नई दिल्ली/- राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद व सीएम को लेकर जो बयान दिया था वही बयान अब उनके गले की फांस बनता जा रहा है। हालांकि राहुल गांधी ने यह कहकर विराम लगा दिया था कि एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत सभी के लिए जरूरी है। कांग्रेस आलाकमान के भरोसे के बावजूद भी गहलोत से सीएम पद का मोह नही छुट पाया और उन्होने पायलट को सीएम बनने से रोकने के लिए विधायकों के इस्तीफे की एक और चाल चल दी। लेकिन क्या उनकी ये चाल सफल होगी या फिर वो इसमें फंस गये है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो इस बार गहलोत अपनी ही चाल में फंस गये है। लेकिन अब देखना ये है कि राजनीति में माहिर अशोक गहलोत अब इस संकट से निकलने के लिए क्या चाल चलेगे या फिर बोल्ड हो जायेंगे।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजनीति की पिच पर गुगली फेंकने की कला में माहिर माने जाते हैं। गहलोत सरकार के एक मंत्री का कहना है कि कांग्रेस की सरकार ने चार साल पूरा कर लिया और यहां ऑपरेशन लोटस नहीं चल पाया तो इसका पूरा श्रेय राजनीति के धुरंधर अशोक गहलोत को ही जाता है। इसका एक बड़ा कारण गहलोत का बैटिंग से ज्यादा फील्डिंग को बेहतर तरीके से सजाना है। हालांकि अजमेर क्षेत्र के एक वरिष्ठ कांग्रेसी का कहना है कि इस बार उनकी रणनीति में शायद चूक हो गई। गहलोत अपनी फिरकी गेंद में खुद ही उलझते दिखाई दे रहे हैं।
दिल्ली आने के पहले जयपुर से सब तय करके चले थे….
अशोक गहलोत पिछले सप्ताह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने आए थे। 22 तारीख को वह राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए मनाने गए थे। इससे पहले अशोक गहलोत ने चुने गए अध्यक्ष के लिए एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत जरूरी न होने का बयान दे दिया था। जोधपुर के गहलोत के पुराने मित्र का कहना है कि गहलोत ने तभी हवा में स्पिन गेंद उछाल दी थी। सही बात यह भी है कि वह कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना ही नहीं चाहते थे। जयपुर में अशोक गहलोत के एक करीबी मित्र रहते हैं। संगीत की दुनिया से जुड़े हैं। उनका भी कहना है कि गहलोत साहब को दिल्ली में रहकर राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी कम रास आ रही थी। बताते हैं कि गहलोत इसी इरादे से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले थे। लेकिन उनके बयान देने के तत्काल बाद केरल में भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त राहुल गांधी ने इसका कड़े शब्दों में खंडन कर दिया था। राहुल ने अध्यक्ष पद को लेकर अपनी मंशा भी साफ कर दी थी। इस बारे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कोई किंतु परंतु नहीं छोड़ा था। बताते हैं केरल से जयपुर लौटने के बाद वह भविष्य की फील्डिंग सजाने में जुट गए, क्योंकि गहलोत को यह इशारा साफ था कि उन्हें जयपुर का होमवर्क पूरा करके पार्टी अध्यक्ष पद पर नामांकन करना है।
कांग्रेस अध्यक्ष को अशोक गहलोत के इस रूख का आभास था?
