नई दिल्ली/उमा सक्सेना/- बाल साहित्य की दुनिया में बालस्वरूप राही एक ऐसा नाम है जिस पर हर पीढ़ी का बच्चा गर्व कर सकता है। उनकी रचनाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन-मूल्यों, सरल भावों और ज्ञान के प्रति सम्मान को सहजता से बालमन तक पहुँचाने का माध्यम हैं। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित उनका नवीन संग्रह “हम छोड़ेंगे नहीं किताब” आज के डिजिटल युग में बच्चों को किताबों से जोड़ने का एक गहरा और सफल प्रयास माना जा रहा है।
बचपन के “बालो” से देश के प्रिय बाल-कवि बनने तक का सफर
लेखक बालस्वरूप राही बताते हैं कि वे सात भाइयों में सबसे छोटे थे और परिवार में उन्हें प्यार से “बालो” कहा जाता था। यही “बालो” समय के साथ बच्चों के चहेते कवि ‘बालस्वरूप राही’ के रूप में पहचाने जाने लगे। उनके कवि-मन की शुरुआत बचपन के वातावरण से हुई—घर-परिवार, खेल-कूद और बचपन की सहज दुनिया ने उनके संवेदनशील मन को आकार दिया। उर्दू के शेरों और अंग्रेज़ी नर्सरी राइम्स ने उनके भीतर कविता का बीज बोया, जो आगे चलकर साहित्य का विराट पेड़ बन गया।
आधुनिक बच्चों की भाषा में रची-बसी कविताएँ
पुस्तक में शामिल कविताएँ न केवल सरल हैं बल्कि आधुनिक बच्चे की दिनचर्या से गहराई से जुड़ी हुई हैं। “मोबाइल,” “पीज़ा,” “कम्प्यूटर,” “सचिन आ गया” जैसे शीर्षकों से स्पष्ट होता है कि कवि ने बच्चों की वास्तविक दुनिया को सीधे कविता में पिरोया है। राही जी पूरी दृढ़ता से कहते हैं—“हम छोड़ेंगे नहीं किताब!” यह पंक्ति एक कविता से अधिक, डिजिटल युग में बच्चों के लिए आवश्यक संदेश है कि ज्ञान का मूल स्रोत आज भी पुस्तकें ही हैं।
कविता—जीवन का अविभाज्य हिस्सा
राही जी मानते हैं कि डिजिटल बदलावों के बावजूद कविता कभी मिट नहीं सकती। उनका कहना है— “कविता है तो हम हैं, कविता के बिना ज़िंदगी अधूरी है।” यही कारण है कि उनकी कविताओं में सरलता के साथ गहरी संवेदना मिलती है। शिक्षा और मनोरंजन का संतुलन उनकी कविताओं को हर आयु-वर्ग के लिए उपयोगी बनाता है। वे ज्ञान को सर्वोच्च बताते हुए लिखते हैं:
“सबसे ऊँचा होता ज्ञान, उससे नीची हर दुकान।”
संवेदनशील भाषा और बालमन की सहज अभिव्यक्ति
बालस्वरूप राही की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरल और मधुर भाषा है। वे बच्चों पर कठिन शब्दों या दार्शनिकता का बोझ नहीं डालते। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए लगता है मानो कोई बच्चा ही बच्चो से बात कर रहा हो—लयात्मक, सहज और भावपूर्ण। यही कारण है कि उनका यह संग्रह न केवल बाल साहित्य में विशेष स्थान रखता है, बल्कि बच्चों को साहित्य से जोड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
संपादन, शिक्षण और साहित्य सेवा में महत्वपूर्ण योगदान
राही जी का साहित्यिक सफर उतना ही प्रेरक है जितनी उनकी कविताएँ। दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन, ‘सरिता’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘प्रोब इंडिया’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में संपादन कार्य, भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव और हिन्दी भवन में महाप्रबंधक के रूप में योगदान—इन सभी ने हिन्दी साहित्य के विकास में उनकी भूमिका को और सशक्त बनाया है।
उनकी अन्य अमूल्य कृतियों में “दादी अम्मा मुझे बताओ,” “हम जब होंगे बड़े,” “सुनो डाकिये भाई,” “राग विराग,” और “जो नितांत मेरी हैं” जैसी रचनाएँ व्यापक लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं।
पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यिक यात्रा
बाल साहित्य को समर्पित अपने कार्य के लिए बालस्वरूप राही को प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एनसीईआरटी का राष्ट्रीय पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान और साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं।
परंपरा और आधुनिकता का सुंदर समन्वय
यह संग्रह केवल कविताओं का संकलन नहीं, बल्कि पुस्तक-पठन की परंपरा को पुनर्जीवित करने का सशक्त अभियान है। जब बच्चे मोबाइल और स्क्रीन की दुनिया में उलझ रहे हैं, तब राही जी का संदेश—“हम छोड़ेंगे नहीं किताब”—समय की माँग बन जाता है।
यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए अनिवार्य है जो बालसाहित्य के माध्यम से जीवन की सरलता, सुंदरता और संस्कारों को फिर से महसूस करना चाहते हैं।


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