इस्लामाबाद/शिव कुमार यादव/- खस्ताहाल आर्थिक स्थिति, आतंकी देश का टैग और डिप्लोमैटिक फजीहत के बीच अब पाकिस्तान, भारत से रिश्ते सुधारने को पूरी तरह से मजबूर हो चुका है। जिसके चलते 25 साल पहले कारगिल घुसपैठ और फिर युद्ध को लेकर पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने चुप्पी तोड़ते हुए लाहौर समझौते के टूटने को लेकर बड़ी बात कह दी है। अब इस समझौते के 25 साल बाद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ने सच कबूलते हुए लाहौर घोषणापत्र के उल्लंघन को पाकिस्तान की बड़ी गलती माना है।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना कि इस्लामाबाद ने भारत के साथ 1999 में हुए लाहौर घोषणापत्र का उल्लंघन किया। उन्होंने जनरल परवेज मुशर्रफ की ओर से करगिल में किए गए हमले के स्पष्ट संदर्भ में यह बात कही। पाकिस्तान के कारगिल दुस्साहस का स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए नवाज शरीफ ने स्वीकारा कि तत्कालीन सरकार ने लाहौर घोषणापत्र का उल्लंघन किया है। ये पाकिस्तान की बड़ी गलती है। नवाज शरीफ का ये कमेंट सामने आते ही चर्चा का दौर शुरू हो गया। आखिर 1999 का लाहौर घोषणापत्र से जुड़ा वह समझौता क्या था जिसकी चर्चा पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ने की है।
कब हुआ था लाहौर समझौता
सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (च्डस्छ) का अध्यक्ष चुने जाने के बाद पार्टी की आम परिषद को संबोधित करते हुए नवाज शरीफ ने कहा कि 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी साहब यहां आए और हमारे साथ समझौता किया। लेकिन, हमने उस समझौते का उल्लंघन किया, यह हमारी गलती थी। नवाज शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी, 1999 को लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत और पाकिस्तान के बीच ये समझौता दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता के दृष्टिकोण की बात करने वाला था।
1999 के लाहौर समझौते की बड़ी बातें
भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए लाहौर समझौते में दोनों सरकारों ने शांति, स्थिरता पर फोकस किया। जम्मू-कश्मीर सहित सभी मुद्दों को सुलझाने के लिए अपने प्रयास तेज करेंगे। एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और दखलंदाजी से बचना होगा। परमाणु हथियारों के आकस्मिक या अनधिकृत इस्तेमाल के जोखिम को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे। ये एग्रीमेंट दोनों देशों में तनावपूर्व रिश्तों को दूर करने की अहम कूटनीतिक पहल थी।
समझौते के बाद ही करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ
हालांकि, लाहौर एग्रीमेंट के कुछ महीने बाद जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले में पाकिस्तानी घुसपैठ के कारण करगिल युद्ध हुआ। जब मुशर्रफ ने यह कदम ठीक उस समय उठाया, जब थोड़ा ही पहले दोनों देशों ने एटमी परीक्षण किए थे और लाहौर समझौते के जरिए दुनिया के आगे खुद को जिम्मेदार एटमी पड़ोसी की तरह पेश करने में जुटे थे। बड़े तामझाम से ‘लाहौर समझौता’ करने वाली तत्कालीन वाजपेयी सरकार के लिए पाकिस्तानी फौज की यह हरकत इस हद तक शर्मिंदगी पैदा करने वाली थी कि आनन-फानन में जवाबी कदम उठाए जाने से पहले तक उसने देश को भनक तक नहीं लगने दी कि करगिल में हो क्या रहा है।
जब मुशर्रफ ने किया पाकिस्तान में तख्तापलट
फरवरी 1999 में लाहौर समझौते पर दस्तखत हुए। फिर फटाफट दोनों देशों की संसदों ने इस पर मुहर लगा दी, लेकिन जुलाई 1999 में ही करगिल युद्ध छिड़ गया। करगिल में बुरी तरह मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ ने अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाया। मौका मिलते ही उन्होने नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट दिया। अक्टूबर 1999 में पूरा देश उनकी मुट्ठी में था।
आगरा समझौते के लिए मुशर्रफ का वो भारत दौरा
करगिल युद्ध को दो साल भी नहीं बीते थे, जब परवेज मुशर्रफ पूरी भव्यता के साथ ‘आगरा समझौते’ का ढोल पीटते हुए दिल्ली तशरीफ लाए, जो किसी भी पाकिस्तानी पीएम को यहां कभी नसीब नहीं हुई थी। यह समझौता लाहौर समझौते की ही भावना के तहत दोनों देशों में स्थायी शांति कायम करने, आतंकवाद समाप्त करने और कश्मीर समस्या के हल के लिए होना था, लेकिन ऐन मौके पर दस्तखत नहीं हो पाए। दोनों देशों को 1972 का शिमला समझौता ही याद रहा, आगरा के साथ ही लाहौर समझौते का नाम भी बिसर गया।
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