नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- देश में आम आदमी के मानवाधिकार को लेकर एक नई बहस छिड़ी हुई है। जिस देखते हुए एक कार्यक्रम में सामाजिक-आर्थिक स्थिति से इतर सभी तक न्याय की पहुंच बनाने की दिशा में काम करने की जरूरत पर जोर देते हुए सीजेआई रमना ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि हम एक ऐसे समाज के तौर पर बने रहे, जहां कानून का शासन हो.। हमारे संविधान में इस बात की गारंटी दी गई है कि लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा होगी, फिर भी थानों में क़ानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता जिसके अभाव में गिरफ़्तार या हिरासत में लिए गए लोगों को वहां सबसे अधिक ख़तरा रहता है। क्योंकि हिरासत में यातना और अन्य पुलिसिया अत्याचार देश में अब भी जारी हैं तथा ‘विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भी ‘थर्ड डिग्री’ की प्रताड़ना से नहीं बख्शा जाता है।’
सीजेआई रमना ने रविवार को नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (नालसा) द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘पुलिस स्टेशनों में मानवाधिकारों और मानवीय गरिमा को सबसे अधिक खतरा रहता है। पुलिस हिरासत में प्रताड़ना और पुलिस के अन्य अत्याचार की समस्याएं अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं। हमारे संविधान में इस बात की गारंटी दी गई है कि लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा होगी लेकिन फिर भी पुलिस स्टेशन के भीतर लोगों को कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता जिसके अभाव में गिरफ्तार या फिर हिरासत में लिए गए लोगों को पुलिस थानों में सबसे अधिक खतरा रहता है।
सीजेआई विज्ञान भवन में कानूनी सेवा मोबाइल एप्लिकेशन (ऐप) और नालसा के दृष्टिकोण और ‘मिशन स्टेटमेंट’ की शुरुआत के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। मोबाइल ऐप गरीब और जरूरतमंद लोगों को कानूनी सहायता के लिए आवेदन करने और पीड़ितों को मुआवजे की मांग करने में मदद करेगा। उन्होंने कहा, ‘ऐसे में आरोपियों को जितनी जल्दी कानूनी मदद मिल सके, वह खुद का बचाव कर सकते हैं। हाल की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को भी थर्ड डिग्री प्रताड़ना से नहीं बख्शा गया.।
सीजेआई रमना ने कहा, ‘पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए कानूनी सहायता का संवैधानिक अधिकार और निशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के लिए जानकारी का प्रसार जरूरी है। प्रत्येक जिले या जेल में डिस्प्ले बोर्ड और आउटडोर होर्डिंग लगाना इस दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि जरूरतमंदों को निशुल्क कानूनी सहायता की अवधारण की जड़ें स्वतंत्रता आंदोलन में हैं। उन्होंने कहा, ‘उन दिनों औपनिवेशिक शासकों द्वारा निशाना बनाए गए स्वतंत्रता सेनानियों को कानूनी विशेषज्ञों ने निशुल्क सेवाएं दीं। अपने संबोधन में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त और सबसे कमजोर लोगों के बीच न्याय तक पहुंच के अंतर को पाटना अनिवार्य है।
उन्होंने कहा, ‘अगर हम कानून के शासन के तहत एक समाज के तौर पर बने रहना चाहते हैं तो हमारे लिए अत्यधिक विशेषाधिकार प्राप्त लोगों और सर्वाधिक कमजोर लोगों के बीच न्याय तक पहुंच बनाने के अंतर को कम करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे देश में अभी भी व्याप्त सामाजिक-आर्थिक विविधता की वास्तविकता कभी भी अधिकारों से वंचित होने का कारण नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी और लंबी, श्रमसाध्य और महंगी न्यायिक प्रक्रियाओं जैसी मौजूदा बाधाएं भारत में ‘न्याय तक पहुंच’ के लक्ष्यों को साकार करने के संकट को बढ़ाती हैं।
ग्रामीण भारत और शहरी आबादी के बीच डिजिटल खाई का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जिन लोगों के पास न्याय तक पहुंच नहीं है। उनमें से अधिकांश ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों से हैं जो कनेक्टिविटी की कमी के शिकार हैं। मैंने पहले ही सरकार को पत्र लिखकर प्राथमिकता के आधार पर डिजिटल अंतराल को पाटने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि डाक नेटवर्क का उपयोग निःशुल्क कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जागरूकता फैलाने और देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों तक कानूनी सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश ने वकीलों, विशेष रूप से वरिष्ठ वकीलों को कानूनी सहायता की आवश्यकता वाले लोगों की मदद करने के लिए कहा और मीडिया से नालसा के ‘सेवा के संदेश को फैलाने की क्षमता’ का उपयोग करने का आग्रह किया। साथ ही उन्होंने अतीत को भविष्य का निर्धारण न करने देने पर जोर देते हुए कहा, ‘अगर एक संस्थान, न्यायपालिका नागरिकों का विश्वास जीतना चाहती है तो हमें सभी को यह आश्वस्त करना होगा कि हम उनके लिए मौजूद हैं। लंबे समय तक देश का कमजोर वर्ग न्याय की प्रणाली से बाहर रहता आया है।
उन्होंने कहा कि हमें सरकार की विभिन्न इकाइयों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि न्याय तक पहुंच को आमजन तक सुगम बनाने को वास्तविक रूप दिया जा सके।
-संविधान में मानवाधिकार की रक्षा की गांरटी, थानों में हालात ठीक नही
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