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    हाईकोर्ट ने फोन की डायलर ट्यून संदेश पर उठाया सवाल, लगाई फटकार

    कहा, जब वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं है तो आप फोन पर लोगों को सुनवा रहे हैं टीका लगवाओ
    NM New High Court

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- दिल्ली हाईकोर्ट ने वैक्सीन की कमी को देखते हुए केंद्र के डायलर ट्यून संदेश पर सवाल उठाया है। अदालत ने कहा कि जब आपके पास वकैक्सीन ही नहीं है तो आप कब तक आप इस ट्यून के जरिए लोगों को टीकाकरण का संदेष देकर इस प्रकार परेशान करेंगे। अदालत ने कहा हम नहीं जानते कि आप कब तक ऐसा करेंगे।
                    न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जब भी कोई फोन करता है तो यह परेशान करने वाली ट्यून शुरु हो जाती है। अदालत ने कहा कि हम नहीं जानते कि कब तक लोगों का टीकाकरण होना चाहिए जबकि आपके पास पर्याप्त मात्रा में टीका ही नहीं है। आप लोगो को टीका नहीं लगा रहे लेकिन अभी भी कह रहे हैं कि वैक्सीन लगवाइए। अदालत ने कहा कि जब वैक्सीन ही नहीं है तो कौन वैक्सीन लगवाएगा। कहां लगवाएगा। ऐसे में इस संदेश का क्या महत्व रह जाता है।                
                  अदालत ने कहा आपको हर किसी को वैक्सीन देनी चाहिए, आप कुछ पैसे ले रहे है तो भी वैक्सीन दें। पीठ ने कहा कि सरकार को ऐसी चीजों में इनोवेटिव होने की जरूरत है। उन्होंने कहा सरकार को इसे हमेशा चलाने के बजाय ऐसे संदेश तैयार करने चाहिए जो टेप की तरह स्वयं बंद हो जाएं। क्या आप इस संदेश को 10 साल तक चलाएंगे। अदालत ने केंद्र व दिल्ली सरकार से कहा कि डायलर संदेश को समयानुसार बदलना होगा और जब कोई व्यक्ति हर बार एक संदेश सुनेगा तो यह उसकी मदद होगी। अदालत ने कहा कि नियमित रूप से हाथ धोने और मास्क पहनने पर पिछले साल काफी प्रचार हुआ था और अब ऑक्सीजन, कंसंट्रेटर, दवाओं आदि के इस्तेमाल पर इसी तरह की ऑडियो-विजुअल पहल होनी चाहिए। वरना हम समय खो रहे हैं।
                  अदालत ने कहा कि लोगों को ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और सिलिंडरों के उपयोग के बारे में जागरूक करने या टीकाकरण पर सुझाव के प्रसार करने चाहिए। इसके अलावा अमिताभ बच्चन जैसे सेलेब्रिटीज से भी सहायता ली जा सकती है। अदालत ने इस दिशा में जल्द कदम उठाकर 18 मई तक अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। उच्च न्यायालय ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन कर रहे दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) के वकीलों व न्यायिक अधिकारियों को वैक्सीन न देने पर सवाल उठाया है। अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा आप किसी को बिना बंदूक के युद्ध में नहीं भेज सकते। अदालत ने केंद्र व दिल्ली सरकार को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि क्या 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग में आने वाले वकील व न्यायिक अधिकारी जिला अदालतों में लगाए बनाए गए सेंटरों पर टीका लगवाने सीधे आ सकते हैं।

    न्यायमूर्ति नवीन चावला ने दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कानूनी सहायता वकील और न्यायिक अधिकारी शीर्ष अदालत के निर्देशों को लागू करने के लिए काम कर रहे हैं और इनका कोविड-19 महामारी से बचाव करना जरूरी है।
                   डीएसएलएसए की ओर से अधिवक्ता अजय वर्मा ने अदालत से अनुरोध किया है कि केंद्र तथा दिल्ली सरकार को न्यायिक अधिकारियों एवं कानूनी सहायता वकीलों का जिला अदालतों में बनाए गए टीकाकरण केंद्रों पर तत्काल टीकाकरण करने का निर्देश दिया जाए।
                   केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि वर्तमान में वकीलों को टीकाकरण में प्राथमिकता देने के लिए अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी के तौर पर उनके लिए अलग से कोई वर्गीकरण नहीं है। उन्होंने माना कि कानूनी सहायता वकीलों के टीकाकरण का मुद्दा देशभर में चिंता का विषय बना हुआ है।
                  अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने अदालत को यह भी बताया कि टीकाकरण की पहली और दूसरी खुराक के बीच एक महीने से अधिक का अंतर है। इस अवधि में कानूनी सहायता वकीलों का कोविड-19 के खतरे से सामना हो सकता है।
                  अदालत ने कहा कि शर्मा की बात सही है और यदि इन वकीलों को प्राथमिकता के आधार पर टीके की पहली खुराक मिल जाती है तो इससे उन्हें कुछ तसल्ली तो मिलेगी। अदालत ने कहा हम जो भी दे सकते हैं कम से कम वह तो हमें उन्हें देना चाहिए।
                 दिल्ली सरकार के वकील संतोष के. त्रिपाठी ने अदालत से कहा कि 45 वर्ष या अधिक आयु के वकील एवं न्यायिक अधिकारी जिला अदालतों में बने टीकाकरण केंद्रों पर सीधे जा सकते हैं। हालांकि यह व्यवस्था 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग के वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को टीकाकरण के लिए सीधे पहुंचने की अनुमति देने का दिल्ली सरकार को अधिकार नहीं है। इस बाबत फैसला केंद्र को लेना है।

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