रेवड़ी कल्चर पर फिर बरसा सुप्रीम कोर्ट, कहा- मुफ्त सौगातें एक गंभीर मुद्दा

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
December 23, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

रेवड़ी कल्चर पर फिर बरसा सुप्रीम कोर्ट, कहा- मुफ्त सौगातें एक गंभीर मुद्दा

-अर्थव्यवस्था को पैसे के नुकसान से बचाने के लिए मुफ्त सौगातों व कल्याणकारी कदमों के बीच संतुलन जरूरी

नई दिल्ली/- उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि मुफ्त की सौगातें और सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं दो अलग- अलग चीजें हैं तथा अर्थव्यवस्था को पैसे के नुकसान एवं कल्याणकारी कदमों के बीच संतुलन कायम करना होगा। इसके साथ ही न्यायालय ने मुफ्त सौगात देने का वादा करने के लिए राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने की संभावना से भी इनकार किया। न्यायालय ने विभिन्न पक्षों को 17 अगस्त से पहले इस पहलू पर सुझाव देने को कहा है।
              प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि चुनाव के दौरान तर्कहीन मुफ्त सौगात देने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने का विचार ‘अलोकतांत्रिक’ है। पीठ की ओर से प्रधान न्यायाधीश रमण ने कहा, मैं किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने के विषय में नहीं जाना चाहता क्योंकि यह एक अलोकतांत्रिक विचार है… आखिरकार हमारे यहां लोकतंत्र है।
             उन्होंने कहा कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान तर्कहीन मुफ्त सौगात देने का वादा एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन वह इस संबंध में वैधानिक स्थिति स्पष्ट नहीं होने पर भी विधायी क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करेंगे। पीठ ने कहा, आप मुझे अनिच्छुक या परंपरावादी कह सकते हैं लेकिन मैं विधायी क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करना चाहता… मैं रूढ़िवादी हूं। मैं विधायिका से जुड़े क्षेत्रों में अतिक्रमण नहीं करना चाहता। यह एक गंभीर विषय है। यह कोई आसान बात नहीं है। हमें दूसरों को भी सुनने दें।’
              प्रधान न्यायाधीश 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ वकीलों की ओर से कुछ सुझाव दिए गए हैं। उन्होंने शेष पक्षों से उनकी सेवानिवृत्ति से पहले आवश्यक कदम उठाने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख तय की।
              उन्होंने कहा, ‘मुफ्त सौगात और समाज कल्याण योजना भिन्न हैं, अर्थव्यवस्था को पैसे का नुकसान और लोगों का कल्याण दोनों के बीच संतुलन कायम करना होगा और इसीलिए यह बहस है। कोई एक तो ऐसा होना चाहिए जो अपनी दृष्टि और विचार सामने रख सके। कृपया मेरी सेवानिवृत्ति से पहले कुछ सुझाव सौंपे।’
               सर्वोच्च अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस याचिका में चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सौगातों का वादा करने के चलन का विरोध किया गया है और निर्वाचन आयोग से उनके चुनाव चिह्नों पर रोक लगाने तथा उनका पंजीकरण रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करने का अनुरोध किया गया है।
               उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह की दलीलों पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘यह एक गंभीर मुद्दा है और जिन्हें (मुफ्त सौगात मिल रही हैं) वे इसे चाहते हैं। हमारा एक कल्याणकारी राज्य है। कुछ लोग कह सकते हैं कि वे कर का भुगतान कर रहे हैं और इसका उपयोग विकास कार्यक्रमों के लिए किया जाना है। इसलिए समिति को दोनों पक्षों को सुनना चाहिए।’
               केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हाल में कुछ राजनीतिक दलों ने मुफ्त सौगातों के वितरण को एक कला के स्तर तक बढ़ा दिया है। चुनाव इसी आधार पर लड़े जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के चुनावी परि²श्य में कुछ दल समझते हैं कि चीजों का मुफ्त वितरण ही समाज के लिए ‘कल्याणकारी उपायों’ का एकमात्र तरीका है। यह समझ पूरी तरह से अवैज्ञानिक है और इससे गंभीर आर्थिक संकट की स्थिति बनेगी।
             शीर्ष विधि अधिकारी ने‘संकटग्रस्त’बिजली क्षेत्र का उदाहरण दिया और कहा कि कई बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियां पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) हैं और वे वित्तीय संकट में हैं।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox