उमेश कुमार सिंह
13 उपन्यास, 13 कहानी-संग्रह समेत कविता, गजल, संस्मरण, लेख, इंटरव्यू, सिनेमा सहित दयानंद पांडेय की विभिन्न विधओं में 75 पुस्तकें प्रकाशित हैं। दयानंद पांडेय के उपन्यास, कहानियों, कविताओं और गजलों का विभिन्न भाषाओँ में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। लोक कवि अब गाते नहीं का भोजपुरी अनुवाद डा. ओम प्रकाश सिंह द्वारा प्रकाशित। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा प्रतिष्ठित सम्मान क्रमशः लोहिया साहित्य सम्मान और साहित्य भूषण। उत्तर प्रदेश कर्मचारी संस्थान द्वारा साहित्य गौरव। लोक कवि अब गाते नहीं उपन्यास पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद सम्मान, कहानी संग्रह ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ पर यशपाल सम्मान तथा फेसबुक में पफंसे चेहरे पर सर्जना सम्मान सहित कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं। डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक कथा लखनऊ 10 भागों में प्रकाशित हुई है। जिसके लेखक दयानंद पाडेय है।
कहते हैं जादू सरसो पे पढ़े जाते हैं, तरबूज पर नहीं। तो लखनऊ वही सरसो है, जहां कहानियों का जादू सिर चढ़ कर बोलता है। कहानी मन में भी लिखी जाती है। सिर्फ कागज पर वफलम¬¬ से ही नहीं। उंगलियों से कंप्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल पर ही नहीं। कहानी दुनिया भर में दुनिया की सभी भाषाओं में लिखी गई है। पर लखनऊ में जैसी और जिस तरह की कहानियां लिखी गई हैं और निरंतर लिखी जा रही हैं, कहीं और नहीं। हर शहर की अपनी तासीर होती है पर लखनऊ की तासीर और तेवर के क्या कहने। माना जाता है कि हिंदी की पहली कहानी लखनऊ में ही लिखी गई। वह कहानी है रानी केतकी की कहानी। जिसे इंशा अल्ला खां ‘इंशा’ ने लिखी ।
दयानंद पांडेय का कहना है कि कथा-लखनऊ का एक विरल सौभाग्य यह भी है कि इस में दो परिवारों की तीन-तीन लोगों की कथा भी शामिल है। जैसे अमृतलाल नागर की तीन पीढ़ी है। अमृतलाल नागर की कहानी तो है ही, नागर जी की बेटी अचला नागर की भी कहानी है। अचला नागर की बहू सविता शर्मा नागर की भी कहानी है कथा-लखनऊ में। इतना ही नहीं, अमृतलाल नागर के अनुज मदनलाल नागर की पेंटिंग भी कथा-लखनऊ के कवर के रुप में कुछ खंड में उपयोग कर रहे हैं। जिक्र ज़रूरी है कि वर्ष 2023 ने मदनलाल नागर की जन्म-शताब्दी भी मनाई है। इसी तरह सज्जाद ज़हीर की कहानी के साथ ही उन की पत्नी रजिया सज्जाद ज़हीर और बेटी नूर ज़हीर की भी कहानी है। सिलसिला आगे बढ़ता है सो गंगा प्रसाद मिश्र और उन की बेटी इंदु शुक्ला की कहानी तथा रामलाल और उन के सुपुत्रा वीर विनोद छाबड़ा की कहानी भी इस कथा-लखनऊ का गौरव है। इतना ही नहीं, सुखद यह है कि तीन पीढ़ियों ही नहीं, कथा-लखनऊ तीन सदी की कहानियों से लबरेज है। कह सकते हैं कि यह कथा-लखनऊ, लखनऊ के कथाकार पुरखों को प्रणाम करते हुए समकालीनों को साथ लिए नए कथाकारों के स्वागत में भी नत है। बहुत कम लोग जानते हैं कि दुनिया में पांच लखनऊ हैं। सिर्फ भारत में ही नहीं। कनाडा, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गुयाना में भी लखनऊ शहर हैं। कुछ ऐसे सामर्थ्यवान लोग आए लखनऊ और लौट कर लखनऊ की मोहब्बत में नए-नए लखनऊ बसाए अपने-अपने देश में। लखनऊ का दुनिया में कोई जोड़ नहीं है। बेजोड़ है लखनऊ। जैसे लखनऊ शहर बेजोड़ है, वैसे ही लखनऊ कहानियों और कहानीकारों का भी बेजोड़ शहर है।
और शहरों में कवि, शायर ज़्यादा मिलते हैं। लेकिन लखनऊ ही ऐसा शहर है जहां कथाकार भी बहुत मिलते हैं। ऐसे जैसे लखनऊ सिर्फ बागों का ही नहीं कथाकारों का भी शहर है। बारहा कोशिश की है कि लखनऊ के आदि से ले कर अब तक के सभी नए-पुराने कथाकारों की सांस और, ख़ुशबू कथा-लखनऊ की धरोहर बने। इसी गरज से मशहूर और पायेदार कथाकारों के साथ ही भूले-बिसरे कथाकारों की कहानियों को भी खोज-खोज कर इस संकलन में परोस रहा हूं। कम लोग जानते हैं कि एक समय लखनऊ में रहे कुछ मशहूर कवियों ने भी बहुत अच्छी कहानियां लिखी हैं। जैसे पंत, निराला, महादेवी वर्मा, कुंवर नारायण, रघुवीर सहाय, विनोद भारद्वाज हैं। महादेवी वर्मा समेत इन कवियों की कहानियां तो हैं ही, साथ ही एकदम नए-नवेले कथाकारों की कहानियों को भी उसी सम्मान और उसी भाव के साथ परोस रहा हूं।
कोशिश यही रही है कि कोई कैसा भी हो, किसी भी विचारधरा, किसी भी आग्रह का हो, खुली धरती, खुले आसमान, खुली हवा और खुले मन से उसे इस कथा-लखनऊ का नगीना बना कर उपस्थित करुं। कोई भेद-भाव न करुं। डायमंड बुक्स के चेयरमैन नरेंद्र कुमार वर्मा जी का हार्दिक आभार, दस खंड में 175 कथाओं की कथा-पुष्प की माला में गुंथे कथा-लखनऊ को सब के सामने उपस्थित करने के लिए। लेखकों का स्वाभिमान और सम्मान बनाए रखने के लिए भी डायमंड बुक्स के चेयरमैन नरेंद्र कुमार वर्मा का बहुत आभार। अप्रतिम चांदनी। जैसे गोमती नदी चांदनी में नहाती हुई, बल खाती हुई लखनऊ से लिपटती हुई कल-कल बहती है ठीक वैसे ही कथा-लखनऊ के कवर पर यह पेंटिंग, यह फोटो कथा-लखनऊ को लपेटे हुए इस में संकलित कथाओं की चांदनी में चमक भरती हुई मिलती हैं। अविकल कल-कल।
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