नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- राज्यसभा के उपचुनाव के बाद अब देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी पारा चड़ने लगा है। एक तरफ विपक्षी एकता के लिए कई नेता काफी जोड़तोड़ बैठा रहे है। वही दूसरी तरफ भाजपा भी विपक्ष के चक्रव्यूह को तोड़ने की लिए अपनी योजना बना रही है। हालांकि माना यह भी जा रहा है कि अगर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष एकजुट हो जाता है और सांझा उम्मीदवार मैदान में उतारता है तो यह भाजपा व एनडीए के लिए काफी परेशानी भरा होगा। अब देखना है कि आखिर अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति. विपक्ष का होगा या फिर एनडीए का।
देश के सबसे सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को चुनाव होना है। इसके लिए भाजपा की नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए गठबंधन में हलचल बढ़ गई है। हालांकि, इस बीच तीसरा मोर्चा भी तैयार होता दिख रहा है, जिसकी अगुआई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कर रही हैं। फिलहाल, तीसरे मोर्चे का भविष्य दिख नहीं रहा है, क्योंकि विपक्ष के कई दल इसकी मुखालफत करने लगे हैं।
दूसरी तरफ हर किसी की नजर राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवारों के नामों पर टिक गई है। हर कोई कयास लगा रहा है कि एनडीए की तरफ से कौन उम्मीदवार होगा और उसे टक्कर देने के लिए विपक्ष किस नाम को आगे बढ़ाएगी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि एनडीए से पहले विपक्ष अपने उम्मीदवार का एलान कर सकता है। ऐसे में समझते हैं राष्ट्रपति चुनाव का पूरा गणित और उन नामों के बारे में भी जानते हैं, जिन्हें विपक्ष उम्मीदवार बना सकता है।
राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए अधिसूचना 15 जून को जारी होगी। वहीं, नामांकन की आखिरी तारीख 29 जून तय की गई है। नामांकन पत्रों की जांच 30 जून तक होगी। उम्मीदवार अपना नामांकन दो जुलाई तक वापस ले सकेंगे। राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को होगा, जिसके नतीजे 21 जुलाई को आएंगे। 25 जुलाई को नए राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण समारोह होगा।
कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए के पास अभी दो लाख 59 हजार वैल्यू वाले वोट हैं। इनमें कांग्रेस के अलावा डीएमके, शिवसेना, आरजेडी, एनसीपी जैसे दल शामिल हैं। कांग्रेस के विधायकों के पास 88 हजार 208 वैल्यू वाले वोट हैं। वहीं, सांसदों के वोट की वैल्यू 57 हजार 400 है।
मौजूदा समय यूपीए के अलावा तीसरा मोर्चा भी तैयार हो रहा है। अभी इसका पूरा स्वरूप साफ नहीं हुआ है। इनमें पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी टीएमसी, उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस, दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी, ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजेडी, केरल की सत्ताधारी पार्टी लेफ्ट, तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी टीआरएस, एआईएमआईएम शामिल हैं। इनके वोट की वैल्यू दो लाख 92 हजार है।
एनडीए और यूपीए में जो दल शामिल नहीं हैं, उन्हें एकजुट करने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए वह 15 जून को दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में विपक्ष के मुख्यमंत्री और नेताओं के साथ संयुक्त बैठक में शामिल होंगी। ममता ने उन पार्टियों को भी न्यौता भेजा है, जो यूपीए में शामिल हैं। यहां तक कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है।
ममता बनर्जी के प्रयास का विरोध भी हो रहा है। वामपंथी दलों का कहना है कि इस तरह से विपक्ष कमजोर होगा। शिवसेना की तरफ से उद्धव ठाकरे या कोई बड़ा नेता बैठक में शामिल नहीं होगा। संजय राउत ने कहा कि बैठक वाले दिन वह अयोध्या में रहेंगे। वह पार्टी के किसी और नेता को भेज देंगे। हालांकि, कांग्रेस ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा, ’ममता का यह कदम सही है। न केवल राष्ट्रपति चुनाव के लिए, बल्कि आम चुनावों के लिए भी विपक्ष का एकजुट होना अहम है। अगर विपक्ष एकजुट नहीं होता है तो हम भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकते हैं। बेहतर होता कि यह बैठक कांग्रेस बुलाती।’ हालांकि, कांग्रेस में इसे लेकर विरोध शुरू हो गया है। कई कांग्रेसी नेता चाहते हैं कि विपक्ष की अगुआई सोनिया गांधी ही करें।
एनडीए के आंकड़ों पर एक नजर
लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा की संख्या के मुताबिक, सत्तारूढ़ भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के पास मौजूदा समय में करीब पांच लाख 26 हजार वोट हैं। इनमें दो लाख 17 हजार अलग-अलग विधानसभा और तीन लाख नौ हजार सांसदों के वोट हैं। एनडीए में भाजपा के साथ जेडीयू, एआईएडीएमके, अपना दल (सोनेलाल), एलजेपी, एनपीपी, निषाद पार्टी, एनपीएफ, एमएनएफ, एआईएनआर कांग्रेस जैसे 20 छोटे दल शामिल हैं।
मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से एनडीए को अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए और 13 हजार वोटों की जरूरत पड़ेगी। 2017 में जब एनडीए ने रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था, तब आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा की बीजद ने भी समर्थन दिया था। इसके अलावा एनडीए में न होते हुए भी जदयू ने समर्थन दिया था। वहीं, पिछली बार एनडीए का हिस्सा रही शिवसेना और अकाली दल अब अलग हो चुके हैं। बीजद के पास 31 हजार से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं और वाईएसआरसीपी के पास 43,000 से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं। इनमें से किसी एक के समर्थन से भी एनडीए आसानी से जीत हासिल कर सकती है।
विपक्ष की किन उम्मीदवारों पर बन सकती है सहमति ?
मौजूदा स्थिति के मुताबिक, अगर पूरा विपक्ष एकजुट हो जाता है तो भाजपा की अगुआई वाला एनडीए कमजोर पड़ जाएगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस, टीएमसी व अन्य बड़े दल किसी ऐसे नाम को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जिस पर विपक्ष में शामिल सभी पार्टियां सहमति दे दें। ऐसे कुछ नाम हैं, जिनकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है।

