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    रूस और अमेरिका को लेकर संभल कर चलना होगा भारत को

    -जो बाइडन के साथ शुरू होगी भारत की कूटनीति की परीक्षा -ट्रंप ने जाते-जाते चीन के पास रूस को धकेलकर बनाई दो धु्रवीय दुनिया -भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया क्वैड देशों का गठजोड़ बनाए रखना चुनौती

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- अमेरिका में नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कामकाज शुरू कर दिया है। भारत ने भी अपने कूटनीतिक और राजनयिक स्तर के प्रयास तेज कर दिए हैं, लेकिन इसी के साथ पारंपरिक, विश्वसनीय साझीदार रूस को साधने की भी चुनौती बढ़ रही है। राष्ट्रपति पुतिन ने भारत को सच्चा दोस्त बताया है, लेकिन विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव लगातार भारत के चीन विरोधी कैंपेन में फंस जाने का बयान देकर सरगर्मी बढ़ा रहे हैं। पूर्व विदेश सचिव शशांक भी मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ रही हैं। भारत को रूस के साथ अमेरिका पर सवारी के लिए कूटनीतिक घोड़े की लगाम कसकर पकड़ने की जरूरत बढ़ रही है।

    ट्रंप ने भारत को जोड़ा तो रूस को चीन के करीब ले गए
    जाते-जाते अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद को बिना युद्ध वाला राष्ट्रपति बनने की महान उपलब्धि बताई। पिछले तीन दशक में वह अमेरिका के ऐसे ही राष्ट्रपति रहे। शशांक मानते हैं कि ट्रंप के समय में भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत प्रगाढ़ हुए। भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया का मजबूत गठजोड़ बना। यह चीन के लिए परेशानी खड़ी करने वाला है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रूस को चीन के करीब ले जाकर ट्रंप ने अमेरिका और चीन को दो ध्रुवीय दुनिया में बदलने में भी भूमिका निभाई। चीन के कारण पाकिस्तान, रूस की निकटता बढ़ी। ईरान, सीरिया समेत तमाम देश एक नए गठजोड़ की तरफ बढ़ रहे हैं और अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, ईरान, रूस के एक साथ आने के बाद परिस्थितियां कुछ और जटिलताओं का ईशारा कर सकती हैं। पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि यह चुनौती आने वाले समय में आगे आएगी।

    अभी तक कितना महत्वपूर्ण रहा है रूस
    रूस भारत को हथियारों का निर्यात करता है। परमाणु बिजली संयंत्र और इसकी तकनीक में भी उसने भारत की मदद की है। पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि रूस सखालिन-1 परियोजना में भारत साझीदार बना था। इसके अलावा रूस संयुक्त राष्ट्र संघ समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहा है। जरूरत पड़ने पर चीन के साथ रिश्ते में भी रूस सहयोगी रहा है। इसलिए भारत के साथ रिश्ते में रूस की अहमियत को कमतर नहीं आंका जा सकता। शशांक भी मानते हैं कि पिछले डेढ़ दशक में भारत की रूस की साथ बॉन्डिंग कमजोर हो रही है। शशांक तो यहां तक कहते हैं कि क्या पता राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन प्रशासन के बाद मास्को में कोई भारत का खुला समर्थक ही न रहे। इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

    क्या कर पाएंगे हिज एक्सीलेंसी जो बाइडन
    हिज एक्सीलेंसी जो बाइडन मंझे हुए राजनेता हैं। लेकिन कूटनीति के जानकार मानते हैं कि अमेरिका को अपनी घरेलू चुनौतियों से निपटने में ही अभी काफी मशक्कत करनी है। कोविड-19 संक्रमण के बाद वहां हालात काफी जटिल हुए हैं। रोजगार और अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ा है। बाजार, कारोबार, व्यापार सब बहुत प्रभावित हुए हैं। इसलिए जो बाइडन की 70 फीसदी ऊर्जा घरेलू चुनौतियों से निपटने में खर्च हो जाएगी। इसके बाद अमेरिका को अपने नजदीकी सहयोगियों यूरोप, संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तरफ देखना है। इस्राइल और पश्चिम एशिया की स्थिति से निपटने पर ध्यान देना होगा। रूस के साथ अमेरिका अपने रिश्ते की डायनेमिक्स को सेट करेगा। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का कहना है कि यह अमेरिका के मुख्य प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं। राष्ट्रपति जो बाइडन इससे मुंह नहीं मोड़ सकते। हमारा (भारत) नंबर तो चीन, रूस और इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों के भी बाद आएगा।