कांग्रेस पार्टी के एक पुराने महासचिव कहते हैं कि मैं इसमें बहुत कुछ मानने के लिए तैयार नहीं हूं। कांग्रेस अध्यक्ष को जरूर अशोक गहलोत की तमाम आंख मिचौलियों का अंदाजा रहा होगा। यह बात अलग है कि उन्हें बात इस स्तर तक पहुंच जाने का अनुमान शायद न रहा हो। वह कहते हैं कि अशोक गहलोत की राजस्थान के मुख्यमंत्री पद से सम्मानजनक विदाई के लिए इस तरह से राजनीतिक प्रयास हुए थे। लेकिन गाड़ी फंस गई है। वह कहते हैं कि डेढ़ साल पहले भी जयपुर से दिल्ली तक काफी कुछ हुआ था। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के विश्वास के सहारे अशोक गहलोत ने बाजी मार ली थी।
सचिन पायलट को भरोसा तो राहुल गांधी ने ही दिया था
कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने समय रहते युवा सचिन पायलट को विधानसभा चुनाव 2018 का बोझ लाद दिया था। भरोसा भी दिया था कि सब ठीक रहा तो राजस्थान की कमान उनके हाथ में रहेगी। लेकिन राजनीति की पिच पर गुगली फेंकने में माहिर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव के ऐन वक्त पर फिरकी फेंककर सचिन पायलट के सपने पर पानी फेर दिया था। दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में बैठकर अशोक गहलोत ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर राजनीतिक पैंतरेबाजी में खेल कर दिया था। नतीजतन जयपुर, उदयपुर, बीकानेर, जोधपुर से लेकर दिल्ली तक की मीडिया ने सचिन पायलट के मुकाबले अशोक गहलोत के गुण गाने शुरू कर दिए थे।
करीब चार साल पहले जयपुर से दिल्ली लौटते समय ही अशोक गहलोत की तरफ से इसकी झलक देखने को मिल गई थी। जयपुर में राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले चंद्रराज सिंघवी ने चुनाव से पहले ही राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री की घोषणा कर दी थी। चंद्रराज सिंघवी ने कहा था कि कि अशोक गहलोत की बिछाई चौसर का पायलट के पास कोई तोड़ नहीं है। गहलोत ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को अपने पाले में कर लिया है और निर्दलीय तथा बसपा से समर्थक प्रत्याशियों को खड़ा करके अपना रास्ता आसान कर लिया है। मिर्धा परिवार के करीबी राजनीतिक रणनीतिकार का कहना था कि चुनाव का नतीजा आने के बाद कांग्रेस हाई कमान के पास गुंजाइश कम रहेगी।
उसी दौरान झुंझनू के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा था कि उन्होंने सोनिया गांधी और उनके परिवार के साथ अशोक गहलोत की नजदीकी को बहुत करीब से देखा है। इसलिए 7 दिसंबर 2018 की शाम तक नतीजे आ जाने का इंतजार कीजिए। चंद्रराज सिंघवी की भी गणना थी कि भाजपा बहुत घाटे में नहीं रहेगी। कांग्रेस पार्टी बहुत फायदे में नहीं रहेगी और सरकार कांग्रेस की बनेगी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही होंगे। ऐसा न हुआ तो मध्यावधि चुनाव या फिर भाजपा की सरकार बनेगी।
अब कांग्रेस नेतृत्व क्या करेगा
सबसे बड़ा सवाल है। इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं है। सचिन पायलट की दो उम्मीद हैं। एक हैं राहुल गांधी, जिनसे वह 21 सिंतबर को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मिलकर लौटे हैं। दूसरी उम्मीद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, जिन्होंने उनके साथ पार्टी में न्याय होने का भरोसा दिया है। सोनिया गांधी भी समझ रही हैं कि भविष्य का नेता पैदा करने के लिए पायलट को आगे करना होगा। जबकि अशोक गहलोत और उनकी राजनीतिक विरासत को सचिन पायलट फूटी आंखो नहीं सुहाते। शांति धारीवाल समेत डेढ़ दर्जन मंत्रियों को भी लग रहा है कि पायलट के सत्ता में आने के बाद उनकी राजनीतिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कांग्रेस सभी विधायकों में जयपुर के करीब 46 विधायकों को अशोक गहलोत का धुर समर्थक बताते हैं। जबकि पायलट के साथ खुलकर आने वाले दो दर्जन विधायक हैं। शेष विधायक कांग्रेस पार्टी के प्रति वफादार हैं। हालांकि राजनीति से संन्यास लेकर घर बैठे एक कांग्रेसी का कहना है कि दिल्ली के सख्त होने पर अशोक गहलोत के पक्ष में भी केवल 15-20 ही रह जाएंगे। ऐसे में बड़ा सवाल इसी पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान के भविष्य को लेकर क्या फैसला लेती हैं।
क्या कमलनाथ बन पाएंगे संकटमोचक?
जयपुर से लौटने के बाद दोनों पर्यवेक्षकों (मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन) ने काफी कुछ साफ कर दिया है। अजय माकन ने मीडिया के सामने आकर अशोक गहलोत के समर्थकों के रूख को अनुशासनहीनता बताया है। माकन ने यह बयान सोनिया गांधी के साथ बैठक के बाद दिया है। यह महत्वपूर्ण है। इससे साफ है कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी जयपुर के घटनाक्रम से संतुष्ट नहीं हैं और इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस आलाकमान की नाराजगी साफ झलक रही है।
दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष ने कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से बुलाया। कमल नाथ भी दिल्ली आए। कमलनाथ पार्टी में राजनीतिक संकटमोचक माने जाते हैं। अशोक गहलोत से उनका रिश्ता ठीक है। सचिन पायलट भी पार्टी के वरिष्ठ नेता का आदर करते हैं। माना जा रहा है कि वह अशोक गहलोत से संपर्क साधकर सम्मानजनक हल निकालने की पहल करेंगे। पार्टी के अंदरुनी मामलों पर नजर रखने वाले सूत्र की माने तो अब बात काफी आगे निकल गई है। अब पूरी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर है। देखना है क्या, कब और कैसे होता है?


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