शरद पवार
शरद पवारः एनसीपी चीफ शरद पवार के संबंध सभी दलों से बेहतर हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें काफी सम्मान देते हैं। अगर कांग्रेस शरद पवार का नाम आगे बढ़ाती है तो उसे टीएमसी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस, राजद और लेफ्ट जैसी पार्टियों का आसानी से साथ मिल जाएगा।

गुलाम नबी आजाद
गुलाम नबी आजादः कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे गुलाम नबी आजाद को भी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। गुलाम नबी को लेकर भी विपक्ष एकजुट हो सकता है। वह काफी समय तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे हैं।

मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंहः पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम पर भी विपक्ष के नेताओं के बीच चर्चा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए मनमोहन सिंह का नाम भी प्रस्तावित किया जा सकता है। मनमोहन सिंह काफी ईमानदार नेता माने जाते हैं और विपक्ष में शामिल सभी दल उनका सम्मान करते हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों के विधानसभा के सदस्य वोट डालते हैं। 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में से 233 सांसद ही वोट डाल सकते हैं, लेकिन कश्मीर में विधानसभा भंग है। यहां चार राज्यसभा सीटें खाली हैं। ऐसे में 229 राज्यसभा सांसद ही राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाल सकेंगे। राष्ट्रपति की ओर से मानित 12 सांसदों को भी इस चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर, लोकसभा के सभी 543 सदस्य वोटिंग में हिस्सा लेंगे। इनमें आजमगढ़, रामपुर और संगरूर में हो रहे उपचुनाव में जीतने वाले सांसद भी शामिल होंगे। इसके अलावा सभी राज्यों के कुल 4033 विधायक भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डालेंगे। इस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 4809 होगी। हालांकि, इनके वोटों की वैल्यू अलग-अलग होगी। इन मतदाताओं के वोटों की कुल कीमत 10 लाख 79 हजार 206 होगी।


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