    अमेरिका को चाहिए चीन के इंजीनियर, तकनीकी विशेषज्ञ
    कोविड-19 संक्रमण ने अमेरिका में चुनौती बढ़ाई है। अमेरिका को इससे निपटने के लिए काफी कुछ करना है। दूसरे अमेरिका में उत्पादों की कमी पूरा करने के लिए उसे चीन के बने माल की जरूरत होगी। चीन ने कई क्षेत्रों में अमेरिका आदि जैसे देशों की सहायता से खुद को बहुत आगे कर लिया है। अमेरिका को चीन के इंजीनियर और तमाम क्षेत्रों के लोग चाहिए। दूसरे जो बाइडन प्रशासन भले ही दक्षिण चीन सागर समेत अन्य मुद्दों पर अपना स्टैंड रखें, लेकिन चीन के साथ रिश्ते को बहुत तल्ख रखने की स्थिति नहीं दिखाई दे रही है। कम से कम ट्रंप प्रशासन की तरह तो बिल्कुल नहीं। इसलिए भारत जैसे देश के लिए अगला कुछ समय बहुत सावधानी से चलने वाला है।

    क्या होगा लद्दाख क्षेत्र में चीन की घुसपैठ समेत अन्य मामले में?
    हॉट एंड कोल्ड अब चलता रहेगा। पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि इसके सिवाय अभी कोई रास्ता नहीं नजर आता। कुंवर नटवर सिंह भी मानते हैं कि यह एक चुनौती बनी रहेगी। चीन के साथ रिश्ते नरम-गरम चलते रहेंगे और सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा। कूटनीति के दोनों जानकारों का मानना है कि राजनयिक, कूटनीतिक स्तर पर बड़े प्रयास की आवश्यकता है। शशांक तो कहते हैं कि भारत, अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया के क्वैड गठजोड़ पर चर्चा की बजाय अब चुपचाप प्रयास करने, भारत को समुद्री क्षेत्र में मजबूत बनाने, तकनीकी दक्षता बढ़ाने की जरूरत पर जोर देने आवश्यकता है। शशांक का कहना है कि भारत और चीन को द्विपक्षीय व्यापार के रास्ते पर भी पहल तेज करनी चाहिए। शशांक का कहना है कि चीन को भारत से टकराव में कोई बड़ा फायदा नहीं है। उसके हित यहां से ज्यादा हांगकांग, ताईवान में जुड़े हैं। हमारे राजनयिक इसे समझते हैं और उम्मीद है कि आगे सबकुछ ठीक रहेगा।

    कोविड-19 का टीका पड़ोसियों को भेजना प्रधानमंत्री की अच्छी पहल
    भारत ने अपने सभी पड़ोसी देशों को कोविड-19 संक्रमण से उबरने में हरसंभव मदद देने का हाथ बढ़ाया है। बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, सेशेल्श, मॉरिशस, मालदीव, श्रीलंका और नेपाल को कोविड-19 का टीका भेजा है। वैक्सीन मैत्री के इस कार्यक्रम के तहत बहरीन, ब्राजील, मोरक्को, ओमान को भी टीका दिया जा रहा है। विदेश मंत्रालय के सूत्र भी इसे मित्र देशों, पड़ोसियों के लिए बड़ा सहयोग मान रहे हैं। वहीं कूटनीति के जानकारों ने भी भारत के इस कदम का स्वागत किया है। विदेश मामलों के जानकार पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि संकट के समय में मदद ही असली सहायता होती है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की श्पड़ोसी सबसे पहलेश् की लगातार नीति रही है। यह अच्छा कदम है और इससे दुनिया में भारत की छवि को मजबूत आधार मिलेगा।

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