दिल्ली जी-20 का चीन का पहला झटका, इटली ने चीन के बीआरआई को छोड़ने का दिया संकेत

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दिल्ली जी-20 का चीन का पहला झटका, इटली ने चीन के बीआरआई को छोड़ने का दिया संकेत

-चीन की चाल को समझ गया इटली, इंडिया-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट में इटली ने दिखाई रूचि

इटली/शिव कुमार यादव/- दिल्ली जी-20 के खत्म होते ही चीन को पहला झटका लगा है। इटली ने चीन के बीआरआई प्रोजेक्टस से निकलने के संकेत दिये हैं। हालांकि अब इसे पीएम मोदी व पीएम मेलोनी की मुलाकात से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने कहा कि ‘इटली और चीन का रिश्ता सिर्फ बीआरआई तक सीमित नहीं है। बीआरआई से अलग होने से चीन के साथ हमारे संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, इस पर अभी आखिरी फैसला लिया जाना बाकी है।’

10 सितंबर को नई दिल्ली में इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने ये बात कही है। उनका बयान का ये संकेत है कि इटली अब चीन के महात्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव से अलग होना चाहता है। जी-7 देशों में शामिल इटली एकमात्र ऐसा देश है, जो 2019 में चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था। 9 सितंबर को इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात हुई। इसके ठीक बाद मेलोनी ने चीन के पीएम ली क्विंग से भी मुलाकात की। इन दोनों मुलाकातों के अगले दिन इटली की पीएम मेलोनी ने बीआरआई प्रोजेक्ट से अलग होने के संकेत दिए।
            मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए पीएम जॉर्जिया ने कहा कि कई यूरोपीय देश चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हैं। इसके बावजूद उन देशों के चीन के साथ रिश्ते अच्छे हैं। इटली के बीआरआई से अलग होने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध ऐसे होने चाहिए, जिससे दोनों के हित सुरक्षित रहें। उन्होंने कहा कि चीन ने उन्हें अपने देश आने के लिए आमंत्रित किया है। हालांकि, इसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है। इसके अलावा चीन ने अगले महीने होने वाले बीआरआई फोरम की बैठक में शामिल होने के लिए भी इटली की पीएम को आमंत्रित किया है।
            बता दें कि चीन ने दुनिया में अपना दबदबा कायम करने के लिए 2013 में अपने मास्टर प्लान बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की शुरूआत की थी। अब तक करीब 140 देश चीन के इस मायाजाल की गिरफ्त में आ चुके हैं और पूरी तरह से चीन के कर्जजाल में फंस चुके हैं। लेकिन इटली अब चीन के इस मायाजाल को समझ गया है और उसने बीआरआई से निकलने के संकेत दे दिये हैं।

2019 के बाद इटली में चीन को दुश्मन माना जाने लगा
1980 के दशक से ही इटली और चीन के बीच इंडस्ट्रियल और ट्रेड को लेकर अच्छे संबंध हैं। जब रोमानो प्रोडी इटली के औद्योगिक पुनर्निर्माण संस्थान के अध्यक्ष थे, तब चीन ने उनसे तियानजिन इलाके में एक कारखाना बनाने में मदद मांगी थी।
          इसके बदले में चीनी पीएम ने उन्हें सोवियत संघ में एक कारखाना स्थापित करने में मदद की थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद 1997 में रोमानो प्रोडी ने चीन के साथ नए सिरे से ट्रेड और बिजनेस शुरू किया। इंजीनियरिंग, खाने-पीने के सामानों, कपड़ा और फैशन इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए 100 से अधिक चीनी कंपनियों ने इटली में निवेश किया था।
          इटली के प्रधानमंत्री रहे माटेओ रेन्जी, पाओलो जेंटिलोनी और मास्सिमो डी’अलेमा ने भी चीन के साथ अच्छे संबंधों को बढ़ावा दिया था। हालांकि, 2019 में यूरोप के बाकी देशों की तरह इटली की राजनीति में भी चीन विरोधी भावना बढ़ने लगीं। पूर्व पीएम सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने तो चीन को अपना दुश्मन बताते हुए खुलकर अमेरिका को समर्थन देने की बात कही थी।

इटली ने पहले भी बीआरआई से अलग होने के दिये हैं संकेत
जुलाई 2023 में इटली के रक्षा मंत्री गुइडो क्रोसेटो ने कहा था कि चीन के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाए बिना बीआरआई से अलग होना चाहते हैं। इटली के नेताओं का मानना है कि इस समझौते से इटली की तुलना में चीन को ज्यादा लाभ मिला है। इटली के रक्षा मंत्री का कहना है कि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल होने का फैसला ग्यूसेप कोंटे की सरकार ने लिया था। ये इटली के लिए जल्दबाजी में लिया गया गलत फैसला था। इसकी वजह से इटली की इकोनॉमी पर नेगेटिव असर हुआ है। समझौते के बाद महज 3 साल में चीन ने अपने सामानों का तीन गुना ज्यादा निर्यात इटली में किया है।

चीन के बीआरआई प्रोजक्ट से क्यों अलग होना चाहता है इटली?
इटली उस वक्त चीन के ठत्प् प्रोजेक्ट में शामिल हुआ था, जब उसे अपने यहां इकोनॉमी को रफ्तार देने और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बाहरी इन्वेस्टमेंट की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी। बाकी यूरोपीय देशों की तरह इटली ने भी बीते एक दशक में तीन मंदी का सामना किया था। यूरोपियन यूनियन से इटली के संबंध अच्छे नहीं थे। ऐसे में बाहरी निवेश से देश की इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए इटली का झुकाव चीन की ओर बढ़ा। अब 4 साल बाद इटली सरकार इस फैसले पर पहुंची है कि चीन के साथ किए गए इस समझौते से उसके हाथ कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। फिर 2022 में इटली में जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व में नई सरकार बनी। मेलोनी सरकार का साफ मानना है कि हम चीन के साथ ट्रेड कम नहीं करेंगे, लेकिन बीआरआई प्रोजेक्ट में हम शामिल नहीं होंगे। जिस समय इटली ने बीआरआई से खुद को अलग किया है, उसी समय इटली समेत यूरोपीय देशों का चीन के साथ ट्रेड भी बढ़ा है।

