अब आत्मीय न होकर नाटकीय बनते जा रहे हैं, जिनमें भावनाओं का कोई महत्त्व नहीं रह गया। है। हमे चाहिये कि हम इस पावन पर्व की गरिमा को बनाए रखें ! भाई-बहन के अटूट रिश्ते को टूटने न दें। इस पवित्र रिश्ते पर औपचारिकता की परतें न चढ़ने दें । प्राचीन काल से लेकर आज तक भाईयों ने बहनों के लिये बड़े-बड़े त्याग किये हैं। भाईयों की गौरवशाली परंपरा और मिसाल रही है। भाईयों ने सदा ही बहनों की लाज रखी है, और बहनों ने भी भाई के लिये स्नेह को जीवन भर निभाया है। स्नेह के इस पर्व में धन-दौलत को न आने दें। यह स्नेह का नाजुक पर्व स्नेह से ही मजबूत होता है। और फिर इतना मजबूत होता है, कि तोड़े नहीं टूटता ! आईये हम इसके अस्तित्व को शाश्वत करें !
लेखक-
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत
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