नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज ब्रिक्स गुट की मेज़बानी कर रहे हैं। जिसमें भारत के अलावा ब्राज़ील, रूस, चीन व साउथ अफ़्रीका भी सदस्य देश है। यह समिट वर्चुअल हो रहा है और इसमें इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं। वही 17 सिंतबर को एससीओ समिट यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन की बैठक भी होनी है जिसमें भारत के अलावा चीन, रूस, पाकिस्तान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. भी सदस्य देश है। इस बैठक में अफगानिस्तान व तालिबान का मुद्दा भी उठना है जिसमें मोदी की शी जिनपिंग से लेकर पुतिन तक.बात होगी। हालांकि अभी तक अफ़ग़ानिस्तान भारत के लिए नई चुनौती बनकर उभरा है और रूस-चीन तालिबान को लेकर एक साथ खड़े दिखाई दे रहे है। तो ऐसे में हो सकता है भारत एससीओ की इस बैठक मे ंअफगानिस्तान व तालिबान को लेकर अलग-थलग पड़ जाये हालांकि अभी यह कहना थोड़ा मुश्किल है।
हालांकि ब्रिक्स में भारत के लिए स्थिति थोड़ी सहज है लेकिन एससीओं में ठीक इसके विपरीत है। ब्रिक्स में तो भारत को ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका से मदद भी मिल सकती है, लेकिन एससीओ में भारत को छोड़ सभी देश अफ़ग़ानिस्तान और तालिबान के मुद्दे पर चीन, रूस और पाकिस्तान के साथ लामबंद हैं। कहा जा रहा है कि भारत यहाँ अलग-थलग पड़ सकता है।
एससीओ समिट को लेकर ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ’’भारत को छोड़कर शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) के सभी सदस्य देश तालिबान के मुद्दे पर एक साथ हैं। एससीओ की बैठक 17 सितंबर को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में होनी है। चीन और रूस बाक़ी के अहम देश ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और पाकिस्तान के साथ अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर समन्वय कर रहे हैं। पाकिस्तान अफ़ग़ान तालिबान के बहुत क़रीब है। तालिबान ने ख़ुद भी कहा है कि वो चीन के बेल्ट रोड प्रोजेक्ट में शामिल होना चाहता है।’’
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है, ’’लेकिन सबसे शर्मनाक स्थिति भारत के लिए है. विदेश नीति में अनुदार निर्णयों के कारण भारत के लिए उपजे नए हालात से डील करना मुश्किल हो गया है। हो सकता है नई दिल्ली शायद पाकिस्तानी तालिबान का समर्थन करे.। चीन के अलावा एक और ताक़त रूस तालिबान को लेकर सक्रिय है। कहा जा रहा है कि रूस भी इस इलाक़े से अमेरिका को बेदख़ल करने के लिए तालिबान को मदद देगा।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन तालिबान को लेकर काफ़ी गंभीर है और अगला क़दम वहां की आंतरिक सरकार को मान्यता देना हो सकता है। अल-जज़ीरा ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से सोमवार को बताया था कि तुर्की, चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और क़तर को तालिबान ने सरकार की घोषणा के मौक़े पर आमंत्रित किया था। जिसे देखकर नही लगता कि रूस तालिबान मुद्दे पर भारत के साथ आयेगा।
अफ़ग़ान-तालिबान पर भारत को छोड़ एससीओ के सभी सदस्य देश एक साथ हैं। जिसे देखते हुए अब भारत को भी अपनी विदेश नीति की समीक्षा करनी होगी और अपने हितों को साधने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे।
-17 सितंबर को होनी है समिट की बैठक, चीन, रूस व पाकिस्तान के अलावा कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. भी है सदस्य
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