इटली के रास्ते पर बाकी यूरोपीय देश भी बीआरआई छोड़ सकते हैं
जी7 देश इटली का बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल होना चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी। इस प्रोजेक्ट के 10 साल पूरे होने से पहले इटली का इससे निकलना चीन के लिए एक तरह का बड़ा नुकसान है। इटली का यह फैसला चीन से यूरोपीय देशों के बढ़ रहे फासले की ओर इशारा करता है।

जॉर्जिया मेलोनी के सत्ता में आने के बाद इटली सरकार अब चीन के खिलाफ सख्त रुख अपना रही है। इसे मेलोनी के इन 3 फैसलों से समझा जा सकता है-
1. मेलोनी सरकार ने इटली के टायर बनाने वाली पिरेली कंपनी पर एक चीनी फर्म के प्रभाव को सीमित कर दिया है।

2. मेलोनी सरकार ने खुलकर चीन के खिलाफ ताइवान को अपना समर्थन दिया है।

3. इटली सरकार ने यूक्रेन के समर्थन में रूस के खिलाफ कई बयान जारी किए हैं।
            एसोसिएट प्रेस ने एक रिपोर्ट में बताया कि पाकिस्तान, केन्या, जाम्बिया, लाओस और मंगोलिया ठत्प् प्रोजेक्ट में शामिल होने वाले ऐसे ही देश हैं, जो इस समय उम्मीद से भी ज्यादा कर्ज तले दबे हुए हैं। यही वजह है कि चीन की चाल को समझने के बाद पश्चिमी देशों ने चीन के ठत्प् प्रोजेक्ट के काउंटर में इंडिया-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट लॉन्च किया है।

चीनी प्रोजेक्ट ठत्प् का विरोध क्यों कर रहा है भारत?
फॉरेन एक्सपर्ट स्वास्ति राव के मुताबिक इटली के ठत्प् प्रोजेक्ट से बाहर निकलने से चीन के साख को धक्का लगा है। इसका 3 तरह से फायदा भारत को मिल सकता है-

1. ट्रस्ट फैक्टरः इटली समेत यूरोपीय देशों का मानना है कि अब हम ट्रेड ऐसे देशों के साथ करेंगे, जिनके साथ हमारा ट्रस्ट फैक्टर है। यहीं पर भारत आता है।

भारत के यूरोपीय देशों के साथ अच्छे संबंध हैं। दुनिया अब चीन के विकल्प चीन$1 देश को तलाश रही है। भारत इसी $1 की जगह ले सकता है। यूरोप के दृष्टि से देखें तो बीते कुछ सालों में यूरोपीय देशों के इन्वेस्टमेंट भारत में बढ़े हैं। हालांकि, इन्वेस्टमेंट जितना बढ़ना चाहिए उतने नहीं बढ़े हैं। यूरोपीय कंपनियों का कहना है कि हम चीन के बजाय भारत में इन्वेस्टमेंट बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए बीच के रोड़े खत्म करने की जरूरत है।

-इज ऑफ डूईंग बिजनेस सही करना होगा।
-स्टैंडर्ड बेहतर करने होंगे।
-हमें अपने यहां बिजनेस का ईकोसिस्टम बेहतर करना है।
            इन चीजों को बेहतर करने के लिए यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल बनी है। ये काउंसिल ये देख रही है कि हम ट्रेड को कैसे बढ़ा सकते हैं। यूरोपीय देशों की इन्वेस्ट करने की जितनी क्षमता है, उसकी तुलना भारत में काफी कम इन्वेस्टमेंट हो रहा है। अब बारी चीन की जगह लेने की है।

2. चीन को झटका देकर भारत के दो प्रोजेक्ट्स से जुड़ेः एक तरफ इटली ने चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से निकलने का फैसला किया। वहीं, उसी वक्त इटली ने भारत-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर से जुड़ने की दिलचस्पी दिखाई है। इसके अलावा इटली, भारत के ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस से भी जुड़ गया है। ये इटली का चीन के खिलाफ और भारत को लेकर बेहतर आर्थिक संबंधों की ओर इशारा करता है।

3. भारत विरोधी चीनी बीआरआई प्रोजेक्ट से दूरी बनाईः बीआरआई शुरू होने के बाद से ही भारत इसका विरोध करता रहा है। भारत ने इस प्रोजेक्ट में शामिल होने से भी इनकार कर दिया है। भारत के इस प्रोजेक्ट से दूरी बनाने की एक वजह यह है कि बीआरआई पाक अधिकृत कश्मीर यानी पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरती है। यह प्रोजेक्ट चीन को अरब सागर से जोड़ता है।
            यह प्रोजेक्ट गिलगिट बालटिस्टान होते हुए पाकिस्तान के उत्तर से दक्षिण होते हुए गुजरता है। चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का ही एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) कहते हैं। सीपीईसी के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र में मॉडर्न हाइवे और रेलवे प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। यही वजह है कि भारत सीपीईसी को इंटरनेशनल लॉ के खिलाफ बताता है। अब इटली का इससे बाहर होना एक तरह से भारत की कूटनीतिक जीत बताई जा रही है।

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